लखनऊ : भारतीय जनता पार्टी ने अपने सांसदों द्वारा क्षेत्र में किए गए कार्यों का मूल्यांकन कराने के लिए रिपोर्ट कार्ड तैयार कराने का फैसला किया है. स्वाभाविक है कि पार्टी की यह पहल यूं ही नहीं है. शीर्ष नेतृत्व इस रिपोर्ट कार्ड का मूल्यांकन करने के बाद यह तय करेगा कि उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में टिकट दिया जाए या नहीं. यदि टिकट दिया भी जाए, तो संसदीय क्षेत्र वही रखा जाए अथवा इसमें बदलाव हो. पार्टी के इस निर्णय के बाद से कई सांसदों में बेचैनी देखी जा रही है. कुछ सांसद पर्याप्त विकास कार्य न करा पाने के लिए आरोपों का सहारा भी ले रहे हैं.
इस रिपोर्ट कार्ड में जिन प्रमुख बिंदुओं को शामिल किया गया है, उनमें सांसद के जनता के साथ व्यवहार और संबंधों का मूल्यांकन भी किया जाना है. यह भी देखा जाएगा कि सांसद की अपने क्षेत्र में कितनी लोकप्रियता है. इससे नेता का क्षेत्र में जनसमर्थन आंका जाएगा और यह टिकट निर्धारण में प्रमुख बिंदु रहेगा. सांसद द्वारा अपने क्षेत्र में कितने विकास कार्य हैं? क्षेत्र की जनता से चुनाव के वक्त जो वादे किए गए थे, उनमें से कितने पूरे हुए हैं और कौन से वादे अधूरे रह गए हैं. पार्टी नेतृत्व यह भी देखेगा कि कार्यक्षेत्र में सांसद ने क्षेत्रीय विकास निधि का किस प्रकार से उपयोग किया है. सांसद की क्षेत्र में उपलब्धता को भी इसमें शामिल किया गया है. यह रिपोर्ट कार्ड तैयार हो जाने के बाद ही लोकसभा चुनावों में टिकट वितरण के काम को अंतिम रूप दिया जा सकेगा. वैसे पार्टी यह चाहती है कि सांसदों को टिकट वितरण में विलंब न हो, जिससे उन्हें तैयारी का पर्याप्त समय मिल सके.
भाजपा ने इससे पहले सितंबर 2021 में भी अपने सांसदों का रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने पेश किया था. पार्टी को लगता है कि वह इस तरकीब से अपनी पार्टी के ज्यादा से ज्यादा प्रत्याशियों को जिताने में सफल होगी, क्योंकि इस पद्धति से योग्य उम्मीदवारों को ही टिकट मिल पाएगा. पार्टी ने कुछ दिन पहले अपने सांसदों को एक फार्म भेजकर महाजनसंपर्क अभियान के विषय में भी रिपोर्ट मांगी थी, जिसमें सांसदों को बताना था कि उन्होंने अपने क्षेत्र में कितने सम्मेलन कराए और कितने प्रभावशाली व्यक्तियों से मिले. उनकी लिस्ट भी पार्टी नेतृत्व को देनी होगी. इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पार्टी सांसदों की क्षेत्रवार बैठकें भी कर रहे हैं.
भारतीय जनता पार्टी इस पद्धति से उन्हीं चेहरों को चुनावी मैदान में उतारना चाहती है, जिनके जीतने की संभावना ज्यादा हो. इस चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा उम्मीद है. यूपी लोकसभा सीटों के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य भी है. यदि 2014 और 2019 की बात करें, तो भाजपा को केंद्र की सत्ता में पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका उत्तर प्रदेश की ही थी. इसलिए अपने खिलाफ बन रहे देशव्यापी गठबंधन को कमजोर करने के लिए भाजपा उत्तर प्रदेश में किसी भी प्रकार की कोताही करना नहीं चाहती. वैसे भी उत्तर प्रदेश में विपक्ष के नाम पर सिर्फ समाजवादी पार्टी ही दिखाई दे रहा है. बसपा और कांग्रेस जैसी पार्टियां अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही हैं.
राजनीतिक विश्वलेषक डॉ प्रदीप यादव कहते हैं 'इस प्रकार का प्रयोग भाजपा पहली बार नहीं कर रही है. 2022 के विधानसभा चुनावों में भी ऐसा प्रयोग किया गया था और उसी के अनुसार टिकट वितरण भी हुआ था. भाजपा के विषय में कहा जाता है कि पार्टी सातों दिन और चौबीसों घंटे चुनाव की तैयारी में रहती है. इस प्रकार का रिपोर्ट कार्ड भी पार्टी की इसी तैयारी का नतीजा है. इसमें भी कोई दो राय नहीं कि पार्टी को इसका लाभ भी मिलता है.'