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रणनीति बनाने में जुटे राधा मोहन सिंह, क्या तोड़ पाएंगे अमित शाह का रिकॉर्ड

पूर्व केंद्रीय मंत्री राधा मोहन सिंह को यूपी का प्रभारी नियुक्त किया गया है. बिहार के कद्दावर नेता राधा मोहन सिंह यूपी विधानसभा चुनाव के लिए अभी से ही रणनीति बनाने में जुट गए हैं. अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान उन्होंने सहज और सरल रहकर कठिन परिश्रम करने का संदेश दिया है.

राधा मोहन सिंह.
राधा मोहन सिंह.
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Published : Dec 2, 2020, 8:43 PM IST

लखनऊः प्रभारी रहते अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में जो इतिहास रचा था, उसे तोड़ने के लिए बिहार के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राधा मोहन सिंह जुट गए हैं. यह बात यूपी बीजेपी के प्रभारी राधा मोहन सिंह खुद से भले ही न कहें, लेकिन उनके मन में लक्ष्य यही होगा. प्रभारी बनाए जाने के बाद योजनाबद्ध तरीके से उन्होंने जिस प्रकार काम करना शुरू किया है, वह तो यही बताता है. अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान उन्होंने सहज और सरल रहकर कठिन परिश्रम करने का संदेश दिया है.

राधा मोहन सिंह बने यूपी प्रभारी.

सबको साथ लेकर चलने की दिखी रणनीति
राधा मोहन सिंह बिहार प्रांत के दो बार अध्यक्ष रहे हैं. मोदी की पहली सरकार में वह कृषि मंत्री रहे. उत्तर प्रदेश भाजपा के 2010 में सह प्रभारी बनाए गए थे. इतने लंबे अनुभव के साथ प्रभारी की भूमिका में राधा मोहन सिंह पर सभी की नजरें हैं. जिस प्रकार से उन्होंने लखनऊ आकर काम शुरू किया है, उसमें उनका अनुभव भी दिख रहा है. राधा मोहन सिंह लखनऊ आकर सभी बड़े नेताओं के घर खुद पहुंच गए. उन्होंने मंगलवार को सबसे पहले वीवीआइपी गेस्ट हाउस में पार्टी के पदाधिकारियों से मुलाकात की. इसके बाद मंत्री आसुतोष टंडन के घर गए. उनके पिता और पूर्व राज्यपाल लालजी टंडन को श्रद्धांजलि अर्पित की. सिंह ने सीएम योगी से मुलाकात करने के बाद देर शाम कल्याण सिंह से मिलकर आशीर्वाद लिया. इसी बीच वह पार्टी कार्यालय गए. उनकी इस पहल को सबको साथ लेकर चलने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.

यूपी प्रभारी तौर पर सबसे ताकतवर अमित शाह
यूपी बीजेपी प्रभारी के तौर अब तक सबसे अच्छा रिकार्ड अमित शाह का ही कहा जा सकता है. पार्टी नेतृत्व ने शाह को 2013 में यूपी बीजेपी का प्रभारी बनाया था. उत्तर प्रदेश आते ही उनकी अलग कार्यशैली दिखने लगी थी. कार्यकर्ताओं को वह यह संदेश देने में सफल रहे कि अब पार्टी में उन्हीं लोगों को तरजीह मिलेगी जो काम करेगा. उन्होंने यह भी स्थापित किया कि प्रभारी कोई भी निर्णय ले सकता है. शाह ने बड़े-बड़े फैसले लिए भी. शाह के प्रभारी रहते यूपी में कोई भी फैसला उनके बगैर नहीं हुआ. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने इतिहास रचा. उस चुनाव में पार्टी अब तक सबसे अधिक 73 सीटें जीत पाने में कामयाब हो सकी. पीएम मोदी का करीबी होने के नाते उनका ग्राफ बढ़ता गया. यूपी का प्रभारी रहते हुए वह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए. इसके बाद भी यूपी में उनका दखल बना रहा.

