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सवालों के घेरे में एडीजी प्रशांत कुमार का बयान, नूतन ठाकुर बोलीं- मामले को दबाने का हो रहा प्रयास

हाथरस घटना के बाद पूरा देश आक्रोश में है. एक ओर जहां दलित महिला की हत्या से लोगों में गुस्सा है तो वहीं एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार व हाथरस जिला प्रशासन के रवैया से लोगों में नाराजगी है. एडीजी प्रशांत कुमार ने अपने बयान में पोस्टमार्टम रिपोर्ट व फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए पीड़िता के साथ दुष्कर्म न होने की बात कही थी. इससे पहले हाथरस जिला प्रशासन ने पीड़िता का अंतिम संस्कार परिवार की अनुमति के बगैर रात में ही कर दिया, जिससे भी लोगों में नाराजगी है.

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Published : Oct 2, 2020, 8:24 PM IST

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सवालों के घेरे में एडीजी प्रशांत कुमार का बयान

लखनऊ: हाथरस में दलित महिला की हत्या के मामले में पूरा देश आक्रोश में है. जहां एक ओर दलित महिला की हत्या से लोगों में गुस्सा है तो वहीं एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार व हाथरस जिला प्रशासन के रवैया से लोगों में नाराजगी है. एडीजी प्रशांत कुमार ने अपने बयान में पोस्टमार्टम रिपोर्ट व फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए पीड़िता के साथ दुष्कर्म न होने की बात कही थी. इससे पहले हाथरस जिला प्रशासन ने पीड़िता का अंतिम संस्कार परिवार की अनुमति के बगैर रात में ही कर दिया, जिससे भी लोगों में नाराजगी है. शुरुआत से ही पुलिस ने इस मामले में लापरवाही की और पीड़िता को बेहतर इलाज उपलब्ध कराने में भी देरी हुई. घटना के बाद हीला हवाली को लेकर लोगों में गुस्सा है. विपक्ष लगातार योगी आदित्यनाथ की सरकार को घेर रहा है. इसी बीच हाथरस जिला प्रशासन ने तानाशाही रवैया दिखाते हुए पीड़िता के परिजनों को मीडिया से मिलने पर रोक लगा दी है. जिला प्रशासन के इस रवैये से सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर जिम्मेदार अधिकारी इस घटना को लेकर क्या छुपाना चाहते हैं.

सवालों के घेरे में एडीजी प्रशांत कुमार का बयान
उत्तर प्रदेश पुलिस के एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार द्वारा पीड़िता को लेकर दिया गया वह बयान भी विवादों में है जिसमें उन्होंने पोस्टमार्टम रिपोर्ट व फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए रेप न होने की बात कही है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट व फॉरेंसिक रिपोर्ट के कानूनी पहलू को समझने के लिए ईटीवी भारत ने इस क्षेत्र के एक्सपर्ट से बातचीत की. पेशे से अधिवक्ता नूतन ठाकुर ने ईटीवी भारत को जानकारी देते हुए बताया कि रेप के मामले में पीड़िता का बयान महत्वपूर्ण होता है. 22 सितंबर को पीड़िता के बयान के आधार पर पुलिस ने दुष्कर्म की धाराएं बढ़ाई हैं. वहीं एडीजी कानून व्यवस्था ने जिस तरह से रिपोर्ट का हवाला देते हुए दुष्कर्म न होने की बात कही है वह ठीक नहीं है. क्योंकि 14 सितंबर को पीड़िता के साथ घटना को अंजाम दिया गया था जिसके बाद धारा 307 ( हत्या का प्रयास), एससी-एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की गई. 19 सितंबर को पुलिस ने छेड़छाड़ की धारा बढ़ाई और 22 सितंबर को दुष्कर्म की. 29 को पीड़िता की मौत हो गई. घटना व पीड़िता की मौत में 2 सप्ताह से भी अधिक का समय है, समय अधिक होने के नाते फॉरेंसिक रिपोर्ट में इस्पर्म के न मिलने के पीछे कई अन्य कारण भी हो सकते हैं. ऐसे में फॉरेंसिक जांच रिपोर्ट के आधार पर यह कह देना कि पीड़िता के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ है कानूनी पहलू से भी ठीक नहीं है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी मौत का कारण चोट बताया गया है. समय अधिक होने के चलते पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी दुष्कर्म साबित न होना एक बड़ा कारण है. नूतन ठाकुर ने कहा कि जिस तरह से पुलिस अधिकारी जल्दबाजी में बयान देकर यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि पीड़िता के साथ दुष्कर्म नहीं किया गया है, यह साबित करता है कि पुलिस मामले को दबाने की कोशिश कर रही है. नूतन ठाकुर ने कहा कि 22 तारीख को पुलिस ने पीड़िता के बयान के आधार पर दुष्कर्म की धाराएं FIR में बढ़ाई हैं. लिहाजा साबित है कि पुलिस के पास दुष्कर्म की धाराएं बढ़ाने के लिए सबूत थे ऐसे में उन सबूतों के आधार पर जांच को आगे बढ़ाना चाहिए था न की देर से कराई गई जांच की रिपोर्ट के आधार पर दुष्कर्म न होने की बात कहकर मामले को दबाने का प्रयास करना चाहिए था.

