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मियावाकी टेक्नोलॉजी के जरिए राजधानी में उगाए जाएंगे छोटे-छोटे जंगल - लखनऊ समाचार

उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर काफी गंभीर है. लखनऊ प्रशासन वायु प्रदूषण को कम करने और हरियाली को बढ़ाने के लिए मियावाकी तकनीक का इस्तेमाल करने जा रहा है. जानिए क्या है मियावाकी तकनीक...

मियावाकी टेक्नोलॉजी
कमिश्नर मुकेश मेश्राम.
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Published : Mar 13, 2020, 11:14 PM IST

लखनऊ: प्रदेश की इस बार वायु प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण का लेवल काफी हाई हो गया था, जिसके लिए सरकार और प्रशासन दोनों काफी गंभीर है. इसी क्रम में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए और हरियाली को बढ़ाने के लिए लखनऊ जिला प्रशासन मियावाकी तकनीक का इस्तेमाल करने जा रहा है.

ईटीवी भारत से बातचीत करते कमिश्नर मुकेश मेश्राम.

जापान की है टेक्नोलॉजी

इस मामले पर जब ईटीवी भारत ने लखनऊ मंडल के कमिश्नर मुकेश मेश्राम से बात की तो उन्होंने बताया जापान की टेक्नोलॉजी के जरिए हम वायु और ध्वनि प्रदूषण को काफी कम कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि इसके तहत छोटे-छोटे अंतराल में किसी जगह पर एक ही जाति के पौधों को लगाया जाता है, जिससे वह जंगल के रूप में विकसित होंगे.

जापान के शख्स के नाम पर रखा गया

मुकेश मेश्राम ने बताया कि मियावाकी तकनीक का नाम प्लांट इकोलॉजी स्टाफ बोटैनिस्ट अकीरा मियावाकी के नाम पर रखा गया है. जो जापान के एक शख्स हैं. उन्होंने ही इस टेक्नोलॉजी की शुरुआत की है. इस टेक्नोलॉजी में पौधों की तेजी से प्रगति के लिए मिश्रित प्रजाति के पौधे एक साथ लगाए जाते हैं.

गोमती रिवरफ्रंट से होगी शुरुआत

लखनऊ मंडल के कमिश्नर ने बताया सबसे पहले इस टेक्नोलॉजी की सहायता से गोमती रिवरफ्रंट के किनारों को सजाया जाएगा. यहां पर दोनों छोरों पर छोटे-छोटे पौधों को लगाया जाएगा, जो जंगल के रूप में विकसित होंगे.

महज 160 वर्ग मीटर की चाहिए जगह

मुकेश मेश्राम ने बताया इस तरह की टेक्नोलॉजी के लिए बहुत ही कम जगह की आवश्यकता होती है. महज 160 वर्ग मीटर में इस तरीके के जंगलों को उगाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि फ्लाईओवर के नीचे, ब्रिज के नीचे, स्कूलों में कहीं भी इस तरीके की टेक्नोलॉजी को अपनाकर छोटे-छोटे जंगलों को उगाया जा सकता है. कम बजट की मियावाकी टेक्नोलॉजी के जरिए प्रदेश में छोटे-छोटे जंगलों को विकसित करने की योजना है, जो बहुत जल्द धरातल पर दिखाई देगी.

ये भी पढ़ें- सीएम योगी ने कोरोना को घोषित किया महामारी

लखनऊ: प्रदेश की इस बार वायु प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण का लेवल काफी हाई हो गया था, जिसके लिए सरकार और प्रशासन दोनों काफी गंभीर है. इसी क्रम में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए और हरियाली को बढ़ाने के लिए लखनऊ जिला प्रशासन मियावाकी तकनीक का इस्तेमाल करने जा रहा है.

ईटीवी भारत से बातचीत करते कमिश्नर मुकेश मेश्राम.

जापान की है टेक्नोलॉजी

इस मामले पर जब ईटीवी भारत ने लखनऊ मंडल के कमिश्नर मुकेश मेश्राम से बात की तो उन्होंने बताया जापान की टेक्नोलॉजी के जरिए हम वायु और ध्वनि प्रदूषण को काफी कम कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि इसके तहत छोटे-छोटे अंतराल में किसी जगह पर एक ही जाति के पौधों को लगाया जाता है, जिससे वह जंगल के रूप में विकसित होंगे.

जापान के शख्स के नाम पर रखा गया

मुकेश मेश्राम ने बताया कि मियावाकी तकनीक का नाम प्लांट इकोलॉजी स्टाफ बोटैनिस्ट अकीरा मियावाकी के नाम पर रखा गया है. जो जापान के एक शख्स हैं. उन्होंने ही इस टेक्नोलॉजी की शुरुआत की है. इस टेक्नोलॉजी में पौधों की तेजी से प्रगति के लिए मिश्रित प्रजाति के पौधे एक साथ लगाए जाते हैं.

गोमती रिवरफ्रंट से होगी शुरुआत

लखनऊ मंडल के कमिश्नर ने बताया सबसे पहले इस टेक्नोलॉजी की सहायता से गोमती रिवरफ्रंट के किनारों को सजाया जाएगा. यहां पर दोनों छोरों पर छोटे-छोटे पौधों को लगाया जाएगा, जो जंगल के रूप में विकसित होंगे.

महज 160 वर्ग मीटर की चाहिए जगह

मुकेश मेश्राम ने बताया इस तरह की टेक्नोलॉजी के लिए बहुत ही कम जगह की आवश्यकता होती है. महज 160 वर्ग मीटर में इस तरीके के जंगलों को उगाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि फ्लाईओवर के नीचे, ब्रिज के नीचे, स्कूलों में कहीं भी इस तरीके की टेक्नोलॉजी को अपनाकर छोटे-छोटे जंगलों को उगाया जा सकता है. कम बजट की मियावाकी टेक्नोलॉजी के जरिए प्रदेश में छोटे-छोटे जंगलों को विकसित करने की योजना है, जो बहुत जल्द धरातल पर दिखाई देगी.

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