लखनऊ : प्रकृति से छेड़छाड़ (tampering with nature) का ये नतीजा है कि पूरी मानव सभ्यता के लिए कोरोना खतरा बन गया. इस महामारी के बाद जीवन पूरी तरह से बदल गया है. अब हमें ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए. इसमें सबसे बड़ी भूमिका फार्मास्युटिकल और फार्मासिस्टों की होने वाली है. महामारी से मानव जीवन की रक्षा सुरक्षा (protection of human life) के लिए फार्मास्युटिकल में लगातार शोध होना चाहिए. यह बातें प्राविधिक शिक्षा के प्रमुख सचिव सुभाष चंद्र शर्मा ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय में कोरोना महामारी के बाद जीवन में आए बदलाव में फार्मास्युटिकल विज्ञान की भूमिका विषयक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में कहीं.
बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम में पहुंचे प्रमुख सचिव सुभाष चंद्र शर्मा (Principal Secretary Subhash Chandra Sharma) ने कहा कि स्वस्थ जीवन के लिए क्रिया योग और प्राकृतिक उपचार काफी कारगर है. आने वाला समय फार्मा का है. कोरोना काल में फार्मास्युटिकल की ही देन भारत ने वैक्सीन बनाकर 135 करोड़ देशवासियों को टीका लगाया. पूरा विश्व इस समय फार्मा के क्षेत्र में भारत की ओर देख रहा है. ऐसे में जरूरी है कि फार्मा के छात्र खुद को गुणवत्तापूर्ण ढंग से तैयार करें. उन्होंने कहा कि आधुनिकीकरण में फार्मा छात्रों को भी ड्रोन, रोबोटिक्स व अन्य आधुनिक चिकित्सा उपकरणों का ज्ञान एवं प्रयोगों की जानकारी जरूरी है. प्रदेश सरकार इस क्षेत्र में नई संभावनाओं और रोजगार के लिए योजना बना रही है. इसी क्रम में जल्द ही प्रदेश में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फॉर्मेसी एंड बायोटेक्नोलॉजी की स्थापना होने जा रही है.
कुलपति प्रो. प्रदीप कुमार मिश्र (Vice Chancellor Prof. Pradeep Kumar Mishra) ने कहा कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं व शिक्षण व्यवस्थाओं की कमी थी. ऐसे में प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य रक्षा एवं ज्ञान के दृष्टिगत अनेकोनेक फार्मेसी व अन्य पैरामेडिकल संस्थान खुले हैं. जिससे प्रदेश में स्वास्थ्य संबंधित जानकारियां एवं सुविधाओं में विकास हुआ है. हालांकि अभी भी देश के कुछ सुदूरवर्ती क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं है. ऐसे में स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को बेहतर प्रशिक्षण एवं तकनीकों की जानकारी देकर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करायी जा सकती हैं. फार्मास्युटिकल के क्षेत्र में निय नये आयामों को स्थापित करने में आधुनिक तकनीकों को पढ़ना, समझना व उनका उचित प्रयोग जरूरी है.
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विशिष्ट अतिथि कॉन्फ्रेंस में मौजूद फॉर्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. मोंटू कुमार एम पटेल (Dr. Montu Kumar M Patel, President, Pharmacy Council of India) ने कहा कि कोरोना काल के बाद जनसामान्य स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा जागरूक हो गया है. जल्द ही छात्रों को वैश्विक स्तर पर रोजगार दिलाने के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म भी देने की तैयारी है. भारत के फार्मा उद्योग को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने के लिए विकसित देशों की फार्मा शिक्षा प्रणाली अपनाया जाएगा. आने वाले समय में पीसीआई फार्मा के शिक्षकों के लिए विशेष फैकेल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम भी आयोजित करेगी. फॉर्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया ने फार्मासिस्टों को सीमित दवाओं को लिखने के अधिकार का प्रस्ताव सरकार को दिया है.
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पूर्व ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया और मुख्यमंत्री के सलाहकार डॉ. जीएन सिंह (Dr. GN Singh, Former Drug Controller of India and Advisor to Chief Minister) ने कहा कि आने वाला समय फार्मा का है. भारत के प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के पांच ट्रिलियन इकोनॉमी के महात्वाकांक्षी विजन को साकार करने में फार्मा उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी. इस दौरान तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया. जिसमें मेडिकल जेनेटिक यूनिट डिपार्टमेंट ऑफ बायोमेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी पूत्रा मलेशिया के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. किंग ह्वा लिंग, और इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस मैटेरियल स्वीडन के ग्रुप लीडर डॉ. सतीश रंजन, प्रो. बीएन मिश्रा ने अपने विचार व्यक्त किए. पैनल डिस्कशन में प्रो. कमला पाठक, प्रो. सुनीला धनेश्वर, डॉ. विभु साहनी, डॉ. दीपेंद्र सिंह, प्रो. वंदना अरोरा सेठी शामिल रहीं.
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