लखनऊ : इस्लाम धर्म में गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद को बेहद अहम माना गया है. यही वजह है कि ज़कात, खैरात से लेकर हर त्योहार में गरीबों को भी हिस्सेदार बनाया गया है. बकरीद में गोश्त का एक हिस्सा जहां गरीबों में बांटना लाज़मी है. वहीं ईद के त्योहार से पहले सदका ए फित्र निकालना भी ज़रूरी करार दिया गया है. फित्र हर उम्र के शख्स पर निकालना वाजिब है. जानिए इस वर्ष फित्र की क्या रक़म तय की गई है.
इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के चेयरमैन मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने बताया कि ईद का दिन मजहब ए इस्लाम में सबसे खुशी का दिन माना जाता है. इस्लामी शरीयत यह चाहती है कि इस दिन कोई भी मुसलमान ऐसा ना रहे जो ईद की खुशियां ना मना सके. मौलाना फरंगी महली ने कहा कि जो भी साहिबे हैसियत मुसलमान हैं, उनको चाहिए कि अपनी और अपनी नाबालिग औलाद की भी तरफ से इसी रमजान महीने या ईद की नमाज से पहले तक सदका ए फित्र निकाल दे और गरीब व मिस्कीन में बांट दे. जिससे कि वह भी हमारे साथ ईद की खुशियों में शामिल हो सकें.
मौलाना ने कहा कि अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से लोगों को फित्र अदा करना होता है. शरीयत में हर तबके के लोगों के लिए उनके हिसाब से सदका ए फित्र अदा करने की बात कही गई है. मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि दारुल इफ्ता फरंगी महल ने इस वर्ष फित्र की रकम को अलग अलग लोगों के हिसाब से मुकर्रर किया है. अगर कोई शख्स गेहूं के हिसाब से फित्र देता है तो वह 60 रुपये प्रति व्यक्ति है, जौ के हिसाब से 160 रुपये प्रति व्यक्ति, खजूर के हिसाब से 955 रुपये प्रति व्यक्ति, किशमिश के हिसाब से 1050 रुपये प्रति व्यक्ति देना होगा. अगर रमज़ान में ज़कात और फित्र के निज़ाम का हम सबने पूरी ईमानदारी से अमल कर लिया तो न केवल हमारे शहर में बल्कि पूरे मुल्क में कोई भी ऐसा मुसलमान नहीं दिखेगा जो कि हमारे साथ ईद की खुशियों में शरीक न हो.
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