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1857 में हुई गदर की पहली गवाह बनी थी रेजिडेंसी

उत्तर प्रदेश में रेजीडेंसी नवाबों के शहर लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों में से एक है. इसकी स्थापना 1775 ई में नवाब आसफुद्दौला द्वारा कराई गई. यह रेजीडेंसी 1857 में हुई क्रांति का गवाह है. रेजिडेंसी के कई भवन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुई गोलाबारी में पूरे तरीके से क्षतिग्रस्त हो गए थे.

लखनऊ रेजीडेंसी.
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Published : Aug 18, 2019, 8:59 PM IST

लखनऊ: राजधानी की बेलीगारद यानी रेजीडेंसी नवाबों के शहर लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों में से एक है. इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं. रेजीडेंसी अंग्रेजों के खिलाफ हुई 1857 की आजादी की लड़ाई की गवाह भी है. युद्ध के दौरान अंग्रेज रेजीडेंसी में 86 दिन छिपे रहे. रेजीडेंसी का और पुख्ता इतिहास जानने के लिए यहां उत्खनन कार्य भी कराया गया, जिसमें कई अवशेष प्राप्त हुए.

जानकारी देते इतिहासकार योगेश प्रवीन.


रेजीडेंसी के परिसर में कई इमारते हैं, इसलिए यह कई इमारतों का समूह है. इसकी स्थापना 1775 ई में हुई. उन दिनों लखनऊ को अवध नाम से जाना जाता था. यह स्थापना तब की गई, जब फैजाबाद से राजधानी अवध में स्थानांतरित हुई. नवाब आसफुद्दौला द्वारा इसका निर्माण सन 1775 ई में ब्रिटिश अफसरों के रहने के लिए शुरू कराया गया, जिसे नवाब सादत अली खान द्वारा सन 1800 ई में पूरा कराया गया.

पढ़ें- योगी सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार कल, नए मंत्रियों को दिलाई जाएगी शपथ


बेली गार्ड गेट-
बेली गार्ड गेट रेजीडेंसी के प्रवेश पर स्थित है, जिसका निर्माण नवाब सादत अली खान ने 19वीं सदी में लखनऊ के रेजीडेंट कैप्टन बेली के सम्मान में कराया था.


ट्रेजरी हाउस-
ट्रेजरी हाउस का निर्माण 1851 में 16 हजार 897 रुपये में हुआ था. यह एक तल का भवन था, जो दोहरे स्तंभों पर आधारित था. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस ट्रेजरी का प्रयोग एनफील्ड कारतूस बनाने के कारखानों के रूप में हुआ था.

पढ़ें- सीएम योगी ने गोरखपुर को 55.30 करोड़ रुपये की दी सौगात


मेन बिल्डिंग-
इसके मेन बिल्डिंग में अंग्रेज रहा करते थे. इसी रेजीडेंस के चलते पूरे परिसर का नाम रेजीडेंसी पड़ा. यह मूल रूप से तीन मंजिला इमारत थी. इसके पूर्व दिशा में उसका मेन गेट और पोर्टिको था. पश्चिम भाग में उचित स्थानों से बनाए चौड़ा बरामदा था, जिसकी छत पर जाने के लिए घुमावदार सीड़िया भी थी. इस भवन में कई ऊंची-ऊंची खिड़कियां थी. इमारत के दक्षिण भाग में गहरे तहखाने थे, जहां गर्मियों में रहने वाले अंग्रेजों को काफी राहत मिलती थी. 1857 की घेराबंदी के दौरान महिलाओं ने इसी भवन में शरण ली थी.


म्यूजियम-
मेन बिल्डिंग में ही एक हिस्से में म्यूजियम बनाया गया है. इस भवन में 1857 से पूर्व की स्थिति दर्शाते हुए रेजिडेंसी परिसर का मॉडल लिथोग्राफ उत्खनन में प्राप्त हुई वस्तुएं आदि मौजूद है. इसी म्यूजियम में एक कमरा है, जहां पाल्मर नामक अंग्रेज की गोलाबारी मे मृत्यु हुई थी.

पढ़ें- आज के दिन ही वीर सपूतों की शहादत से 'लाल' हो गया था लालबाग पार्क


संत मैरी चर्च और कब्रिस्तान-
इसका निर्माण 1810 में गोथिक शैली के आधार पर हुआ था. इस चर्च के अंदर एक कब्रिस्तान बनाया गया है, जिसमें 1857 के युद्ध के बाद लगभग 2,000 अंग्रेज सैनिकों, औरतों और बच्चों को दफनाया गया था.


