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गंभीर भू-जल संकट के मुहाने पर उत्तर प्रदेश, जानिए...क्या कहते हैं वैज्ञानिक

उत्तर प्रदेश गंभीर भू-जल संकट के मुहाने पर खड़ा है. प्रदेश में लगातार अंधाधुंध तरीके से भूगर्भ जल का दोहन किया जा रहा है. तालाबों और पोखरों पर लगातार कब्जे हो रहे हैं. ऐसे में वर्षा जल संचयन की सरकार की योजना भी हवा हवाई साबित हो रही है. भूगर्भ जल पर 40 वर्षों से काम कर रहे वरिष्ठ वैज्ञानिक आर एस सिन्हा ने इन तमाम बातों को लेकर ईटीवी भारत से खास बातचीत की है.

गंभीर भू-जल संकट के मुहाने पर खड़ा उत्तर प्रदेश
गंभीर भू-जल संकट के मुहाने पर खड़ा उत्तर प्रदेश
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Published : Jun 2, 2021, 1:19 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लगातार अंधाधुंध तरीके से भूगर्भ जल का दोहन किया जा रहा है. तालाबों और पोखरों पर लगातार कब्जे हो रहे हैं. जिसकी वजह से वर्षा जल संचयन की सरकार की योजना भी हवा हवाई साबित हो रही है. ऐसे में पूरा उत्तर प्रदेश गंभीर भू-जल संकट के मुहाने पर खड़ा है. इसको लेकर ना तो सरकारी तंत्र गंभीर है और ना ही जनता. ऐसे में यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में देश और प्रदेश की जनता को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.

गंभीर भू-जल संकट के मुहाने पर खड़ा उत्तर प्रदेश

लगातार हो रही गिरावट

पूरे उत्तर प्रदेश में भू-जल के स्तर में लगातार गिरावट हो रही है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के 70 प्रतिशत विकासखंड भूजल स्तर के गिरावट से प्रभावित हैं. 281 विकासखंड ऐसे हैं, जहां भूजल उपलब्धता के लिए संकट है. अधिकतर शहरी क्षेत्रों में भूजल स्तर में लगातार हो रही गिरावट चिंताजनक है. ऐसे में सरकार के साथ-साथ प्रदेश की जनता को भी इसके लिए आगे आना होगा तभी इस चुनौती से निपटा जा सकेगा.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए भूगर्भ जल पर 40 वर्षों से काम कर रहे वरिष्ठ वैज्ञानिक आर एस सिन्हा ने कहा कि ग्राउंड वाटर जमीन के नीचे पाया जाता है. 80 के दशक में जब केंद्र सरकार ने हरित क्रांति योजना लेकर आई तो नलकूप संस्कृति को बढ़ावा दिया गया. जिसके बाद भूगर्भ का बेतहाशा दोहन किया गया और हम जल संटक के मुहाने पर आकर खड़े हो गए. जहां से वापसी की संभावना बहुत कम लग रही है.

राजधानी लखनऊ में एक लाख से अधिक समर्सिबल पंप
वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि यदि राजधानी लखनऊ की बात की जाए तो लखनऊ में ही एक लाख से अधिक समर्सिबल पंप लगे हुए हैं. यदि पूरे प्रदेश के ग्रामीण और शहरी आंकड़ों पर चर्चा की जाए तो यह संख्या लगभग एक करोड़ के करीब है. समरसेबल से बिना किसी प्लान के सीमा और मानकों को दरकिनार करके लगातार भूगर्भ जल का दोहन किया जा रहा है, जिस कारण कई स्थानों की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है.

