लखनऊः उत्तर प्रदेश में बिजली संकट गहराता जा रहा है और इसके पीछे कहीं न कहीं सबसे बड़ी वजह है कोयले की कमी. कोयले की कमी से कई पावर प्लांट में बिजली के उत्पादन पर असर पड़ा है. कोयले को लेकर उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने सरकार पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा है कि अभी कुछ दिन पहले ही संसद में केंद्रीय कोयला मंत्री ने देश में किसी तरह की कोयले की कमी से साफ इनकार किया था, लेकिन अब विदेशों से बिजली कंपनियों को कोयला खरीदना पड़ रहा है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? कहीं ना कहीं यह कालाबाजारी की तरफ इशारा कर रहा है.
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा कहते हैं कि बीती छह अप्रैल को लोकसभा के पटल पर एक सवाल के जवाब में संसदीय कार्य और कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी ने साफ कहा था कि देश में कोयले की कोई कमी नहीं है. जानकारी दी थी कि कोल इंडिया लिमिटेड और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड पिट हेड में कोयला भंडारण एक अप्रैल की स्थिति के मुताबिक 60.77 मिलियन टन और 4.71 मिलियन टन कोयला उपलब्ध है. मार्च में 95 मिलियन टन कोयला उत्पादन की भी उन्होंने बात स्वीकार की थी.
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब देश में कोयले की कमी नहीं है तो फिर विदेशी कोयला खरीदने का दबाव क्यों बनाया जा रहा है? महाराष्ट्र और एनटीपीसी हरियाणा सहित कुछ राज्यों ने तो अपने यहां विदेशी कोयला खरीद के लिए टेंडर भी जारी कर दिया है. उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने इसके पीछे कहीं न कहीं साजिश का अंदेशा जताया है और उच्च स्तरीय जांच की मांग भी कर डाली है.
अवधेश कुमार वर्मा ने यह भी कहा है कि जब बिजली कंपनियां विदेश से महंगा कोयला खरीदेंगी तो वह एनर्जी एक्सचेंज पर बिजली भी महंगी ही बेचेंगी. इसके साथ ही बाकी बिजली कंपनियों की भी लागत में बढ़ोतरी हो जाएगी और इस सबका भुगतान उत्तर प्रदेश के उपभोक्ताओं को करना पड़ेगा. उन्होंने कहा है कि डोमेस्टिक लिंकेज कोयला 1700 रुपए प्रति टन है जबकि विदेशी कोयला 17000 रुपए प्रति टन. उन्होंने कहा है कि इसका जवाब देना चाहिए कि वास्तव में कोयला संकट है या फिर कालाबाजारी. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है.
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