लखनऊ: बिजली विभाग में हुए जीपीएफ घोटाले को लेकर अब तक तमाम कर्मचारियों को उनकी भविष्य निधि का ब्योरा उपलब्ध नहीं कराया गया है. इस घोटाले के बाद पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन और बिजली संगठनों के बीच जिस बात को लेकर समझौता हुआ था, वह भी अब तक पूरा नहीं हो पाया है. इससे कर्मचारियों में नाराजगी तो है ही, वहीं अब सरकार का रुख भी बिजली विभाग के निजीकरण की ओर है, जिससे कर्मचारी खासा आक्रोशित हैं. कर्मचारी लगातार सरकार द्वारा विभाग के निजीकरण किए जाने के प्रस्ताव पर नाराजगी जाहिर कर विरोध करते नजर आ रहे हैं.
घाटा उठाकर बिजली दे रहा पॉवर कारपोरेशन
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आह्वान के बाद राजधानी स्थित शक्ति भवन पर बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों व अभियन्ताओं ने तीन घंटे का कार्य बहिष्कार किया. संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि निजी कंपनी अधिक राजस्व वाले वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं को प्राथमिकता पर बिजली देगी, जो कि ग्रेटर नोएडा और आगरा में हो रहा है. निजी कंपनी लागत से कम मूल्य पर किसी उपभोक्ता को बिजली नहीं देगी. अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रति माह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को पॉवर कारपोरेशन घाटा उठाकर बिजली देता है, जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है.
निजीकरण से महंगी होगी बिजली
बिजली विभाग के निजीकरण के बाद स्वाभाविक तौर पर उपभोक्ताओं के लिए बिजली मंहगी होगी. जेई संगठन के मध्यांचल सचिव डी के प्रजापति ने कहा कि वास्तविक कारण को ध्यान में रखकर मौजूदा प्रबंधन ऊर्जा क्षेत्र में सुधार नहीं करना चाहता. सिर्फ कर्मचारियों और अधिकारियों को शीर्षासन कराकर कराना चाहता है, जो कि सम्भव नहीं हैं.
लखनऊ में शक्ति भवन पर हुई विरोध सभा के दौरान एके सिंह, वरिंदर शर्मा, विजय गुप्ता, सीवीएस गौतम, एएन सिंह, पीके पांडेय, राहुल सिंह, संदीप तिवारी, रामइकबाल उपाध्याय, गिरीश पांडेय, सुहेल आबिद, अमिताभ सिन्हा, पंकज पांडेय, एसएन पटेल, अजय यादव, विवेक तिवारी और दिवाकर यादव ने सम्बोधित किया.