आगरा: भले ही देश की राजधानी दिल्ली है, मगर मुगल काल से अबतक आगरा का रुतबा कभी कम नहीं हुआ. मुगल बादशाह अकबर ने ताजनगरी को अपनी राजधानी बनाया था, यहीं से मुगलिया सल्तनत के सारे फैसले होते थे. मुगलकाल में ही यमुना किनारे स्थित सामूगढ़ का युद्ध इतिहास का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. शहंशाह अपने खास बेटे दाराशिकोह को राजगद्दी पर बैठाना चाहते थे. यह बात जब औरंगजेब को पता चली तो वह दक्षिण से आगरा की ओर रवाना हो गया. 29 मई 1658 को औरंगजेब और दाराशिकोह की सेना के बीच ताजनगरी से 15 किमी दूर यमुना किनारे बसे सामूगढ़ (समोगढ) में भीषण युद्ध हुआ. इसमें औरंगजेब को फतह मिली और दाराशिकोह की हार हुई. इस युद्ध से मुगलिया सल्तनत का सुल्तान बदल गया. मुगलिया राजगद्दी पर औरंगजेब आसीन हुआ. शाहजहां के चार पुत्र और पुत्रियां थीं.
मुगल बादशाह शाहजहां के चार पुत्र और दो पुत्रियां थीं. पुत्र में दाराशिकोह, औरंगजेब, शुजा और मुराद थे. दो पुत्रियां जहांआरा और रोशनआरा थीं. शाहजहां अपना उत्तराधिकारी दाराशिकोह को बनाना चाहते थे. दाराशिकोह साहित्य प्रेमी था, वह वीर था. दाराशिकोह कई भाषाओं का जानकार था.
दक्षिण का सूबेदार था औरंगजेब
इतिहासकार राजकिशोर राजे के मुताबिक, शाहजहां ने औरंगजेब को दक्षिण का सूबेदार बनाया था. वह दक्षिण फतह करने के लिए लगातार लड़ाइयां लड़ रहा था. मगर वर्ष 1658 में शाहजहां बीमार पड़ गया और आनन-फानन में दाराशिकोह को मुगलिया तख्त पर ताजपोशी करने की तैयारी शुरू हो गई. उसी दौरान शाहजहां की बेटी रोशनारा ने भाई औरंगजेब को यह सूचना भिजवा दी. औरंगजेब ने मुगलिया सल्तनत के तख्त पर काबिज होने के लिए सेना के साथ आगरा की ओर कूच कर दिया.
दाराशिकोह सेना लेकर रोकने पहुंचा था
जब दाराशिकोह को यह जानकारी हुई कि औरंगजेब सेना के साथ आगरा आ रहा है तो उसने भी अपनी सेना सजा ली. औरंगजेब को रोकने के लिए आगरा से 15 किलोमीटर दूर सामूगढ़ में यमुना किनारे पहुंच गया, जहां औरंगजेब और दाराशिकोह की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ. इस युद्ध में औरंगजेब ने दारा शिकोह को परास्त कर दिया. दाराशिकोह वहां से अपनी जान बचाकर भाग गया.
जीत बदल गई हार में
इतिहासकारों की मानें तो दाराशिकोह वीर था, लेकिन वह औरंगजेब के मुकाबले सेनानायक नहीं था. यही वजह रही कि मुगलिया फौज होने के बाद भी वह औरंगजेब की छोटी सी सेना के आगे हार गया. युद्ध में दाराशिकोह की जीत पक्की थी, लेकिन दाराशिकोह को हाथी पर लड़ता देखकर उसकी सेना में भगदड़ मच गई. जिससे दाराशिकोह की जीत की बाजी हार में बदल गई. एक छोटी सी गलती ने दाराशिकोह को हिंदुस्तान की सल्तनत से दूर कर दिया.
पॉलिटिकल जंग थी
टूरिस्ट गाइड शमशुद्दीन का कहना है कि सामूगढ़ का युद्ध एक पॉलिटिकल जंग थी. मुगलिया राजगद्दी के लिए दाराशिकोह और औरंगजेब के बीच युद्ध हुआ था. इसमें दाराशिकोह को कड़ी शिकस्त मिली. दाराशिकोह संस्कृत का विद्वान भी था. वह शहंशाह का खास था, लेकिन सामूगढ़ के युद्ध से दाराशिकोह की ताजपोशी नहीं हो सकी. वह सुलहकुल का संदेश लाने वाला था. इस तरह मुगलिया सल्तनत की राजगद्दी औरंगजेब को मिली और उसका रुतबा बढ़ गया.
विदेशी पर्यटक आते हैं गांव
सामूगढ़ के ग्रामीण कोमल सिंह का कहना है कि यदि यहां पर कुछ बन जाए तो यहां के लिए बहुत अच्छा होगा. लोग इतिहास में गांव को जानते हैं और देश-विदेश के तमाम लोग यहां आते भी हैं. अगर यहां कुछ बने तो लोगों के लिए अच्छा रहेगा.
खंडहर हो गया सामूगढ़
सामूगढ़ के ग्राम प्रधान करतार सिंह यादव का कहना है कि हमारा गांव पहले सामूगढ़ के नाम से जाना जाता था. यह एक ऐतिहासिक गांव है, यमुना किनारे बसा है. यहां पर दाराशिकोह और औरंगजेब के बीच युद्ध हुआ था. सामूगढ़ अभी खंडहर हो चुका है. यहां से करीब 985 बीघा जमीन लगी है. मगर, जमीन पर अवैध कब्जा हो गया है.
दाराशिकोह का अभिमान ले डूबा
इतिहासकार राजकिशोर राजे के मुताबिक, शाहजहां ने खुद औरंगजेब से लड़ने के लिए तैयारी कर ली थी, लेकिन दाराशिकोह ने शाहजहां को युद्ध करने नहीं जाने दिया. शाहजहां यदि युद्ध करते तो औरंगजेब की सेना के आधे से ज्यादा सैनिक शाहजहां की सेना में शामिल हो जाते, जिससे युद्ध का नतीजा ही बदल जाता. दाराशिकोह ने दूसरी गलती यह की थी कि उसने औरंगजेब की सेना को आराम करने का मौका दिया, नहीं तो औरंगजेब की हारी सेना पर आक्रमण हो जाता और दाराशिकोह की जीत होती. सबसे बड़ी तीसरी गलती दाराशिकोह ने की थी कि जब युद्ध में गोला बारूद चल रहे थे, तो दाराशिकोह हाथी को छोड़कर घोड़े पर सवार हो गए, इससे सैनिकों में भगदड़ मच गई और वह हिंदुस्तान की सल्तनत से कोसो दूर हो गए.