लखनऊ : बिहार में जातिगत जनगणना होने के बाद अब देश के विभिन्न राज्यों में भी इस जनगणना की मांग ने तेजी पकड़ ली है. बिहार की जातिगत जनगणना का विभिन्न जातियों को क्या फायदा मिलेगा? बिहार की जाति का जनगणना का यूपी पर क्या असर होगा? बिहार की तरह यूपी में भी मुस्लिम, यादव फैक्टर है इससे क्या कोई समीकरण बदलेगा? बिहार में ब्राह्मण समेत कई अन्य जातियां दो से ढाई फीसद हैं तो क्या यह अल्पसंख्यक की श्रेणी में आएंगे? यूपी में भी प्रतिशत के आधार पर सामान्य वर्ग और अन्य जातियों की क्या स्थिति है? कुछ ऐसे सवालों को लेकर "ईटीवी भारत" ने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषकों से उनकी राय जानने का प्रयास किया. राजनीतिक विश्लेषकों का यही मानना है कि बिहार में सबको जो पहले हीं पता था वही जातीय जनगणना में सामने आया है.
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का मानना है कि 'बिहार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए हैं, जातीय जनगणना तो यूपी की भी होनी चाहिए. जहां तक बिहार की जनगणना का यूपी में असर होने की बात है तो दोनों जगह के समीकरण अलग-अलग हैं. वहां कुछ जातियों की संख्या ज्यादा है तो यूपी में उन जातियों की संख्या कम है. बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग की संख्या लगभग 63% है. इसी तरह यहां पर जातियों की बात करें तो ब्राह्मण सिर्फ तीन फीसद है कई अन्य जाति भी कम हैं, लेकिन यादव 14% हैं. उत्तर प्रदेश में भी लगभग 18 परसेंट के करीब मुस्लिम हैं. यादवों की संख्या भी तकरीबन 10% है. मुस्लिम-यादव फैक्टर की बात करें तो निश्चित तौर पर जहां एक होते हैं तो असर पड़ता ही है. समीकरण बदलते भी हैं. जहां तक बिहार में ब्राह्मण समेत जो जातियां दो से ढाई फीसद हैं उनको अल्पसंख्यक की श्रेणी में रखने की बात है तो यह धार्मिक आधार पर होता है, जाति आधार पर नहीं. यूपी में अगर प्रतिशत की बात की जाए तो यहां पर ओबीसी की संख्या तकरीबन 74 से 75 फीसद है. एक खास बात यह भी है कि जाति का प्रतिशत ज्यादा होने से भी कुछ होता नहीं है. देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में कुर्मी महज चार फ़ीसद हैं, लेकिन राजनीति में इनका प्रतिनिधित्व 10 फीसद से ज्यादा है. 41 विधायक कुर्मी वर्ग से ही आ रहे हैं.'
राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन का भी मानना है कि 'जातीय जनगणना की जिस तरह पूरे देश में मांग हो रही है, ऐसे में यह जरूरी है कि यूपी में भी जातीय जनगणना हो जानी चाहिए. यूपी में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी लगातार जातीय जनगणना की मांग कर ही रहे हैं. उन्होंने तो 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में 20 बनाम 80 का मुद्दा भी सामने रखा था, उस पर चुनाव भी लड़ा था. बिहार की जातीय जनगणना का यूपी पर असर जरूर होगा. असर तो होता ही है. जहां तक बात एमवाई फैक्टर की है तो फिर बिहार में जिस तरह 14 फीसद यादव हैं और 17 फीसद से ज्यादा मुस्लिम हैं. उत्तर प्रदेश में भी यह देखा गया है कि पिछली विधानसभा चुनाव में ही समाजवादी पार्टी को यादव और मुस्लिम ने मिलकर वोट किया तो उनका 10% वोट ऑटोमेटिक बढ़ गया तो ये बात सही है कि एमवाई फैक्टर का असर तो होता ही है. जहां तक जातियों के फीसद की बात है तो जो एक से दो फीसद हैं उन्हें भी लाभ मिलता ही है. अगर बात की जाए बिहार में जैन धर्म की तो उन्हें आरक्षण मिला है, लेकिन ब्राह्मणों की बात करें तो इन्हें जनगणना के बाद शैक्षिक आधार पर आरक्षण मिल सकता है.