प्रभावशाली माथुर के नहीं थे शाह वाले तेवर
अमित शाह के बाद यूपी बीजेपी प्रभारी के रूप में ओम माथुर आए. उनका औरा बड़ा था, लेकिन शाह वाला तेवर उनमें नहीं दिखा. शाह जिस जमीन को तैयार करके गए थे, उस पर चलना माथुर के लिए थोड़ा आसान जरूर रहा. शाह के तुरंत बाद इस दायित्व में आने से माथुर की हनक भी दिखी. माथुर ने पार्टी को 2017 का चुनाव लड़ाया. पार्टी की बंपर जीत हुई. हालांकि इस दौरान शाह का दखल बराबर बना रहा. माथुर के बाद जेपी नड्डा यूपी भाजपा के प्रभारी बनाये गए. नड्डा के नेतृत्व में 2019 का लोकसभा चुनाव हुआ. पार्टी 2014 रिपीट नहीं कर सकी, लेकिन सत्ता विरोधी लहर का सामना करते हुए जिस तरह से भाजपा को 63 सीटें मिलीं. उसे बहुत कम भी नहीं कहा जा सकता.

सहजता, सरलता और परिश्रम है इनकी पहचान
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मंत्री डॉ. चंद्रमोहन कहते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व ने अनुभवी और कर्मशील नेताओं को उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी है. कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह है. प्रभारी में सहजता, सरलता और परिश्रम की पराकाष्ठा उन्हें अच्छा संगठक बनाती है. पूर्व में भी उन्होंने उत्तर प्रदेश में काम किया है. केंद्रीय मंत्री के रूप में भी उन्हें सहजता पूर्वक देखा गया है. वह परिणाम देने वाले नेता हैं. उनका सरल और सहज व्यवहार उन्हें बड़ा बनाता है. कार्यकर्ताओं के करीब ले जाता है जो एक भारतीय जनता पार्टी के आदर्श नेता की विशेषता होनी चाहिए, वह सारी बातें उनमें विद्यमान हैं. उनके अनुभव का लाभ उत्तर प्रदेश को मिलेगा.

भाजपा की रणनीति पर भरोसा के अलावा कोई विकल्प नहीं
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि बीजेपी की हर रणनीति पर भरोसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. 2014 से बीजेपी जिस तरह से काम कर रही है, जिस तरह के चेहरों को ला रही है, जिस तरह से लोगों को जिम्मेदारी दी रही है, वे सभी परिणाम देने वाले रहे हैं. नए भाजपा के प्रभारी की क्षमताओं को लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए. उनकी क्षमताओं को समझ बूझ कर ही पार्टी हाईकमान ने उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी होगी. उत्तर प्रदेश बहुत महत्वपूर्ण राज्य है. यह सारी बातें बताती हैं कि बीजेपी नई रणनीति के साथ 2022 की तैयारी कर रही है. पार्टी की उस रणनीति का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. उसे समझना आसान नहीं है। बाकी सभी दल इस तरह की रणनीति पर ना तो काम कर रहे हैं और न ही वे इस दिशा में सोच रहे हैं.

लखनऊः प्रभारी रहते अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में जो इतिहास रचा था, उसे तोड़ने के लिए बिहार के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राधा मोहन सिंह जुट गए हैं. यह बात यूपी बीजेपी के प्रभारी राधा मोहन सिंह खुद से भले ही न कहें, लेकिन उनके मन में लक्ष्य यही होगा. प्रभारी बनाए जाने के बाद योजनाबद्ध तरीके से उन्होंने जिस प्रकार काम करना शुरू किया है, वह तो यही बताता है. अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान उन्होंने सहज और सरल रहकर कठिन परिश्रम करने का संदेश दिया है.

राधा मोहन सिंह बने यूपी प्रभारी.

सबको साथ लेकर चलने की दिखी रणनीति
राधा मोहन सिंह बिहार प्रांत के दो बार अध्यक्ष रहे हैं. मोदी की पहली सरकार में वह कृषि मंत्री रहे. उत्तर प्रदेश भाजपा के 2010 में सह प्रभारी बनाए गए थे. इतने लंबे अनुभव के साथ प्रभारी की भूमिका में राधा मोहन सिंह पर सभी की नजरें हैं. जिस प्रकार से उन्होंने लखनऊ आकर काम शुरू किया है, उसमें उनका अनुभव भी दिख रहा है. राधा मोहन सिंह लखनऊ आकर सभी बड़े नेताओं के घर खुद पहुंच गए. उन्होंने मंगलवार को सबसे पहले वीवीआइपी गेस्ट हाउस में पार्टी के पदाधिकारियों से मुलाकात की. इसके बाद मंत्री आसुतोष टंडन के घर गए. उनके पिता और पूर्व राज्यपाल लालजी टंडन को श्रद्धांजलि अर्पित की. सिंह ने सीएम योगी से मुलाकात करने के बाद देर शाम कल्याण सिंह से मिलकर आशीर्वाद लिया. इसी बीच वह पार्टी कार्यालय गए. उनकी इस पहल को सबको साथ लेकर चलने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.