सरकारों के पास नहीं है विजन
वरिष्ठ वैज्ञानिक आर एस सिन्हा का कहना है कि सरकारों के पास ग्राउंड वाटर संकट के समाधान के लिए कोई विजन नहीं है. 1986 में जब गंगा एक्शन प्लान शुरू हुआ था. लगभग 40 साल होने को हैं. आज भी हम वहीं खड़े हैं नदियों और तालाबों का सरकार प्रबंधन नहीं कर पाए क्योंकि सरकार के पास कोई विजन नहीं है. जिसकी वजह से सरकारों ने अब तक जल संसाधन बचाने के मुद्दे पर कोई फैसला नहीं लिया.


जल प्रबंधन का आकलन कर बनानी होगी योजना
वरिष्ठ वैज्ञानिक आर एस सिन्हा कहना है कि वैज्ञानिक दृष्टि जो पानी निकाला जा रहा है, उसके प्रबंधन की भी व्यवस्था होनी चाहिए. विज्ञान यही कहता है. वर्ष 2020 में एनजीटी ने आदेश दिया कि केंद्र और राज्य सरकार जल प्रबंधन पर ठोस प्रबंधन की योजना बनाएं कि आगे की रणनीति क्या होगी. इस पर सरकार को अध्ययन करना चाहिए और सरकार को अपनी मंशा भी बदलनी होगी. इसके साथ ही सरकार को अपना दायरा भी बढ़ाना होगा कृषि क्षेत्र के लिए अलग-अलग छोटी योजनाएं बनानी पड़ेगी.


तालाब और पोखर जल भंडारण के मजबूत तंत्र
आर एस सिन्हा का कहना है कि तालाब और पोखर जल भंडारण के मजबूत तंत्र होते हैं और यह जल संचयन के अंग होते हैं. प्राकृतिक स्रोत कालांतर में आवश्यकता और बढ़ती लालच के कारण कम हो रहे हैं. जहां खेती के लालच में गांव में तालाबों को पाट दिया गया. वही शहरों में इन तालाबों पर कब्जा करके यहां पर अट्टालिका खड़ी कर दी गई. प्रधानमंत्री ने 'कैच द रेन' का जो नारा दिया है, ये तभी साकार होगा जब सरकार और जनता बेहतर प्रबंधन और सामान्य कर इस पर विचार करेंगे.


लखनऊ में प्रतिवर्ष 1 मीटर नीचे जा रहा भूजल स्तर

वरिष्ठ वैज्ञानिक ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि राजधानी लखनऊ में लगातार भूगर्भ जल का स्तर नीचे जा रहा है. प्रतिवर्ष 1 मीटर की दर से भूजल का स्तर नीचे जा रहा है सरकारी व गैर सरकारी नलकूपों समरसेबल बोरिंग से प्रतिदिन 120 करोड़ लीटर भूजल का दोहन किया जा रहा है. प्रदेश के लगभग 36 जनपदों में भूजल में आर्सेनिक की विषाक्तता पाई गई है. इसके साथ ही प्रदेश के अधिकतर छोटी नदियां भूजल से पोषित है. लेकिन, भूजल के अंधाधुंध दोहन के कारण नदियों में भूजल का रिश्ता लगभग खत्म हो गया है और नदियां रिचार्ज नहीं हो पा रही है. ऐसे में यदि समय रहते इस पर सरकार और जनता ने ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.


विश्व में सर्वाधिक भूजल दोहन करने वाला देश भारत

वरिष्ठ वैज्ञानिक आर एस सिन्हा का कहना है कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भूजल का दोहन करने वाला देश भारत है. पूरे देश की यदि बात की जाए, तो पूरे देश में उत्तर प्रदेश सबसे अधिक भूजल का दोहन करता है. देश के कुल भूजल दोहन का 20 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में निकाला जाता है. यह आधिकारिक भूजल दोहन कहां पड़ा वास्तविक दोहन से बहुत कम है. क्योंकि इसमें औद्योगिक इंफ्रास्ट्रक्चर व्यवसायिक उपयोग में इस्तेमाल होने वाले भूजल दोहन का आकलन नहीं किया जाता है.

