लखनऊ: कभी पानी से लबालब रहने वाला शाही तालाब, जिसमें रात को चांद उतर आया करता था, आज वह ऐतिहासिक तालाब अपनी प्यास बुझाने को खुद ही व्याकुल है. कभी जिस तालाब में नवाबों की बेगम स्नान करने आया करती थीं, अब हालात ये हैं कि उस तालाब की कोख कई वर्षों से सूखी हुई है. देश और दुनिया में मशहूर 'बख्शी का तालाब' आज बदहाली का शिकार है.
राजधानी लखनऊ से दिल्ली को जाने वाले शाही गलियारे के किनारे अवध के नवाब अमजद अली शाह के खजांची त्रिपुर चंद्र बख्शी ने एक विशाल शाही तालाब का निर्माण लखौरी की ईंटों से कराया गया था. वह स्थान देश और दुनिया में ऐतिहासिक धरोहर 'बख्शी का तालाब' के नाम से जाना जाता है. इस ऐतिहासिक धरोहर का निर्माण कराने में पूरे दस वर्षों का समय लगा. देखरेख के अभाव में तालाब जीर्ण शीर्ण होने लगा था. इस शाही तालाब के जीर्णोद्धार के नाम पर काम कागजों पर तो दिखा पर लेकिन हकीकत में यह सूखा ही रहा.
वर्ष 1997 में भाजपा के शासन काल में पर्यटन विभाग ने 40 लाख रुपये खर्च किए. वर्ष 2009 में बसपा के शासनकाल में सौंदर्यीकरण के नाम पर 22 लाख और वर्ष 2013-14 में सपा के शासनकाल में 469.71 लाख रुपये खर्च किए गए, लेकिन तालाब की हालत न सुधरी.
तालाब के बीच में रंगीन फाउंटेन फव्वारा लगाया तो गया लेकिन एक माह चलने के बाद से वह बंद पड़ा है. तालाब में लगे लाल पत्थर का रंग उड़ गया और पत्थर टूट रहे हैं. तालाब के पीछे बांके बिहारी राधा कृष्ण का भव्य मंदिर बनाया गया था. वहीं नगर पंचायत के अध्यक्ष अरुण कुमार सिंह गप्पू ने कहा पूर्ववर्ती सरकारों में तालाब के जीर्णोद्धार के लिये काम किये गए, लेकिन कार्य गुणवत्तापूर्ण नहीं कराया गया है. जीर्णोद्धार के कार्यों की जांच चल रही है.