यूपी प्रभारी तौर पर सबसे ताकतवर अमित शाह
यूपी बीजेपी प्रभारी के तौर अब तक सबसे अच्छा रिकार्ड अमित शाह का ही कहा जा सकता है. पार्टी नेतृत्व ने शाह को 2013 में यूपी बीजेपी का प्रभारी बनाया था. उत्तर प्रदेश आते ही उनकी अलग कार्यशैली दिखने लगी थी. कार्यकर्ताओं को वह यह संदेश देने में सफल रहे कि अब पार्टी में उन्हीं लोगों को तरजीह मिलेगी जो काम करेगा. उन्होंने यह भी स्थापित किया कि प्रभारी कोई भी निर्णय ले सकता है. शाह ने बड़े-बड़े फैसले लिए भी. शाह के प्रभारी रहते यूपी में कोई भी फैसला उनके बगैर नहीं हुआ. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने इतिहास रचा. उस चुनाव में पार्टी अब तक सबसे अधिक 73 सीटें जीत पाने में कामयाब हो सकी. पीएम मोदी का करीबी होने के नाते उनका ग्राफ बढ़ता गया. यूपी का प्रभारी रहते हुए वह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए. इसके बाद भी यूपी में उनका दखल बना रहा.

प्रभावशाली माथुर के नहीं थे शाह वाले तेवर
अमित शाह के बाद यूपी बीजेपी प्रभारी के रूप में ओम माथुर आए. उनका औरा बड़ा था, लेकिन शाह वाला तेवर उनमें नहीं दिखा. शाह जिस जमीन को तैयार करके गए थे, उस पर चलना माथुर के लिए थोड़ा आसान जरूर रहा. शाह के तुरंत बाद इस दायित्व में आने से माथुर की हनक भी दिखी. माथुर ने पार्टी को 2017 का चुनाव लड़ाया. पार्टी की बंपर जीत हुई. हालांकि इस दौरान शाह का दखल बराबर बना रहा. माथुर के बाद जेपी नड्डा यूपी भाजपा के प्रभारी बनाये गए. नड्डा के नेतृत्व में 2019 का लोकसभा चुनाव हुआ. पार्टी 2014 रिपीट नहीं कर सकी, लेकिन सत्ता विरोधी लहर का सामना करते हुए जिस तरह से भाजपा को 63 सीटें मिलीं. उसे बहुत कम भी नहीं कहा जा सकता.

सहजता, सरलता और परिश्रम है इनकी पहचान
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मंत्री डॉ. चंद्रमोहन कहते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व ने अनुभवी और कर्मशील नेताओं को उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी है. कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह है. प्रभारी में सहजता, सरलता और परिश्रम की पराकाष्ठा उन्हें अच्छा संगठक बनाती है. पूर्व में भी उन्होंने उत्तर प्रदेश में काम किया है. केंद्रीय मंत्री के रूप में भी उन्हें सहजता पूर्वक देखा गया है. वह परिणाम देने वाले नेता हैं. उनका सरल और सहज व्यवहार उन्हें बड़ा बनाता है. कार्यकर्ताओं के करीब ले जाता है जो एक भारतीय जनता पार्टी के आदर्श नेता की विशेषता होनी चाहिए, वह सारी बातें उनमें विद्यमान हैं. उनके अनुभव का लाभ उत्तर प्रदेश को मिलेगा.

भाजपा की रणनीति पर भरोसा के अलावा कोई विकल्प नहीं
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि बीजेपी की हर रणनीति पर भरोसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. 2014 से बीजेपी जिस तरह से काम कर रही है, जिस तरह के चेहरों को ला रही है, जिस तरह से लोगों को जिम्मेदारी दी रही है, वे सभी परिणाम देने वाले रहे हैं. नए भाजपा के प्रभारी की क्षमताओं को लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए. उनकी क्षमताओं को समझ बूझ कर ही पार्टी हाईकमान ने उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी होगी. उत्तर प्रदेश बहुत महत्वपूर्ण राज्य है. यह सारी बातें बताती हैं कि बीजेपी नई रणनीति के साथ 2022 की तैयारी कर रही है. पार्टी की उस रणनीति का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. उसे समझना आसान नहीं है। बाकी सभी दल इस तरह की रणनीति पर ना तो काम कर रहे हैं और न ही वे इस दिशा में सोच रहे हैं.

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