इसे भी पढ़े:दो जून की रोटी के लिए 'जद्दोजहद'


आपको बता दें कि देश में लगातार जिस तरह से तालाबों और पोखरों पर लगातार कब्जे हो रहे हैं. ऐसे में भूजल के संचयन के संसाधन खत्म हो रहे हैं. यही कारण है कि लगातार भूगर्भ जल का स्तर नीचे जा रहा है. इसके लिए सरकार के साथ-साथ जनता को भी आगे आना होगा अन्यथा आने वाले दिनों में हम सभी को भुगतने पड़ेंगे.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लगातार अंधाधुंध तरीके से भूगर्भ जल का दोहन किया जा रहा है. तालाबों और पोखरों पर लगातार कब्जे हो रहे हैं. जिसकी वजह से वर्षा जल संचयन की सरकार की योजना भी हवा हवाई साबित हो रही है. ऐसे में पूरा उत्तर प्रदेश गंभीर भू-जल संकट के मुहाने पर खड़ा है. इसको लेकर ना तो सरकारी तंत्र गंभीर है और ना ही जनता. ऐसे में यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में देश और प्रदेश की जनता को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.

गंभीर भू-जल संकट के मुहाने पर खड़ा उत्तर प्रदेश

लगातार हो रही गिरावट

पूरे उत्तर प्रदेश में भू-जल के स्तर में लगातार गिरावट हो रही है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के 70 प्रतिशत विकासखंड भूजल स्तर के गिरावट से प्रभावित हैं. 281 विकासखंड ऐसे हैं, जहां भूजल उपलब्धता के लिए संकट है. अधिकतर शहरी क्षेत्रों में भूजल स्तर में लगातार हो रही गिरावट चिंताजनक है. ऐसे में सरकार के साथ-साथ प्रदेश की जनता को भी इसके लिए आगे आना होगा तभी इस चुनौती से निपटा जा सकेगा.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए भूगर्भ जल पर 40 वर्षों से काम कर रहे वरिष्ठ वैज्ञानिक आर एस सिन्हा ने कहा कि ग्राउंड वाटर जमीन के नीचे पाया जाता है. 80 के दशक में जब केंद्र सरकार ने हरित क्रांति योजना लेकर आई तो नलकूप संस्कृति को बढ़ावा दिया गया. जिसके बाद भूगर्भ का बेतहाशा दोहन किया गया और हम जल संटक के मुहाने पर आकर खड़े हो गए. जहां से वापसी की संभावना बहुत कम लग रही है.

राजधानी लखनऊ में एक लाख से अधिक समर्सिबल पंप
वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि यदि राजधानी लखनऊ की बात की जाए तो लखनऊ में ही एक लाख से अधिक समर्सिबल पंप लगे हुए हैं. यदि पूरे प्रदेश के ग्रामीण और शहरी आंकड़ों पर चर्चा की जाए तो यह संख्या लगभग एक करोड़ के करीब है. समरसेबल से बिना किसी प्लान के सीमा और मानकों को दरकिनार करके लगातार भूगर्भ जल का दोहन किया जा रहा है, जिस कारण कई स्थानों की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है.

सरकारों के पास नहीं है विजन
वरिष्ठ वैज्ञानिक आर एस सिन्हा का कहना है कि सरकारों के पास ग्राउंड वाटर संकट के समाधान के लिए कोई विजन नहीं है. 1986 में जब गंगा एक्शन प्लान शुरू हुआ था. लगभग 40 साल होने को हैं. आज भी हम वहीं खड़े हैं नदियों और तालाबों का सरकार प्रबंधन नहीं कर पाए क्योंकि सरकार के पास कोई विजन नहीं है. जिसकी वजह से सरकारों ने अब तक जल संसाधन बचाने के मुद्दे पर कोई फैसला नहीं लिया.