एक सवाल के जवाब में नूतन ठाकुर ने कहा कि पीड़िता के परिवार की मर्जी के बगैर रात में अंतिम संस्कार करवाना भी पीड़िता के परिजनों के मौलिक अधिकारों का हनन है. इसको लेकर भी जिम्मेदारों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए जिला प्रशासन ने लॉ एंड ऑर्डर के नाम पर परिवार के साथ जबरदस्ती कर पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया, जबकि जिला प्रशासन को परिजनों के अधिकारों का ध्यान रखते हुए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए थी कि पीड़िता के परिजनों के अधिकार भी सुरक्षित रहते व लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति भी न बिगड़ने पाती, लेकिन इसमें जिला प्रशासन नाकामयाब रहा है.


रिटायर्ड आईपीएस व पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर अभियान चलाने वाले एसपी सिंह ने ईटीवी से बातचीत में बताया कि पुलिस को इस घटना के कानूनी पहलू को देखना चाहिए. मुझे लगता है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस को इतनी स्वतंत्रता दे रखी है कि वह घटना पर कुछ भी कह सकते हैं. 2013 में आईपीसी, सीआरपीसी व एविडेंस में संशोधन किया गया है. जिसमें रेप की परिभाषा को नए सिरे से परिभाषित किया गया है. 2013 के संशोधन के बाद रेप की परिभाषा के लिए फॉरेंसिक रिपोर्ट में इस्पर्म होने की पुष्टि का होना अनिवार्य नहीं है. घटना के काफी दिनों बाद जांच के लिए सैंपल भेजे गए हैं, लिहाजा रिपोर्ट के आधार पर दुष्कर्म न हो कहना पूरी तरह से गलत है.

जिस तरह से पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारी बयानबाजी कर रहे हैं इससे साबित है कि पुलिस इस मामले को जल्द से जल्द दबाना चाहती है और बहुत कुछ छुपाने का प्रयास कर रही है. यही कारण है कि मीडिया को पीड़ित के परिवार से मिलने नहीं दिया जा रहा है. जल्दबाजी में पुलिस ने पीड़िता का अंतिम संस्कार कराया जो भी गलत है. एसपी सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत में सरकार पर भी निशाना साधाते हुए कहा कि अधिकारियों के इस रवैए का खामियाजा योगी सरकार को भुगतना पड़ेगा. जिस तरह की बयानबाजी हो रही है और मामले को दबाने का प्रयास हो रहा है यह गलत है और सरकार को इस पर विचार करना चाहिए.




लखनऊ: हाथरस में दलित महिला की हत्या के मामले में पूरा देश आक्रोश में है. जहां एक ओर दलित महिला की हत्या से लोगों में गुस्सा है तो वहीं एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार व हाथरस जिला प्रशासन के रवैया से लोगों में नाराजगी है. एडीजी प्रशांत कुमार ने अपने बयान में पोस्टमार्टम रिपोर्ट व फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए पीड़िता के साथ दुष्कर्म न होने की बात कही थी. इससे पहले हाथरस जिला प्रशासन ने पीड़िता का अंतिम संस्कार परिवार की अनुमति के बगैर रात में ही कर दिया, जिससे भी लोगों में नाराजगी है. शुरुआत से ही पुलिस ने इस मामले में लापरवाही की और पीड़िता को बेहतर इलाज उपलब्ध कराने में भी देरी हुई. घटना के बाद हीला हवाली को लेकर लोगों में गुस्सा है. विपक्ष लगातार योगी आदित्यनाथ की सरकार को घेर रहा है. इसी बीच हाथरस जिला प्रशासन ने तानाशाही रवैया दिखाते हुए पीड़िता के परिजनों को मीडिया से मिलने पर रोक लगा दी है. जिला प्रशासन के इस रवैये से सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर जिम्मेदार अधिकारी इस घटना को लेकर क्या छुपाना चाहते हैं.

