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घोसी सीट की पराजय दारा सिंह चौहान और ओम प्रकाश राजभर के अरमानों पर फेर सकती है पानी - UP Bureau Chief Alok Tripathi

घोसी उपचुनाव में दारा सिंह चौहान और ओम प्रकाश राजभर की पराजय से दोनों दो धुरंधरों की सियासी रणनीति फेल हो चुकी है. ऐसे में उन्हें किसी नए समीकरण के साथ जनता के बीच जाना होगा. साथ ही बीजेपी को भी अपनी रणनीति में बदलाव करना जरूरी हो गया है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 11, 2023, 5:20 PM IST

लखनऊ : मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव मैं भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान की पराजय कई मायने में अहम है. ‌ इस सीट पर मिली जीत ने एक ओर तो समाजवादी पार्टी को मनोवैज्ञानिक बढ़त दिला दी है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी दारा सिंह चौहान और कुछ दिन पहले भारतीय जनता पार्टी गठबंधन का हिस्सा बने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के सपनों पर पानी फेरने जैसा है. दारा सिंह चौहान ने जब समाजवादी पार्टी और अपनी विधायकी छोड़ भाजपा में शामिल होने का फैसला किया. शायद इस समय भाजपा नेतृत्व ने उन्हें आश्वासन दिया था कि जीतने पर उन्हें मंत्री बना दिया जाएगा. ओमप्रकाश राजभर भी भाजपा में यही सपना लेकर आए थे. सुभासपा के गढ़ वाली इस सीट पर पराजय ने उनके सपने पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है.

यूपी की बात.
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वर्ष 2017 में जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ पहली बार मुख्यमंत्री बने, तब भारतीय जनता पार्टी के मंत्रियों की सूची में दारा सिंह चौहान का नाम भी शामिल था. दारा सिंह ने लगभग पांच साल कैबिनेट मंत्री के रूप में सत्ता सुख भोगा. हालांकि ऐन चुनाव के मौके पर टिकट कटने के डर से उन्होंने भाजपा छोड़ सपा का दामन थाम लिया था. घोसी सीट समाजवादी पार्टी के प्रभाव वाली रही है और इस सीट पर मुस्लिम, दलित और पिछड़ों की अच्छी खासी तादात है. वर्ष 2022 में दारा सिंह चौहान भी इसी वजह से इस सीट पर चुनाव जीते थे, क्योंकि वह समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी थे. इससे पहले घोसी कभी भी उनका चुनाव क्षेत्र नहीं रहा था. योगी दूसरी बार भी प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रहे. ऐसे में दारा सिंह ने सत्ता पक्ष के साथ जाने में भलाई समझी. इसलिए उन्होंने अपने सत्ता के साथियों से संपर्क किया और घर वापसी कर ली. कहा जाता रहा है कि उपचुनाव सत्तारूढ़ दल का ही होता है. ऐसे में दारा सिंह चौहान को अनुमान रहा होगा कि वह भाजपा में आकर भी चुनाव जीत लेंगे. हालांकि यह उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई और उन्हें पराजित होना पड़ा.

यूपी की बात.
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यूपी की बात.
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घोसी उप चुनाव सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में जी जान से चुनाव प्रचार में जुटे थे. उन्होंने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, जिनके साथ 2022 में गठबंधन कर वह विधानसभा का चुनाव लड़े थे और अब भाजपा के साथ आ चुके हैं, पर खूब निशाना साधा. अक्सर अपने बड़बोले बयानों के लिए जाने जाने वाले ओमप्रकाश राजभर ने सपा की आलोचना और उसे हाशिए तक घसीट कर ले जाने की बातें चुनाव में बढ़-चढ़कर कीं. भारतीय जनता पार्टी को भी लगता था कि ओम प्रकाश राजभर इस सीट पर भाजपा की विजय गाथा लिखने में बड़ी भूमिका अदा करेंगे. हालांकि उनके दावे आंधी में फूस की तरह उड़ गए‌. समाजवादी पार्टी और उसके मुखिया अखिलेश यादव को सबक सिखाने की ओमप्रकाश राजभर की ख्वाहिश धरी रह गई. इस पराजय के साथ ही ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान दोनों का ही मंत्री बनने का सपना पूरा हो पाएगा इस पर सवाल उठने लगे हैं. भाजपा ऐसे कमजोर महारथियों पर दांव क्यों लगाएगी?

