लखनऊः एक ओर पूरा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है. वहीं राजधानी के बक्शी तालाब इलाके में रहने वाली प्राची शर्मा कोरोना महामारी के दौरान बेजुबान जानवरों और पक्षियों के लिए मसीहा बनी हैं. जो 150 से ज्यादा जानवरों और पक्षियों को प्रतिदिन भोजन मुहैया कराने का काम कर रही हैं.
लॉक डाउन के चलते जानवरों को नहीं मिलता भोजन
ईटीवी से बातचीत के दौरान प्राची ने बताया कि वो कानपुर की रहने वाली हैं और लखनऊ में ग्राफिक्स डिजाइनर की जॉब करती हैं. प्राची के मुताबिक पिछले 2 सालों से विश्व सहित भारत में अपने पैर फैला चुकी कोरोना महामारी की वजह से सरकार की ओर से लॉक डाउन लगाया जा रहा है. जिसकी वजह से लोग घर में रहने के लिए मजबूर हैं. बाजार और दुकाने न खुलने की वजह से रोड पर रहने वाले बेजुबान जो हमारे दैनिक दिनचर्या के चलते अपना पेट भरते थे उन्हें इस समय बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है. जिसमें कि खाना तो दूर साफ पानी भी नसीब नहीं है. इस समस्या से जूझते हुए उन्हें दूसरा साल होने जा रहा है. लेकिन कई संस्थाओं के निरंतर काम करने के बावजूद भी इसका कोई सटीक हल नहीं मिल पाया है. ऐसे समय में इस समस्या से जूझते बेजुबान जानवरों को रोड पर सड़ा गला गोबर और नालियों का पानी पीते देख इनकी मदद किए बिना रहा नहीं गया.
150 से 200 जानवरों को मुहैया होता है भोजन
उन्होंने बताया कि मैंने इस कार्यक्रम की शुरुआत पिछले साल कोरोना महामहारी के दौरान की थी. लखनऊ के सीतापुर रोड पर पड़ने वाले भैसामाउ क्रासिंग से लेकर गाजीपुर के क्षेत्र में दैनिक रूप से 150 से 200 बेजुबान जानवरों को भोजन करवाते हैं. इसके साथ ही साथ जहां भी कोई स्वान, गीय और अन्य दूसरे पशु जख्मी मिलताे हैं तो उसका भी उपचार करते है. इसके लिए हम प्रतिदिन शाम 4:00 बजे से 7:00 बजे तक निकलते हैं. उन्होंने बताया कि इसके लिए हमने एक कच्ची फर्श का कमरा किराए पर लिया है. जिसमें हमने अपना छोटा सा शेल्टर भी बनाया है, जो बच्चे (बेजुबान ) ज्यादा तकलीफ में मिलते हैं तो उन्हें यही रखकर उनका उपचार किया जाता है. स्वस्थ होने के बाद उन्हें वहीं उनके इलाके में सकुशल पहुंचा भी दिया जाता है.
जानवरों को दिया जाता है ये भोजन
प्राची के मुताबिक जानवरों को मौसम के मुताबिक भोजन दिया जाता है, ताकि उनको किसी प्रकार से कोई नुकसान न हो. प्राची ने बताया कि खाने में सर्दियों के मौसम में दलिया (7 से 8 किलो) और गर्मियों में चावल (5 से 6 किलो) देते हैं. जिसमें मौसम के अनुसार अंडा, मीट, मसाला, हल्दी, नमक, तेल इत्यादि होता है. इसके लिए हमने एक महिला को भी मासिक वेतन पर रखा है जो ये भोजन बनाती है.
भोजन से लेकर ट्रीटमेंट के लिए कैसे होता है इंतजाम
वहीं जब उनसे पूछा गया कि वो इतना सब खाना से लेकर ट्रीटमेंट तक के लिए पैसे कैसे इकट्ठे करती हैं तो उन्होंने बताया कि मेरे इस पहल में कई दोस्त और ग्रामीण लोग हैं जो हमारी मदद करते थे. हमने एक पहल भी शुरू की है, जिसके तहत एक मासिक अंशदान की शुरुआत की गई है. जिसमें आप महीने के 30 रुपये (प्रतिदिन का 1 रु) दे सकते है. जिसको हम सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचा रहे हैं, ताकि हमारे साथ लोग जुड़े और इस सराहनीय काम में शामिल हों. जिसका हमने paw'shopez नाम दिया है.