स्पेशल फीचर-
यूं तो पूरी रेजीडेंसी ही मुख्य है, लेकिन दर्शकों के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र यहां रखी तोपे हैं. रेजीडेंसी मेन बिल्डिंग के दोनों तरफ दो-दो बड़ी तोप रखी गई हैं और साथ ही लगभग 8 से 10 छोटी तोपे भी रखी हुई हैं. रेजीडेंसी में नेत्र हीन व्यक्तियों के लिए ब्रेल लिपि बोर्ड को जगह-जगह लगाया गया है, जिससे उन्हे प्रत्येक इमारतों के बारे में जानकारी आसानी से उपलब्ध हो सके.

लखनऊ: राजधानी की बेलीगारद यानी रेजीडेंसी नवाबों के शहर लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों में से एक है. इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं. रेजीडेंसी अंग्रेजों के खिलाफ हुई 1857 की आजादी की लड़ाई की गवाह भी है. युद्ध के दौरान अंग्रेज रेजीडेंसी में 86 दिन छिपे रहे. रेजीडेंसी का और पुख्ता इतिहास जानने के लिए यहां उत्खनन कार्य भी कराया गया, जिसमें कई अवशेष प्राप्त हुए.

जानकारी देते इतिहासकार योगेश प्रवीन.


रेजीडेंसी के परिसर में कई इमारते हैं, इसलिए यह कई इमारतों का समूह है. इसकी स्थापना 1775 ई में हुई. उन दिनों लखनऊ को अवध नाम से जाना जाता था. यह स्थापना तब की गई, जब फैजाबाद से राजधानी अवध में स्थानांतरित हुई. नवाब आसफुद्दौला द्वारा इसका निर्माण सन 1775 ई में ब्रिटिश अफसरों के रहने के लिए शुरू कराया गया, जिसे नवाब सादत अली खान द्वारा सन 1800 ई में पूरा कराया गया.

पढ़ें- योगी सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार कल, नए मंत्रियों को दिलाई जाएगी शपथ


बेली गार्ड गेट-
बेली गार्ड गेट रेजीडेंसी के प्रवेश पर स्थित है, जिसका निर्माण नवाब सादत अली खान ने 19वीं सदी में लखनऊ के रेजीडेंट कैप्टन बेली के सम्मान में कराया था.


ट्रेजरी हाउस-
ट्रेजरी हाउस का निर्माण 1851 में 16 हजार 897 रुपये में हुआ था. यह एक तल का भवन था, जो दोहरे स्तंभों पर आधारित था. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस ट्रेजरी का प्रयोग एनफील्ड कारतूस बनाने के कारखानों के रूप में हुआ था.

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मेन बिल्डिंग-
इसके मेन बिल्डिंग में अंग्रेज रहा करते थे. इसी रेजीडेंस के चलते पूरे परिसर का नाम रेजीडेंसी पड़ा. यह मूल रूप से तीन मंजिला इमारत थी. इसके पूर्व दिशा में उसका मेन गेट और पोर्टिको था. पश्चिम भाग में उचित स्थानों से बनाए चौड़ा बरामदा था, जिसकी छत पर जाने के लिए घुमावदार सीड़िया भी थी. इस भवन में कई ऊंची-ऊंची खिड़कियां थी. इमारत के दक्षिण भाग में गहरे तहखाने थे, जहां गर्मियों में रहने वाले अंग्रेजों को काफी राहत मिलती थी. 1857 की घेराबंदी के दौरान महिलाओं ने इसी भवन में शरण ली थी.


म्यूजियम-
मेन बिल्डिंग में ही एक हिस्से में म्यूजियम बनाया गया है. इस भवन में 1857 से पूर्व की स्थिति दर्शाते हुए रेजिडेंसी परिसर का मॉडल लिथोग्राफ उत्खनन में प्राप्त हुई वस्तुएं आदि मौजूद है. इसी म्यूजियम में एक कमरा है, जहां पाल्मर नामक अंग्रेज की गोलाबारी मे मृत्यु हुई थी.

पढ़ें- आज के दिन ही वीर सपूतों की शहादत से 'लाल' हो गया था लालबाग पार्क


संत मैरी चर्च और कब्रिस्तान-
इसका निर्माण 1810 में गोथिक शैली के आधार पर हुआ था. इस चर्च के अंदर एक कब्रिस्तान बनाया गया है, जिसमें 1857 के युद्ध के बाद लगभग 2,000 अंग्रेज सैनिकों, औरतों और बच्चों को दफनाया गया था.


स्पेशल फीचर-
यूं तो पूरी रेजीडेंसी ही मुख्य है, लेकिन दर्शकों के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र यहां रखी तोपे हैं. रेजीडेंसी मेन बिल्डिंग के दोनों तरफ दो-दो बड़ी तोप रखी गई हैं और साथ ही लगभग 8 से 10 छोटी तोपे भी रखी हुई हैं. रेजीडेंसी में नेत्र हीन व्यक्तियों के लिए ब्रेल लिपि बोर्ड को जगह-जगह लगाया गया है, जिससे उन्हे प्रत्येक इमारतों के बारे में जानकारी आसानी से उपलब्ध हो सके.