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लखनऊ : मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव मैं भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान की पराजय कई मायने में अहम है. ‌ इस सीट पर मिली जीत ने एक ओर तो समाजवादी पार्टी को मनोवैज्ञानिक बढ़त दिला दी है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी दारा सिंह चौहान और कुछ दिन पहले भारतीय जनता पार्टी गठबंधन का हिस्सा बने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के सपनों पर पानी फेरने जैसा है. दारा सिंह चौहान ने जब समाजवादी पार्टी और अपनी विधायकी छोड़ भाजपा में शामिल होने का फैसला किया. शायद इस समय भाजपा नेतृत्व ने उन्हें आश्वासन दिया था कि जीतने पर उन्हें मंत्री बना दिया जाएगा. ओमप्रकाश राजभर भी भाजपा में यही सपना लेकर आए थे. सुभासपा के गढ़ वाली इस सीट पर पराजय ने उनके सपने पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है.

यूपी की बात.
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वर्ष 2017 में जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ पहली बार मुख्यमंत्री बने, तब भारतीय जनता पार्टी के मंत्रियों की सूची में दारा सिंह चौहान का नाम भी शामिल था. दारा सिंह ने लगभग पांच साल कैबिनेट मंत्री के रूप में सत्ता सुख भोगा. हालांकि ऐन चुनाव के मौके पर टिकट कटने के डर से उन्होंने भाजपा छोड़ सपा का दामन थाम लिया था. घोसी सीट समाजवादी पार्टी के प्रभाव वाली रही है और इस सीट पर मुस्लिम, दलित और पिछड़ों की अच्छी खासी तादात है. वर्ष 2022 में दारा सिंह चौहान भी इसी वजह से इस सीट पर चुनाव जीते थे, क्योंकि वह समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी थे. इससे पहले घोसी कभी भी उनका चुनाव क्षेत्र नहीं रहा था. योगी दूसरी बार भी प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रहे. ऐसे में दारा सिंह ने सत्ता पक्ष के साथ जाने में भलाई समझी. इसलिए उन्होंने अपने सत्ता के साथियों से संपर्क किया और घर वापसी कर ली. कहा जाता रहा है कि उपचुनाव सत्तारूढ़ दल का ही होता है. ऐसे में दारा सिंह चौहान को अनुमान रहा होगा कि वह भाजपा में आकर भी चुनाव जीत लेंगे. हालांकि यह उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई और उन्हें पराजित होना पड़ा.

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घोसी उप चुनाव सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में जी जान से चुनाव प्रचार में जुटे थे. उन्होंने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, जिनके साथ 2022 में गठबंधन कर वह विधानसभा का चुनाव लड़े थे और अब भाजपा के साथ आ चुके हैं, पर खूब निशाना साधा. अक्सर अपने बड़बोले बयानों के लिए जाने जाने वाले ओमप्रकाश राजभर ने सपा की आलोचना और उसे हाशिए तक घसीट कर ले जाने की बातें चुनाव में बढ़-चढ़कर कीं. भारतीय जनता पार्टी को भी लगता था कि ओम प्रकाश राजभर इस सीट पर भाजपा की विजय गाथा लिखने में बड़ी भूमिका अदा करेंगे. हालांकि उनके दावे आंधी में फूस की तरह उड़ गए‌. समाजवादी पार्टी और उसके मुखिया अखिलेश यादव को सबक सिखाने की ओमप्रकाश राजभर की ख्वाहिश धरी रह गई. इस पराजय के साथ ही ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान दोनों का ही मंत्री बनने का सपना पूरा हो पाएगा इस पर सवाल उठने लगे हैं. भाजपा ऐसे कमजोर महारथियों पर दांव क्यों लगाएगी?

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