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यूपी में सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा माध्यमिक शिक्षा विभाग, चुप्पी से सैकड़ों का वेतन फंसा

सुप्रीम कोर्ट की ओर से बीते दिनों जारी एक फरमान उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों की गले की हड्डी बन गया है. अधिकारी उसे लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे. अगर लागू किया तो बड़े-बड़े लोग फंस जाएंगे.

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा माध्यमिक शिक्षा विभाग
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा माध्यमिक शिक्षा विभाग
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Published : Oct 15, 2021, 12:16 PM IST

लखनऊः सुप्रीम कोर्ट की ओर से बीते दिनों जारी एक फरमान उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों की गले की हड्डी बन गया है. विभाग अगर इसे लागू किया, तो बड़े-बड़े लोग फंस जाएंगे. लेकिन लागू नहीं किया तो कोर्ट का चाबुक चलने का डर है. ऐसे में माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक से लेकर जिला विद्यालय निरीक्षक तक खामोशी साधे बैठे हैं. इन सब की खामोशी के चलते लखनऊ में सैकड़ों शिक्षकों का वेतन फंस गया है.

उत्तर प्रदेश के सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्तियों के एक मामले में बीते सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी किया. आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 2010 में सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति आउटसोर्सिंग से किए जाने के फैसले को सही ठहराया. इसके साथ ही, 2010 के बाद रखे गए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के वेतन का भार सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के प्रबंधन तंत्र पर डाले जाने के आदेश दिए.

अधिकारियों की सांठगांठ से हुआ यह खेल

वर्ष 2010 में उत्तर प्रदेश के सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की भर्ती आउटसोर्सिंग से किए जाने के आदेश जारी हो चुके थे. इसके बाद भी प्रदेश के कई जिलों में जिला विद्यालय निरीक्षक और सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के प्रबंधकों की सांठगांठ से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्तियां की गई. यह न्यूज़ लाखों रुपये रिश्वत लेकर की गई. जानकारों की माने तो 2012-13 में एक कोर्ट केस का हवाला देकर यह पूरा खेल किया गया था. सिर्फ लखनऊ में 88 पदों पर भर्तियां की गई. प्रदेश के 75 जिलों में उनकी संख्या हजारों में है. इनमें कई बड़े नेता, मंत्री, विधायक और अधिकारियों के करीबी भी शामिल है. जो सिर्फ कागजों में हस्ताक्षर करके वेतन उठा रहे हैं. इन नियुक्तियों में करोड़ों रुपए का खेल हुआ है. ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह पूरा प्रकरण अधिकारियों के गले की हड्डी बना हुआ है.

88 के चक्कर में सब का वेतन फंसा

लखनऊ में करीब 88 ऐसे प्रकरण है. यह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं, जिनकी नियुक्ति 2010 के बाद की गई. पूर्व जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. मुकेश कुमार सिंह ने वर्ष 2017 में पद संभालने के बाद इनके वेतन पर रोक लगा दी थी. तब से यह मामला कोर्ट में गया था.

-डॉक्टर मुकेश कुमार सिंह को करीब 1 महीने पहले जिला विद्यालय निरीक्षक लखनऊ के पद से हटा दिया गया है. अभी तक विभाग की तरफ से लखनऊ को नया जिला विद्यालय निरीक्षक नहीं दिया गया है. जिला विद्यालय निरीक्षक के हस्ताक्षर से ही शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन निकलता है.

-डीआईओएस मुकेश कुमार सिंह को पद से हटाने के बाद जिला विद्यालय निरीक्षक द्वितीय को इस पद की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वह पहले से ही अवकाश पर चल रहे हैं. उनके स्थान पर एसोसिएट डीआईओएस रीता सिंह को इस पद की जिम्मेदारी दी गई है. वह अतिरिक्त कार्यभार संभाल रही है.

-सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अभी तक माध्यमिक शिक्षा विभाग की तरफ से जिला विद्यालय निरीक्षक को स्पष्ट कोई आदेश नहीं भेजा गया है. अगर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बावजूद जिला विद्यालय निरीक्षक के हस्ताक्षर से इन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का वेतन जारी होता है, तो वह कोर्ट की अवमानना होगी. संबंधित अधिकारी के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जा सकती है. अगर वेतन जारी नहीं करते हैं तो पूरे लखनऊ के शिक्षक और कर्मचारी परेशान हैं.

- माध्यमिक शिक्षा निदेशक विनय पांडेय ने इस संबंध में पूरी तरह से चुप्पी साधी हुई है. वह कुछ बोलना नहीं चाहते. चुनाव का भी समय है और सरकार ऐसे माहौल में किसी की भी नाराजगी लेने के लिए तैयार नहीं है.

