ETV Bharat / state

कोरोना काल में लाखों रुपये की लागत से तैयार आइसोलेशन कोच हुए बेकार

author img

By

Published : Dec 13, 2020, 4:41 PM IST

राजधानी लखनऊ में कोरोना के बढ़ते मरीजों की संख्या को देखते हुए रेलवे प्रशासन ने ट्रेन की बोगियों को आइसोलेशन वार्ड बनाने का फैसला लिया था. इसके तहत 300 आइसोलेशन कोच बनाए गए थे, लेकिन ये काम नहीं आए.

आइसोलेशन कोच अब बेकार
आइसोलेशन कोच अब बेकार

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में कोरोना के मरीजों की तेजी से बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए सरकार ने ट्रेन की बोगियों को आइसोलेशन वार्ड में तब्दील करने का फैसला लिया था. उत्तर और पूर्वोत्तर रेलवे को मिलाकर लगभग 300 आइसोलेशन कोच तैयार किए गए थे. इन्हें वार्ड के साथ ही स्टेशन पर खड़ा कर दिया गया था. तकरीबन तीन माह तक खड़े रहने के बावजूद आइसोलेशन कोच का कोई इस्तेमाल ही नहीं हुआ, जिससे रेलवे के 60 लाख रुपये से ज्यादा खर्च भी हो गए और मरीजों को कोई लाभ भी नहीं मिला. रेलवे प्रशासन अब इन आइसोलेशन कोच को वापस जनरल बोगियों में तब्दील करने की तैयारी कर रहा है. कई कोच मंडल के दूसरे स्टेशनों पर शिफ्ट भी किए गए हैं.

जनरल कोच में किया जाएगा तब्दील
कोरोना में मरीजों को इलाज की बेहतर सुविधा मिल सके इसके लिए रेलवे ने आइसोलेशन कोच बनाने का खाका तैयार किया था. रेल मंत्रालय की मुहर लगने के बाद सभी जोनों को आइसोलेशन कोच बनाने के निर्देश दिए गए. उत्तर रेलवे ने 250 आइसोलेशन कोच तैयार किए तो पूर्वोत्तर रेलवे ने कुल 50 कोच बनाए. उत्तर रेलवे ने हर कोच पर 17,800 रुपये खर्च किए, जबकि पूर्वाेत्तर रेलवे ने उत्तर रेलवे की तुलना में करीब दोगुनी लागत खर्च की. पूर्वोत्तर रेलवे में प्रति कोच 32 हजार रुपये का खर्च आया. इतना पैसा खर्च कर तैयार हुए आइसोलेशन कोचों को मरीज नहीं मिले. अधिकारी इसके पीछे अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होना वजह मानते हैं. इसके बाद रेलवे प्रशासन ने इन्हें मंडल के दूसरे स्टेशनों पर मरीजों की राहत के लिए रवाना कर दिया. तीन माह तक यार्ड और स्टेशन पर खड़े रखने के बाद अभी इन कोच की आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही है. सरकार से निर्देश मिलते ही इन्हें वापस जनरल कोच में तब्दील भी किया जाएगा.

जरूरत पड़ने पर मऊ भेजे गए आइसोलेशन कोच
उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के रेल प्रबंधक संजय त्रिपाठी बताते हैं कि आइसोलेशन कोच का इस्तेमाल नहीं होने की वजह से इन्हें दूसरे स्टेशनों पर भेज दिया गया. इसमें लखनऊ से मऊ भेजे गए आइसोलेशन कोच प्रयोग में लाए गए हैं. मऊ में मरीजों को भर्ती कराया गया था. इसके बाद फैजाबाद में भी कुछ मरीज भर्ती हुए.

यह है आइसोलेशन कोच की खासियत

  • मच्छरों से बचाने के लिए खिड़कियों पर मच्छरदानी
  • प्रत्येक कोच में आठ केबिन
  • चिकित्सकों, पैरामेडिकल स्टाफ के लिए अलग केबिन की व्यवस्था
  • सूखे, गीले और अपशिष्ट पदार्थाें के लिए अलग-अलग डस्टबिन
  • मरीजों के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था
  • हर केबिन के बाहर प्लास्टिक के ट्रांसपैरंट पर्दे

यह है मरीज न मिलने की वजह

आइसोलेशन कोच में मरीज न आने की वजह रही रेलवे के इंडोर अस्पताल को 250 बेड का कोविड केयर सेंटर बना देना. इसके अलावा हज हाउस को भी कोविड केयर सेंटर के रूप में तैयार करना. इन्हीं दोनों कोविड सेंटरों पर जब एल-1 श्रेणी के मरीजों के लिए बेड खाली रह गए तो आइसोलेशन कोच की आवश्यकता ही नहीं हुई.


