लखनऊ: बेटियां किसी से कम नहीं. यह बात राजधानी में रहने वाली शोध छात्रा नीलू शर्मा ने सच करके दिखाया है. छात्रा नीलू की डॉक्यूमेंट्री फिल्म को बेस्ट ऑफ फेस्टिवल अवार्ड से नवाजा गया है. बीते वर्ष में त्रिपुरा में राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया गया था. इस फेस्टिवल में देश की चुनिंदा 126 फिल्मों को चुना गया था. जिसमें छात्रा नीलू की भी फिल्म चयनित की गई थी. नीलू ने कैंसर पीड़ितों को हौसला देने के लिए न केवल शोध किया बल्कि बीबीएयू के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. गोविंद पांडेय के निर्देशन में फिल्म बनाकर साथी शोधार्थियों को कुछ नया करने का हौसला भी दिया. ईटीवी भारत से खास बातचीत में नीलू ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी फिल्मों को चयनित किया है. यह अस्पताल की ओपीडी में दिखाई जाएगी.
16 मिनट की लघु फिल्म
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय की पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की शोधार्थी नीलू शर्मा ने एक बड़ी चुनौती को स्वीकार किया. जिसके बाद उन्होंने बीमारी, कारण, बचाव और हौसले के रंग को मात्र 16 मिनट की लघु फिल्म में जिंदगी का रंग देने का प्रयास किया. छात्रा ने नो कैंसर, कैन क्योर कैंसर और कैन ब्रेक कैंसर नाम से लघु फिल्म बनाई. कैंसर रोगियों के अंदर जीने के हौसला देने वाली 3 लघु फिल्मों का स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने 7 सितंबर को लोकार्पण भी किया था.
शोध छात्रा नीलू शर्मा से पूछे गए कुछ सवालों का अंश
इन फिल्मों के बारे में बताइए?
जवाब: फिल्म कैन ब्रेक कैंसर यह मेरे पीएचडी रिसर्च प्रोजेक्ट का पार्ट था. यह फिल्म उन लोगों को डील करती है जो आम जनमानस धरातल से जुड़े हुए लोग हैं. उन लोगों ने किस तरीके से कैंसर को हराया उनके सक्सेस की यह स्टोरी है.
फिल्म को बनाने का आईडिया कहां से आया?
जवाब: जब मेरा बाबा भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी में रिसर्च में इनरोलमेंट हुआ था तो उस समय मेरे सुपरवाइजर थे गोविंद पांडेय. जिनका स्पेशलाइजेशन फिल्म मेकिंग है. तो हम लोग सोच रहे थे कुछ ऐसे सब्जेक्ट पर काम किया जाए जिससे सोसायटी को कुछ दिया जा सके. इस बीच हमने महसूस किया कि कैंसर जैसी बीमारी को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी है और फिर हमने अपना रिसर्च इस तरीके से डिवाइड किया कि हमने कैंसर को लेकर 3 फिल्में बनाईं. पहली फिल्म आपको सिम्टम्स (Symptom) से डील करती है. जिसमें बताया गया कि हम किन चीजों का इस्तेमाल करें और किसका न करें. हम कैसे कैंसर से बचाव कर सकते हैं. दूसरी फिल्म हमने बनाई कैन क्योर कैंसर. इस फिल्में लखनऊ में होने वाले इलाज को लेकर पूरी जानकारी दी.
फिल्म को बनाने में बजट कहां से आया और कितना खर्च हुआ?
जवाब: बजट की बात करें तो मुझे 2017 में स्वामी विवेकानंद फैलोशिप फॉर सिंगल गर्ल चाइल्ड अवार्ड मिला था. अवार्ड में जितनी भी धनराशि मिली थी उसी को इस फिल्म में खर्च किया है. तीनों फिल्मों को जोड़ कर बात कीजिए तो करीब 4 लाख खर्च हुआ है. डेढ़ साल की पूरी फैलोशिप इन फिल्मों में यूटिलाइज की है.
फिल्म बनाने में किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा?
जवाब: फिल्म को बनाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. सबसे पहले हमारे सामने चुनौती थी कि उन लोगों को ढूंढें जो कैंसर पीड़ित हैं. क्योंकि आज भी लोगों का सोचना है कि अगर वह बता देंगे कि उनको कैंसर है तो उनका समाज से बहिष्कार कर दिया जाएगा. 10 साल की बच्ची जिससे कैंसर में दोनों आंखें चली गई थी, जिसको देखकर मैं काफी द्रवित हुई. जिसके बाद फिल्म बनाने का फैसला किया.
ऐसा क्या खास था फिल्म में जो इसको चुना गया?
जवाब: मुझे याद है कि जब ऑनलाइन इस फिल्म का अनाउंसमेंट हो रहा था तो ज्यूरी ने कहा था कि यह काफी इंस्पिरेशनल और मोटिवेशनल फिल्म है. जिसने कैंसर पेशेंट के चैलेंजेस को एड्रेस किया है. इन फिल्मों से बहुत सारे लोगों को मोटिवेशन मिलेगा. तीनों फिल्में राज्य सरकार ने ले ली हैं. इन फिल्मों को सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में चलाया जाएगा.
इसे भी पढ़ें- सुप्रसिद्ध शायर मुनव्वर राणा के घर आधी रात रायबरेली पुलिस का छापा