सवालों के घेरे में एडीजी प्रशांत कुमार का बयान
उत्तर प्रदेश पुलिस के एडीजी कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार द्वारा पीड़िता को लेकर दिया गया वह बयान भी विवादों में है जिसमें उन्होंने पोस्टमार्टम रिपोर्ट व फॉरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए रेप न होने की बात कही है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट व फॉरेंसिक रिपोर्ट के कानूनी पहलू को समझने के लिए ईटीवी भारत ने इस क्षेत्र के एक्सपर्ट से बातचीत की. पेशे से अधिवक्ता नूतन ठाकुर ने ईटीवी भारत को जानकारी देते हुए बताया कि रेप के मामले में पीड़िता का बयान महत्वपूर्ण होता है. 22 सितंबर को पीड़िता के बयान के आधार पर पुलिस ने दुष्कर्म की धाराएं बढ़ाई हैं. वहीं एडीजी कानून व्यवस्था ने जिस तरह से रिपोर्ट का हवाला देते हुए दुष्कर्म न होने की बात कही है वह ठीक नहीं है. क्योंकि 14 सितंबर को पीड़िता के साथ घटना को अंजाम दिया गया था जिसके बाद धारा 307 ( हत्या का प्रयास), एससी-एसटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की गई. 19 सितंबर को पुलिस ने छेड़छाड़ की धारा बढ़ाई और 22 सितंबर को दुष्कर्म की. 29 को पीड़िता की मौत हो गई. घटना व पीड़िता की मौत में 2 सप्ताह से भी अधिक का समय है, समय अधिक होने के नाते फॉरेंसिक रिपोर्ट में इस्पर्म के न मिलने के पीछे कई अन्य कारण भी हो सकते हैं. ऐसे में फॉरेंसिक जांच रिपोर्ट के आधार पर यह कह देना कि पीड़िता के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ है कानूनी पहलू से भी ठीक नहीं है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी मौत का कारण चोट बताया गया है. समय अधिक होने के चलते पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी दुष्कर्म साबित न होना एक बड़ा कारण है. नूतन ठाकुर ने कहा कि जिस तरह से पुलिस अधिकारी जल्दबाजी में बयान देकर यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि पीड़िता के साथ दुष्कर्म नहीं किया गया है, यह साबित करता है कि पुलिस मामले को दबाने की कोशिश कर रही है. नूतन ठाकुर ने कहा कि 22 तारीख को पुलिस ने पीड़िता के बयान के आधार पर दुष्कर्म की धाराएं FIR में बढ़ाई हैं. लिहाजा साबित है कि पुलिस के पास दुष्कर्म की धाराएं बढ़ाने के लिए सबूत थे ऐसे में उन सबूतों के आधार पर जांच को आगे बढ़ाना चाहिए था न की देर से कराई गई जांच की रिपोर्ट के आधार पर दुष्कर्म न होने की बात कहकर मामले को दबाने का प्रयास करना चाहिए था.

एक सवाल के जवाब में नूतन ठाकुर ने कहा कि पीड़िता के परिवार की मर्जी के बगैर रात में अंतिम संस्कार करवाना भी पीड़िता के परिजनों के मौलिक अधिकारों का हनन है. इसको लेकर भी जिम्मेदारों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए जिला प्रशासन ने लॉ एंड ऑर्डर के नाम पर परिवार के साथ जबरदस्ती कर पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया, जबकि जिला प्रशासन को परिजनों के अधिकारों का ध्यान रखते हुए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए थी कि पीड़िता के परिजनों के अधिकार भी सुरक्षित रहते व लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति भी न बिगड़ने पाती, लेकिन इसमें जिला प्रशासन नाकामयाब रहा है.


रिटायर्ड आईपीएस व पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर अभियान चलाने वाले एसपी सिंह ने ईटीवी से बातचीत में बताया कि पुलिस को इस घटना के कानूनी पहलू को देखना चाहिए. मुझे लगता है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस को इतनी स्वतंत्रता दे रखी है कि वह घटना पर कुछ भी कह सकते हैं. 2013 में आईपीसी, सीआरपीसी व एविडेंस में संशोधन किया गया है. जिसमें रेप की परिभाषा को नए सिरे से परिभाषित किया गया है. 2013 के संशोधन के बाद रेप की परिभाषा के लिए फॉरेंसिक रिपोर्ट में इस्पर्म होने की पुष्टि का होना अनिवार्य नहीं है. घटना के काफी दिनों बाद जांच के लिए सैंपल भेजे गए हैं, लिहाजा रिपोर्ट के आधार पर दुष्कर्म न हो कहना पूरी तरह से गलत है.

जिस तरह से पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारी बयानबाजी कर रहे हैं इससे साबित है कि पुलिस इस मामले को जल्द से जल्द दबाना चाहती है और बहुत कुछ छुपाने का प्रयास कर रही है. यही कारण है कि मीडिया को पीड़ित के परिवार से मिलने नहीं दिया जा रहा है. जल्दबाजी में पुलिस ने पीड़िता का अंतिम संस्कार कराया जो भी गलत है. एसपी सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत में सरकार पर भी निशाना साधाते हुए कहा कि अधिकारियों के इस रवैए का खामियाजा योगी सरकार को भुगतना पड़ेगा. जिस तरह की बयानबाजी हो रही है और मामले को दबाने का प्रयास हो रहा है यह गलत है और सरकार को इस पर विचार करना चाहिए.




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