लखनऊ : UP Assembly Elections 2022 : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव की सियासी रणभूमि में युद्ध जीतने और सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने को लेकर बेहतरीन सियासी रणनीति बनाने का काम किया है. अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी के कई बड़े नेताओं को समाजवादी पार्टी में शामिल कराकर बीजेपी में भगदड़ मचा दी है.
कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी सहित करीब एक दर्जन विधायक समाजवादी पार्टी से जुड़े. वहीं, इससे पहले अन्य दलों के तमाम बड़े नेताओं को भी समाजवादी पार्टी के साथ जोड़ने में अखिलेश यादव कामयाब हुए हैं. भाजपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद से अब तक करीब 50 से ज्यादा नेता समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं. अपनी इस रणनीति से सत्ता की सियासी पिच पर अखिलेश यादव एक माहिर खिलाड़ी की तरह बैटिंग करते हुए नजर आ रहे हैं. इससे भारतीय जनता पार्टी जिसकी उत्तर प्रदेश में सरकार है वह सबसे ज्यादा परेशान हैं.
ये कुछ सीटें जहां पर बाहरी नेताओं के आने से स्थिति हो गई खराब
- जो बड़े नेता और विधायक अपनी-अपनी पार्टियों का साथ छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथ आए हैं, उनमें बात स्वामी प्रसाद मौर्य से शुरू करते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कर्ष मौर्य रायबरेली ऊंचाहार सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. और इस बार भी ऊंचाहार से ही चुनाव लड़ने की कोशिश में जुटे हुए हैं. ऐसे में ऊंचाहार से समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ मनोज पांडे विधायक हैं और वह समाजवादी सरकार में मंत्री भी रहे हैं. ऐसी स्थिति में इस सीट पर कौन नेता चुनाव लड़ेगा इसको लेकर सस्पेंस बरकरार है.
- बीच में चर्चा भी उठी, कि मनोज पांडे भारतीय जनता पार्टी में जा सकते हैं. लेकिन मनोज पांडे ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए दावा किया कि वह समाजवादी के सिपाही हैं, और भारतीय जनता पार्टी में जाने का कोई सवाल ही नहीं है. वह ऊंचाहार से चुनाव लड़ेंगे और जनता के आशीर्वाद से जीत दर्ज करेंगे. अखिलेश यादव के सामने भी बड़ी चुनौती है कि वह किसे चुनाव लड़ाएंगे. सूत्र बताते हैं कि स्वामी के बेटे को जौनपुर की किसी सीट से चुनाव लड़ाया जा सकता है.
- पूर्वांचल के बलिया में भी स्थिति ठीक नहीं है. बलिया जिले की बांसडीह क्षेत्र से सपा के विधायक वरिष्ठ नेता व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर भी चुनाव लड़े थे. लेकिन जीते रामगोविंद चौधरी थे. इस बार ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को भी इसी सीट से चुनाव लड़ाए जाने की बात कही जा रही है.
- बलिया में फेफना विधानसभा सीट पर बसपा छोड़कर सपा में शामिल हुए अंबिका चौधरी भी दावेदारी कर रहे हैं, और संग्राम सिंह यादव इस सीट से दावेदारी कर रहे हैं. ऐसे में किसे चुनाव लड़ाया जाएगा, यह भी सस्पेंस बना हुआ है.
- इसी प्रकार अंबेडकरनगर की अकबरपुर सीट पर भी पेंच फंसा हुआ है. बहुजन समाज पार्टी के वरिष्ठ नेता और बसपा के विधायक राम अचल राजभर यहां से विधायक हैं. वह भी समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं. ऐसे में अकबरपुर सीट से चुनाव लड़ते रहे समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री राममूर्ति वर्मा के लिए भी, अब परेशानी नजर आने लगी है. दोनों ही ओबीसी समाज के बड़े नेता हैं. ऐसे में अखिलेश यादव किसे चुनाव मैदान में उतारेंगे, यह भी देखना दिलचस्प होगा. सपा से जुड़े नेता कहते हैं कि अखिलेश यादव सीट बदलकर नेताओं को समायोजित करेंगे. हालांकि नेताओं का यह भी कहना है कि राममूर्ति वर्मा को आजमगढ़ की संगड़ी सीट से सपा चुनाव मैदान में उतार सकती है.
- आजमगढ़ में भी भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए पूर्व सांसद रमाकांत यादव भी अपने दोनों बेटों को चुनाव लड़ाने की तैयारी में हैं. आजमगढ़ में ही मुबारकपुर सीट से विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली भी बसपा छोड़कर साइकिल पर सवार हुए हैं. ऐसे में आजमगढ़ में भी काफी अखिलेश यादव के लिए असहज करने वाली है.