लखनऊ: राजधानी लखनऊ में कोरोना के मरीजों की तेजी से बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए सरकार ने ट्रेन की बोगियों को आइसोलेशन वार्ड में तब्दील करने का फैसला लिया था. उत्तर और पूर्वोत्तर रेलवे को मिलाकर लगभग 300 आइसोलेशन कोच तैयार किए गए थे. इन्हें वार्ड के साथ ही स्टेशन पर खड़ा कर दिया गया था. तकरीबन तीन माह तक खड़े रहने के बावजूद आइसोलेशन कोच का कोई इस्तेमाल ही नहीं हुआ, जिससे रेलवे के 60 लाख रुपये से ज्यादा खर्च भी हो गए और मरीजों को कोई लाभ भी नहीं मिला. रेलवे प्रशासन अब इन आइसोलेशन कोच को वापस जनरल बोगियों में तब्दील करने की तैयारी कर रहा है. कई कोच मंडल के दूसरे स्टेशनों पर शिफ्ट भी किए गए हैं.

जनरल कोच में किया जाएगा तब्दील
कोरोना में मरीजों को इलाज की बेहतर सुविधा मिल सके इसके लिए रेलवे ने आइसोलेशन कोच बनाने का खाका तैयार किया था. रेल मंत्रालय की मुहर लगने के बाद सभी जोनों को आइसोलेशन कोच बनाने के निर्देश दिए गए. उत्तर रेलवे ने 250 आइसोलेशन कोच तैयार किए तो पूर्वोत्तर रेलवे ने कुल 50 कोच बनाए. उत्तर रेलवे ने हर कोच पर 17,800 रुपये खर्च किए, जबकि पूर्वाेत्तर रेलवे ने उत्तर रेलवे की तुलना में करीब दोगुनी लागत खर्च की. पूर्वोत्तर रेलवे में प्रति कोच 32 हजार रुपये का खर्च आया. इतना पैसा खर्च कर तैयार हुए आइसोलेशन कोचों को मरीज नहीं मिले. अधिकारी इसके पीछे अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होना वजह मानते हैं. इसके बाद रेलवे प्रशासन ने इन्हें मंडल के दूसरे स्टेशनों पर मरीजों की राहत के लिए रवाना कर दिया. तीन माह तक यार्ड और स्टेशन पर खड़े रखने के बाद अभी इन कोच की आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही है. सरकार से निर्देश मिलते ही इन्हें वापस जनरल कोच में तब्दील भी किया जाएगा.

जरूरत पड़ने पर मऊ भेजे गए आइसोलेशन कोच
उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के रेल प्रबंधक संजय त्रिपाठी बताते हैं कि आइसोलेशन कोच का इस्तेमाल नहीं होने की वजह से इन्हें दूसरे स्टेशनों पर भेज दिया गया. इसमें लखनऊ से मऊ भेजे गए आइसोलेशन कोच प्रयोग में लाए गए हैं. मऊ में मरीजों को भर्ती कराया गया था. इसके बाद फैजाबाद में भी कुछ मरीज भर्ती हुए.

यह है आइसोलेशन कोच की खासियत

  • मच्छरों से बचाने के लिए खिड़कियों पर मच्छरदानी
  • प्रत्येक कोच में आठ केबिन
  • चिकित्सकों, पैरामेडिकल स्टाफ के लिए अलग केबिन की व्यवस्था
  • सूखे, गीले और अपशिष्ट पदार्थाें के लिए अलग-अलग डस्टबिन
  • मरीजों के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था
  • हर केबिन के बाहर प्लास्टिक के ट्रांसपैरंट पर्दे

यह है मरीज न मिलने की वजह

आइसोलेशन कोच में मरीज न आने की वजह रही रेलवे के इंडोर अस्पताल को 250 बेड का कोविड केयर सेंटर बना देना. इसके अलावा हज हाउस को भी कोविड केयर सेंटर के रूप में तैयार करना. इन्हीं दोनों कोविड सेंटरों पर जब एल-1 श्रेणी के मरीजों के लिए बेड खाली रह गए तो आइसोलेशन कोच की आवश्यकता ही नहीं हुई.


ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.