लखनऊ : ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार ने सभी ऊर्जा उत्पादन निगमों व राज्य सरकारों को अपनी आवश्यकता का कुल छह फीसद विदेशी कोयला की खरीद सितंबर तक करने के निर्देश भेज दिए हैं. ऊर्जा मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि "बड़ा कोयला संकट आने वाला है. ऐसे में कोयले की खरीद सुनिश्चित करें. ऐसा न करने पर आवंटित घरेलू कोयले में कटौती की जाएगी." ऊर्जा मंत्रालय के इन निर्देशों पर उपभोक्ता परिषद ने सवाल खड़ा किया और विरोध जताते हुए कहा कि जब देश में कोयले की कोई कमी नहीं है तो फिर इस प्रकार के आदेश देने वालों के खिलाफ कब कार्रवाई होगी?
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि "कोयले की कमी है या नहीं है, इसकी पुष्टि कोयला मंत्रालय को करना है. कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने एक माह पहले सात दिसंबर को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में स्पष्ट किया था कि देश में कोयले की कोई भी कमी नहीं है. अखिल भारतीय कोयला उत्पादन नवंबर 2022 तक देश में पिछले वर्ष की इस अवधि के दौरान तक 17 फीसद अधिक है, वहीं दूसरी तरफ कोयला सचिव अमृतलाल मीणा की तरफ से 13 जनवरी 2023 को जो देश के कैबिनेट सचिव को कोयले के बारे में जानकारी भेजी गई है, उसमें यह स्पष्ट किया गया है कि दिसंबर 2022 के महीने में डोमेस्टिक कोयले का उत्पादन 82.87 मिलियन है, जो दिसंबर 2021 में 74.90 मिलियन टन था. यानी दिसंबर 2022 में 16.12 प्रतिशत अधिक. उन्होंने यह भी लिखा है कि डोमेस्टिक कोयला देश के सभी पावर हाउस को जो दिसंबर 2021 में 55.02 मिलियन टन भेजा गया था वह दिसंबर 2022 में 57.49 मिलियन टन भेजा गया है. यानी लगभग 4.49 प्रतिशत अधिक. अब वही ऊर्जा मंत्रालय भारत सरकार सभी राज्यों से विदेशी कोयला खरीदने के लिए दबाव बना रहा है."
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि "जहां डोमेस्टिक कोयला लिंकेज के आधार पर राज्यों को 2500 रुपए प्रति टन से लेकर 3500 प्रति टन के बीच में प्राप्त होता है, वहीं विदेशी कोयला लगभग रुपया 20 हजार प्रति टन में प्राप्त होगा, यानी 17 गुना अधिक." अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि "देश में कोयले की कोई कमी नहीं है. यह उपभोक्ता परिषद नहीं देश के कोयला मंत्री कह रहे हैं. कोयला सचिव की तरफ से चार दिन पहले कैबिनेट सचिव भारत सरकार को भेजी गई रिपोर्ट भी यह दर्शा रही है कि देश में कोयले की कमी नहीं है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ विदेशी कोयला खरीद कराने के लिए देश का ऊर्जा मंत्रालय सभी ऊर्जा निगमों के पीछे पड़ा है. यह अपने आप में बहुत गंभीर मामला है. देश के प्रधानमंत्री को इस पूरे मामले की सीबीआई से जांच करवाना चाहिए. कभी स्मार्ट प्रीपेड मीटर को ऊंची दरों पर खरीदवाने के लिए दबाव बनाया जाता है तो कभी विदेशी कोयला की खरीद कराने का दबाव बनाया जाता है. यह उपभोक्ता विरोधी कार्रवाई को दर्शाता है."
उन्होंने कहा कि "पहले गर्मी में कोयले संकट की बात होती थी, इस बार जनवरी महीने में ही कोयला संकट शुरू हो गया. सच्चाई यह है कि अगर रेलवे सभी राज्यों को एग्रीमेंट किए गए रेलवे रैक की उपलब्धता सुनिश्चित करा दे तो किसी भी राज्य में कोयले का संकट होगा ही नहीं."
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