- बदायूं जिले में भी स्थिति कुछ ठीक नहीं है. बदायूं की बिल्सी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए अखिलेश यादव ने सहयोगी पार्टी महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य के बेटे चंद्र प्रकाश मौर्य को चुनाव लड़ने की हरी झंडी दी है. खास बात यह है कि बिल्सी सीट से ही भाजपा के विधायक राधा कृष्ण शर्मा ने भी कमल का साथ छोड़कर समाजवादी साइकिल पर सवार हो गए हैं. ऐसे में अब किसे चुनाव मैदान में उतारा जाएगा यह भी सस्पेंस बरकरार है.
- पश्चिम उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में भी स्थिति सपा नेतृत्व को परेशान करने वाली बन गई है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े मुस्लिम चेहरे इमरान मसूद कांग्रेस विधायक मसूद अख्तर के साथ समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं. मसूद अख्तर सहारनपुर देहात से विधायक हैं और पहले यहां से आशु मलिक चुनाव लड़ते रहे हैं. आशु मलिक अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी माने जाते हैं, ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि अब इस सीट पर किस प्रकार से समायोजित करने का काम अखिलेश यादव करेंगे.
- ऐसा ही कुछ हाल बाराबंकी की रामनगर सीट पर है. यहां से पिछले समाज के बड़े नेता बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा को चुनाव लड़ाए जाने की बात कही जा रही है. इस सीट पर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता अरविंद सिंह भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. सपा नेताओं का कहना है कि अरविंद सिंह गोप को दरियाबाद सीट से चुनाव लाए जाने की बात सपा की तरफ से कहीं जा रही है. देखना दिलचस्प होगा रामनगर सीट पर कौन चुनाव लड़ेगा. वहीं, दूसरी तरफ अरविंद सिंह गोप पर बीजेपी नेतृत्व की भी नजर है और अरविंद सिंह गोप भाजपा के संपर्क में है. अगर सपा से टिकट नहीं मिला तो वह भारतीय जनता पार्टी में भी शामिल हो सकते हैं.
- इसी प्रकार मऊ जिले में भी मामला काफी उलझा हुआ है. मऊ विधानसभा सीट पर सपा की सहयोगी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के खाते में जाने की बात कही जा रही है. जहां से मुख्तार अंसारी के चुनाव लड़ने की संभावना है. जबकि समाजवादी पार्टी के टिकट पर दो बार चुनाव लड़ चुके अल्ताफ अंसारी के लिए यह काफी बड़ा झटका माना जा रहा है.
प्रतापगढ़ में भी सहयोगी पार्टी अपना दल की वजह से मामला फंस रहा है. अपना दल की अध्यक्ष कृष्णा पटेल और उनकी बेटी पल्लवी पटेल के चुनाव लड़ने की संभावना जताई जा रही है. प्रतापगढ़ से ही समाजवादी पार्टी के नेता पूर्व विधायक नागेंद्र सिंह और मुन्ना यादव टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. प्रतापगढ़ की विश्वनाथगंज सीट से अपना दल के विधायक आरके वर्मा समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं. ऐसे में यहां से सपा के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री राजाराम पांडे के बेटे संजय यादव का टिकट फंस रहा है.
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क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत ?
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी में इस समय भगदड़ मची हुई है. जो भी मंत्री विधायक टूटकर समाजवादी पार्टी की तरफ आ रहे हैं, तो अखिलेश यादव का कुनबा एक तरह से बढ़ रहा है. वहीं, लहर चारों तरफ है. समाजवादी पार्टी चुनाव जीत रही है. हालांकि, ऐसे में सपा के लिए भी मुसीबत बन सकता है.
क्योंकि जो उनके नेता कार्यकर्ता पिछले 5 साल से जमीन पर काम कर रहे हैं. योगी सरकार की लाठियां खा रहे हैं. पैसा खर्च करके काम कर रहे हैं, अगर उनको टिकट कहीं नहीं मिलता है तो इसका नुकसान हो सकता है. आज जो लोग सपा में आ रहे हैं, वह टिकट के आश्वासन पर ही आ रहे होंगे. तो ऐसे में पार्टी के भीतर उनके नेता कार्यकर्ता हैं, उनमें असंतोष पनपेगा और इसका नुकसान समाजवादी पार्टी को हो सकता है.
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि ऐसे में सवाल यह है कि अखिलेश यादव किस तरह से अपने उन नेताओं, कार्यकर्ताओं को साध पाएंगे, जिन्हें टिकट नहीं मिल पाएगा. यह अखिलेश यादव के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती होगी. अगर अपने कार्यकर्ताओं, नेताओं को वह साध नहीं पाएंगे तो यह निश्चित रूप से अखिलेश यादव के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती होगी और इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ सकता है.
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