लखनऊ : प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों ने आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं. भारतीय जनता पार्टी गठबंधन पुराने सहयोगियों अपना दल (एस), निषाद पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी आदि के साथ अपनी साख बचाने में जुट गई है, तो समाजवादी पार्टी अपने गठबंधन के सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल और अपना दल कमेरावादी के साथ ही कांग्रेस और वामपंथी दलों का सहारा लेकर चुनाव मैदान में उतरेगी. इन सबसे अलग बहुजन समाज पार्टी ने 'एकला चलो' की राह अपनाने का फैसला किया है. यदि बसपा अकेले ही चुनाव मैदान में उतरती है तो इसका सबसे बड़ा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा. पिछले डेढ़ दशक में देखने को मिला है कि बसपा का प्रत्याशी चयन हमेशा सपा पर ही भारी पड़ा है. भाजपा को यह स्थिति रास आती है.
2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी, लेकिन इसके बाद से स्थितियां उसके लिए बदलती चली गईं और पार्टी का जनाधार घटता चला गया. 2012 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बहुमत के साथ सत्ता में आई. दो साल बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में स्थिति काफी बदल गई थी. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 71 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की, जबकि उसकी सहयोगी अपना दल (एस) ने दो सीटों पर कामयाबी प्राप्त की. इस चुनाव में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की स्थिति तीसरे नंबर की पार्टी की बनी, वहीं 30 से ज्यादा सीटों पर बहुजन समाज पार्टी दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी. यह बात और है कि वह अपना खाता तक नहीं खोल पाई. 2019 के लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित रूप से सपा और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन किया, बावजूद इसके बसपा 10 और समाजवादी पार्टी पांच सीटें ही जीतने में कामयाब हुई. 12 साल बाद बसपा की यह सबसे बड़ी जीत थी, इसके बावजूद मायावती ने तमाम आरोप लगाते हुए सपा से गठबंधन तोड़ने का फैसला कर लिया. इसका नतीजा उसे 2022 में भोगना पड़ा. इस विधानसभा चुनाव में बसपा को सिर्फ एक सीट हासिल हुई.
अब अब लोकसभा चुनाव की तैयारी जैसे-जैसे तेज होती जा रही हैं, यह सवाल भी मुखर होता जा रहा है कि बसपा किस करवट बैठेगी. अभी तक मायावती का स्टैंड रहा है कि वह किसी भी दल के साथ समझौता नहीं करेंगी. मायावती ने अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है, हालांकि सूत्र बताते हैं कि मायावती से विपक्षी पार्टियां बातचीत कर रही हैं और वह चाहती हैं कि किसी तरह से भी मायावती गठबंधन का हिस्सा बनें. हालांकि चुनाव में अभी काफी वक्त है और तब तक निर्णय बदल भी सकते हैं. इसलिए इस विषय में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. अतीत के चुनाव देखकर तो पता चलता है कि बहुजन समाज पार्टी का प्रत्याशी चयन भारतीय जनता पार्टी के लिए मददगार ही साबित हुआ है. डेढ़ दशक से प्रदेश का मुस्लिम मतदाता समाजवादी पार्टी के साथ देखा जा रहा है. ऐसे में मायावती तमाम सीटों पर सपा के खिलाफ स्थानीय मजबूत मुस्लिम प्रत्याशी उतार देती हैं, जिसका अपना स्थानीय जन आधार होता है. इसका सीधा नुकसान सपा को होता है. यदि बसपा की यह रणनीति कायम रही तो भारतीय जनता पार्टी के लिए यह खबर होगी.
राजनीतिक विश्लेषक डॉ आलोक राय कहते हैं कि 'बसपा प्रमुख मायावती के लिए आगामी चुनाव अस्तित्व की लड़ाई जैसा है. उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी तमाम छोटे दलों से भी कमजोर स्थिति में दिखाई देती है. बसपा प्रमुख अब पहले जितना सक्रिय भी नहीं हैं. आगामी चुनाव में बसपा का प्रमुख चेहरा उनके भतीजे आकाश होंगे, मायावती ने यह आभास कर दिया है. बसपा प्रमुख किसी भी तरह आगामी चुनाव में अपना वोट प्रतिशत बढ़ाना चाहेंगी. दिक्कत यह है कि अब न तो पार्टी का जमीनी स्तर पर काडर बचा है और न ही बड़ा नेता. 2019 में लोकसभा चुनाव जीतकर आए पार्टी के 10 नेताओं में से कई दल बदलने की फिराक में हैं. ऐसी स्थिति में मायावती के सामने भी चुनौतियां कम नहीं हैं. अब देखना होगा कि वह क्या रणनीति बनाती है. हां, यदि पुरानी रणनीति से ही वह चुनाव मैदान में उतरीं तो यह भाजपा के लिए अच्छी खबर होगी.'