जल प्रबंधन का आकलन कर बनानी होगी योजना
वरिष्ठ वैज्ञानिक आर एस सिन्हा कहना है कि वैज्ञानिक दृष्टि जो पानी निकाला जा रहा है, उसके प्रबंधन की भी व्यवस्था होनी चाहिए. विज्ञान यही कहता है. वर्ष 2020 में एनजीटी ने आदेश दिया कि केंद्र और राज्य सरकार जल प्रबंधन पर ठोस प्रबंधन की योजना बनाएं कि आगे की रणनीति क्या होगी. इस पर सरकार को अध्ययन करना चाहिए और सरकार को अपनी मंशा भी बदलनी होगी. इसके साथ ही सरकार को अपना दायरा भी बढ़ाना होगा कृषि क्षेत्र के लिए अलग-अलग छोटी योजनाएं बनानी पड़ेगी.


तालाब और पोखर जल भंडारण के मजबूत तंत्र
आर एस सिन्हा का कहना है कि तालाब और पोखर जल भंडारण के मजबूत तंत्र होते हैं और यह जल संचयन के अंग होते हैं. प्राकृतिक स्रोत कालांतर में आवश्यकता और बढ़ती लालच के कारण कम हो रहे हैं. जहां खेती के लालच में गांव में तालाबों को पाट दिया गया. वही शहरों में इन तालाबों पर कब्जा करके यहां पर अट्टालिका खड़ी कर दी गई. प्रधानमंत्री ने 'कैच द रेन' का जो नारा दिया है, ये तभी साकार होगा जब सरकार और जनता बेहतर प्रबंधन और सामान्य कर इस पर विचार करेंगे.


लखनऊ में प्रतिवर्ष 1 मीटर नीचे जा रहा भूजल स्तर

वरिष्ठ वैज्ञानिक ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि राजधानी लखनऊ में लगातार भूगर्भ जल का स्तर नीचे जा रहा है. प्रतिवर्ष 1 मीटर की दर से भूजल का स्तर नीचे जा रहा है सरकारी व गैर सरकारी नलकूपों समरसेबल बोरिंग से प्रतिदिन 120 करोड़ लीटर भूजल का दोहन किया जा रहा है. प्रदेश के लगभग 36 जनपदों में भूजल में आर्सेनिक की विषाक्तता पाई गई है. इसके साथ ही प्रदेश के अधिकतर छोटी नदियां भूजल से पोषित है. लेकिन, भूजल के अंधाधुंध दोहन के कारण नदियों में भूजल का रिश्ता लगभग खत्म हो गया है और नदियां रिचार्ज नहीं हो पा रही है. ऐसे में यदि समय रहते इस पर सरकार और जनता ने ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.


विश्व में सर्वाधिक भूजल दोहन करने वाला देश भारत

वरिष्ठ वैज्ञानिक आर एस सिन्हा का कहना है कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भूजल का दोहन करने वाला देश भारत है. पूरे देश की यदि बात की जाए, तो पूरे देश में उत्तर प्रदेश सबसे अधिक भूजल का दोहन करता है. देश के कुल भूजल दोहन का 20 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में निकाला जाता है. यह आधिकारिक भूजल दोहन कहां पड़ा वास्तविक दोहन से बहुत कम है. क्योंकि इसमें औद्योगिक इंफ्रास्ट्रक्चर व्यवसायिक उपयोग में इस्तेमाल होने वाले भूजल दोहन का आकलन नहीं किया जाता है.

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आपको बता दें कि देश में लगातार जिस तरह से तालाबों और पोखरों पर लगातार कब्जे हो रहे हैं. ऐसे में भूजल के संचयन के संसाधन खत्म हो रहे हैं. यही कारण है कि लगातार भूगर्भ जल का स्तर नीचे जा रहा है. इसके लिए सरकार के साथ-साथ जनता को भी आगे आना होगा अन्यथा आने वाले दिनों में हम सभी को भुगतने पड़ेंगे.

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