इसे भी पढ़ें- पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा, पीएम मोदी और सीएम योगी ने दी देशवासियों को शुभकामनाएं

माध्यमिक शिक्षक संघ लगातार करना प्रदर्शन

वेतन को लेकर माध्यमिक शिक्षक संघ की तरफ से लगातार विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है. शिक्षक संगठन के प्रदेश मंत्री डॉ. आरपी मिश्रा का कहना है कि अधिकारियों की इस लापरवाही के कारण हजारों शिक्षक परेशान है. त्योहार के महीने में वेतन कब तक मिलेगा किसी को कुछ नहीं पता? उन्होंने बताया कि शिक्षक संगठन की ओर से डायरेक्टर माध्यमिक शिक्षा के कार्यालय तक में विरोध प्रदर्शन किया गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

लखनऊः सुप्रीम कोर्ट की ओर से बीते दिनों जारी एक फरमान उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों की गले की हड्डी बन गया है. विभाग अगर इसे लागू किया, तो बड़े-बड़े लोग फंस जाएंगे. लेकिन लागू नहीं किया तो कोर्ट का चाबुक चलने का डर है. ऐसे में माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक से लेकर जिला विद्यालय निरीक्षक तक खामोशी साधे बैठे हैं. इन सब की खामोशी के चलते लखनऊ में सैकड़ों शिक्षकों का वेतन फंस गया है.

उत्तर प्रदेश के सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्तियों के एक मामले में बीते सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी किया. आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 2010 में सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति आउटसोर्सिंग से किए जाने के फैसले को सही ठहराया. इसके साथ ही, 2010 के बाद रखे गए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के वेतन का भार सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के प्रबंधन तंत्र पर डाले जाने के आदेश दिए.

अधिकारियों की सांठगांठ से हुआ यह खेल

वर्ष 2010 में उत्तर प्रदेश के सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की भर्ती आउटसोर्सिंग से किए जाने के आदेश जारी हो चुके थे. इसके बाद भी प्रदेश के कई जिलों में जिला विद्यालय निरीक्षक और सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के प्रबंधकों की सांठगांठ से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्तियां की गई. यह न्यूज़ लाखों रुपये रिश्वत लेकर की गई. जानकारों की माने तो 2012-13 में एक कोर्ट केस का हवाला देकर यह पूरा खेल किया गया था. सिर्फ लखनऊ में 88 पदों पर भर्तियां की गई. प्रदेश के 75 जिलों में उनकी संख्या हजारों में है. इनमें कई बड़े नेता, मंत्री, विधायक और अधिकारियों के करीबी भी शामिल है. जो सिर्फ कागजों में हस्ताक्षर करके वेतन उठा रहे हैं. इन नियुक्तियों में करोड़ों रुपए का खेल हुआ है. ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह पूरा प्रकरण अधिकारियों के गले की हड्डी बना हुआ है.

88 के चक्कर में सब का वेतन फंसा

लखनऊ में करीब 88 ऐसे प्रकरण है. यह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं, जिनकी नियुक्ति 2010 के बाद की गई. पूर्व जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. मुकेश कुमार सिंह ने वर्ष 2017 में पद संभालने के बाद इनके वेतन पर रोक लगा दी थी. तब से यह मामला कोर्ट में गया था.

-डॉक्टर मुकेश कुमार सिंह को करीब 1 महीने पहले जिला विद्यालय निरीक्षक लखनऊ के पद से हटा दिया गया है. अभी तक विभाग की तरफ से लखनऊ को नया जिला विद्यालय निरीक्षक नहीं दिया गया है. जिला विद्यालय निरीक्षक के हस्ताक्षर से ही शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन निकलता है.

-डीआईओएस मुकेश कुमार सिंह को पद से हटाने के बाद जिला विद्यालय निरीक्षक द्वितीय को इस पद की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वह पहले से ही अवकाश पर चल रहे हैं. उनके स्थान पर एसोसिएट डीआईओएस रीता सिंह को इस पद की जिम्मेदारी दी गई है. वह अतिरिक्त कार्यभार संभाल रही है.

-सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अभी तक माध्यमिक शिक्षा विभाग की तरफ से जिला विद्यालय निरीक्षक को स्पष्ट कोई आदेश नहीं भेजा गया है. अगर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बावजूद जिला विद्यालय निरीक्षक के हस्ताक्षर से इन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का वेतन जारी होता है, तो वह कोर्ट की अवमानना होगी. संबंधित अधिकारी के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जा सकती है. अगर वेतन जारी नहीं करते हैं तो पूरे लखनऊ के शिक्षक और कर्मचारी परेशान हैं.

- माध्यमिक शिक्षा निदेशक विनय पांडेय ने इस संबंध में पूरी तरह से चुप्पी साधी हुई है. वह कुछ बोलना नहीं चाहते. चुनाव का भी समय है और सरकार ऐसे माहौल में किसी की भी नाराजगी लेने के लिए तैयार नहीं है.

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माध्यमिक शिक्षक संघ लगातार करना प्रदर्शन

वेतन को लेकर माध्यमिक शिक्षक संघ की तरफ से लगातार विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है. शिक्षक संगठन के प्रदेश मंत्री डॉ. आरपी मिश्रा का कहना है कि अधिकारियों की इस लापरवाही के कारण हजारों शिक्षक परेशान है. त्योहार के महीने में वेतन कब तक मिलेगा किसी को कुछ नहीं पता? उन्होंने बताया कि शिक्षक संगठन की ओर से डायरेक्टर माध्यमिक शिक्षा के कार्यालय तक में विरोध प्रदर्शन किया गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

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