Intro:राजधानी लखनऊ की बेलीगारद यानी रेजिडेंसी नवाबों के शहर लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। इसे देखने के लिए देश विदेश से कई पर्यटक आते हैं। रेजीडेंसी अंग्रेजो के खिलाफ हुई 1857 की आजादी की लड़ाई की गवाह भी है।


Body:रेजिडेंसी के परिसर में कई इमारते हैं अतः यह कई इमारतों का समूह है इसकी स्थापना 1775 ई में हुई। उन दिनों लखनऊ को अवध नाम से जाना जाता था। यह स्थापना तब की गई जब फैजाबाद से राजधानी अवध में स्थानांतरित हुई। नवाब आसफुद्दौला द्वारा इसका निर्माण सन 1775 ई में ब्रिटिश अफसरों के रहने के लिए शुरू कराया गया जिसे नवाब सादत अली खान द्वारा सन 1800 ई में पूरा कराया गया।

रेजिडेंसी के कई भवन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुई गोलाबारी में पूरे तरीके से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। युद्ध के दौरान अंग्रेज रेजिडेंसी में 86 दिन छुपी रहे रेजिडेंसी का और पुख्ता इतिहास जानने के लिए यहां उत्खनन कार्य भी कराया गया जिसमें कई अवशेष प्राप्त हुए।

1- बेली गार्ड गेट-
बेली गार्ड गेट रेजीडेंसी के प्रवेश पर स्थित है जिसका निर्माण नवाब सादत अली खान ने 19वीं सदी में लखनऊ के रेजिडेंट कैप्टन बेली के सम्मान में कराया था।

2- ट्रेजरी हाउस-
ट्रेजरी हाउस का निर्माण 1851 में ₹16897 में हुआ था यह एक तल का भवन था जो दोहरे स्तंभों पर आधारित था 18 सो 57 के स्वतंत्रता संग्राम में इस ट्रेजरी का प्रयोग एनफील्ड कारतूस बनाने के कारखानों के रूप में हुआ था।

3- मेन बिल्डिंग-
इस मैन बिल्डिंग में अंग्रेज रहा करते थे इसी रेजिडेंस के चलते पूरे परिसर का नाम रेजिडेंसी पड़ा यह मूल रूप से 3 मंजिला इमारत थी इसके पूर्व दिशा में उस का मेन गेट और पोर्टिको था पश्चिम भाग में उचित स्थानों से बनाए चौड़ा बरामदा था जिसकी छत पर जाने के लिए घुमावदार चिड़िया भी थी इस भवन में कई उची उची खिड़कियां थी इमारत के दक्षिण भाग में गहरे तहखाने थे जहां गर्मियों में रहने वाले अंग्रेजों को काफी राहत मिलती थी 1857 की घेराबंदी के दौरान महिलाओं ने इसी भवन में शरण ली थी।

4- म्यूज़ियम-
मैन बिल्डिंग में ही एक हिस्से में म्यूजियम बनाया गया है इस भवन में 1857 से पूर्व की स्थिति दर्शाते हुए रेजिडेंसी परिसर का मॉडल लिथोग्राफ उत्खनन में प्राप्त हुई वस्तुएं आदि मौजूद है।
इसी म्यूज़ियम में एक कमरा है जहाँ सुनना पाल्मर नामक अंग्रेज की गोलाबारी मे मृतु हुई थी।

5- संत मैरी चर्च और कब्रिस्तान-
इस चीज का निर्माण 1810 में गोथिक शैली के आधार पर हुआ था इस चर्च के अंदर एक कब्रिस्तान बनाया गया है जिसमें 1857 के युद्ध के बाद लगभग 2,000 अंग्रेज सैनिकों, औरतों और बच्चों को दफनाया गया था।

स्पेशल फीचर-

यूं तो पूरी रेजिडेंसी ही मुख्य है परंतु दर्शकों के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र यहां रखी तोपे हैं रेजिडेंसी मेन बिल्डिंग के दोनों तरफ दो-दो बड़ी तोप रखी गई हैं और साथ ही लगभग 8 से 10 छोटी तोपे भी रखी हुई हैं।

रेजीडेंसी में नेत्र हीन व्यक्तियों के लिए ब्रेल लिपि बोर्ड को जगह जगह लगाया गया है जिससे उन्हे प्रत्येक इमारतों के बारे में जानकारी आसानी से उपलब्ध हो सके।

बाइट- योगेश प्रवीन (इतिहासकार)
बाइट- सिमरन
बाइट-संदीप
बाइट-हंसराज



Conclusion:लखनऊ मैं स्थित यह ऐतिहासिक इमारत आज भी 1857 में हुवे गदर के इतिहास की गवाह है। इसे देखने लोग दूर दूर से आते है।

योगेश मिश्रा लखनऊ
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