लखनऊ: साल 2022 कांग्रेस के लिए बिल्कुल भी शुभ नहीं रहा है. पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली, जिसका जख्म अभी तक भर नहीं पाया है और अब जुलाई माह में कांग्रेस को दो और तगड़े झटके लगने वाले हैं. इनमें एक झटका विधान परिषद में पहली बार कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नेता नहीं होगा, वहीं, दूसरा राज्यसभा में प्रदेश से कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व करने वाला नहीं बचेगा. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल वर्तमान में उत्तर प्रदेश से एक मात्र कांग्रेस के राज्यसभा सांसद हैं. उनका कार्यकाल जुलाई माह में खत्म हो रहा है. वहीं, विधान परिषद की बात करें तो दीपक सिंह कांग्रेस के एक मात्र एमएलसी हैं. उनका भी कार्यकाल जुलाई में खत्म हो रहा है. लिहाजा, विधान परिषद और राज्यसभा में उत्तर प्रदेश कांग्रेस का प्रतिनिधित्व शून्य हो जाएगा.
राज्यसभा की कुल 245 सीटों में से कांग्रेस के पास सिर्फ 33 सीटें ही शेष रह गई हैं. उनमें से अगर सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां से कांग्रेस का एक ही राज्यसभा सांसद है. साल 2016 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल को कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश से राज्यसभा भेजा था. कपिल सिब्बल का कार्यकाल जुलाई 2022 में खत्म हो रहा है. अब जुलाई के बाद उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में कांग्रेस का नेतृत्व करने वाला कोई नेता नहीं बचेगा. कपिल सिब्बल कांग्रेस के उस जी-23 ग्रुप से आते हैं जो लगातार आलाकमान के फैसले पर उंगली उठाते रहते हैं. अब जब राज्यसभा में उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है तो कांग्रेस पार्टी उन्हें किसी अन्य राज्य से राज्यसभा में भेजने की इच्छुक भी नजर नहीं आ रही है.
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11 राज्यसभा सदस्यों का खत्म हो रहा कार्यकाल: उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की जो 11 सीटें खाली हो रही है. उनमें पांच भारतीय जनता पार्टी की, तीन समाजवादी पार्टी की, दो बहुजन समाज पार्टी की और एक कांग्रेस की है. राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के उत्तर प्रदेश से आखिरी सांसद कपिल सिब्बल हैं. इसके अलावा जफर इस्लाम, शिव प्रताप शुक्ला, संजय सेठ, सुरेंद्र नागर, जयप्रकाश निषाद, सुखराम सिंह यादव, रेवती रमण सिंह विशंभर प्रसाद निषाद शामिल हैं. बता दें कि उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के कुल कितने सांसद चुने जाते हैं.
राज्यसभा में नेता विपक्ष का मौका भी गंवा सकती है कांग्रेस: लगातार चुनावों में कांग्रेस पार्टी को करारी शिकस्त मिल रही है. ऐसे में साल 2022 में ही कांग्रेस पार्टी को राज्यसभा में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष के लिए यह जरूरी है कि जिस पार्टी के पास कम से कम 10 फीसदी सीटें हों, वही विपक्ष का नेता रह सकता है, लेकिन हाल ही के पांच राज्यों में हुए चुनाव में कांग्रेस पार्टी को हर जगह हार मिली है. ऐसे में कांग्रेस की 10 फ़ीसदी सीटें आ ही नहीं पा रही हैं. इस साल के आखिर तक देश की 75 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होना है और कांग्रेस के 33 सदस्य ही राज्यसभा में शेष रह गए हैं.
अगर यह संख्या 25 के नीचे आ गई तो कांग्रेस पार्टी राज्यसभा में विपक्ष का पद भी गंवा बैठेगी. इस बार यहां कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में भी शून्य हो जाएगी, वहीं विधान परिषद में भी पहली बार ही कांग्रेस के इतिहास में ऐसा मौका आएगा जब कोई भी एमएलसी कांग्रेस पार्टी का सदन में नहीं होगा. जुलाई माह में ही कांग्रेस के एक मात्र एमएलसी दीपक सिंह का भी कार्यकाल समाप्त हो रहा है.
अब बचेंगे सिर्फ एक एमपी, दो विधायक: उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का अब एक मात्र लोकसभा सांसद और दो विधायक शेष रह गए हैं. लोकसभा सदस्य के रूप में पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी तो विधायक के रूप में आराधना मिश्रा 'मोना' और वीरेंद्र चौधरी पार्टी के उत्तर प्रदेश के खेवनहार रह गए हैं. सोनिया गांधी 2019 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली से जीती थीं तो 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में आराधना मिश्रा 'मोना' रामपुर खास से विधायक बनी थीं और वीरेंद्र चौधरी महाराजगंज की फरेंदा विधानसभा सीट से विधायक बने थे.
वहीं, कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आसिफ रिजवी बताते हैं कि ऐसा पहली बार हो रहा है, जब उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए कांग्रेस पार्टी का कोई भी मेंबर नहीं होगा. साथ ही विधान परिषद में भी कांग्रेस का विधान परिषद सदस्य नहीं होगा. कांग्रेस पार्टी के लिए निश्चित तौर पर यह चिंता का विषय है. लेकिन इसके लिए पार्टी नेता और कार्यकर्ता अब कड़ी मेहनत करेंगे. फिर से कांग्रेस पार्टी को उसी दौर में ले आएंगे, जहां पर कोई भी पार्टी कांग्रेस के सामने नहीं ठहरती थी. हम एक बार फिर 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की बहुमत की सरकार बनाएंगे और फिर से सभी सदनों में कांग्रेस का ही नेतृत्व नजर आएगा.
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