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बिजली कंपनियों के प्रस्ताव पर नियामक आयोग में दाखिल हुई याचिका - लखनऊ की ताजा खबर

यूपी में बिजली कंपनियों की वार्षिक राजस्व आवश्यकता और बिजली दर बढ़ोतरी प्रस्ताव को सुनवाई के लिए आखिरकार स्वीकार कर लिया गया है. वहीं, इसको लेकर एक लोक महत्व याचिका दाखिल की गई है.

बिजली कंपनियों
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Published : Mar 1, 2023, 10:47 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने जहां एक दिन पहले प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों की वार्षिक राजस्व आवश्यकता और बिजली दर बढ़ोतरी प्रस्ताव को सुनवाई के लिए स्वीकार किया. वहीं, अब उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने नियामक आयोग में बुधवार को एक लोक महत्व याचिका दाखिल कर दी. मुद्दा उठाया कि देश का कोई भी कानून उस राज्य में बिजली दर में बढोतरी की इजाजत नहीं देता. जिस राज्य में उस राज्य के उपभोक्ताओं का सरप्लस पैसा बिजली कंपनियों पर ही निकल रहा हो.

उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का प्रदेश की बिजली कंपनियों पर लगभग 25133 करोड रुपया सरप्लस निकल रहा है. ऐसे में कानूनन उत्तर प्रदेश में बिजली बढोतरी के मुद्दे पर सुनवाई नहीं की जा सकती. विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 62 राज्य नियामक आयोग को टैरिफ निर्धारण की इजाजत देता है. लेकिन जिस राज्य में उपभोक्ताओं का सरप्लस निकलता है. वहां टैरिफ में बढोतरी नहीं घटोत्तरी के लिए सुनवाई की जाती है. उपभोक्ता परिषद ने विद्युत नियामक आयोग से रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत संवैधानिक परिपाटी को बचाने के लिए वर्तमान वार्षिक राजस्व आवश्यक्ता वर्ष 2023 -24 के साथ ही इस पूरे मामले पर भी निर्णय कराए जाने का अनुरोध किया है.

अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा उत्तर प्रदेश में बिजली दरों में कमी कराने को लेकर उपभोक्ता परिषद द्वारा विद्युत नियामक आयोग में दाखिल याचिका पर पिछले दिनों जब विद्युत नियामक आयोग ने पावर कारपोरेशन से जवाब तलब किया उस पर पावर कारपोरेशन ने यह जवाब दाखिल किया कि उपभोक्ता परिषद की उठाई गई सरप्लस रकम पर बिजली कंपनियों की तरफ से अपीलेट ट्रिब्यूनल में मुकदमा दाखिल किया गया है, इसलिए अभी आयोग को इस पर निर्णय नहीं करना चाहिए ? सबसे बडा सवाल ये उठता है कि किसी भी न्यायालय में कोई मुकदमा दाखिल कर देने मात्र से कोई भी सुनवाई या उस पर कोई भी निर्णय तब तक नहीं रोका जा सकता जब तक उस पर कोई स्टे आर्डर या अंतरिम आदेश पारित न किया हो, सिर्फ मुकदमा दाखिल कर देने से प्रक्रिया रुक जाएगी, ऐसा देश का सुप्रीम न्यायालय भी इजाजत नहीं देता.

अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने आगे कहा कि ऐसे में उपभोक्ता परिषद उत्तर प्रदेश सरकार से भी जनहित में यह मांग उठाती है कि उत्तर प्रदेश सरकार आगे आकर विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 108 के तहत विद्युत नियामक आयोग को उपभोक्ताओं के निकले सरप्लस रकम को दिलाने के लिए लोक महत्व का विषय मानते हुए निर्देश देना चाहिए.

यह भी पढ़ें- UP Budget Session 2023 : सदन में गूंजे यह मुद्दे, पुलिस भर्ती में धांधली समेत सवालों का मिला जवाब

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने जहां एक दिन पहले प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों की वार्षिक राजस्व आवश्यकता और बिजली दर बढ़ोतरी प्रस्ताव को सुनवाई के लिए स्वीकार किया. वहीं, अब उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने नियामक आयोग में बुधवार को एक लोक महत्व याचिका दाखिल कर दी. मुद्दा उठाया कि देश का कोई भी कानून उस राज्य में बिजली दर में बढोतरी की इजाजत नहीं देता. जिस राज्य में उस राज्य के उपभोक्ताओं का सरप्लस पैसा बिजली कंपनियों पर ही निकल रहा हो.

उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का प्रदेश की बिजली कंपनियों पर लगभग 25133 करोड रुपया सरप्लस निकल रहा है. ऐसे में कानूनन उत्तर प्रदेश में बिजली बढोतरी के मुद्दे पर सुनवाई नहीं की जा सकती. विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 62 राज्य नियामक आयोग को टैरिफ निर्धारण की इजाजत देता है. लेकिन जिस राज्य में उपभोक्ताओं का सरप्लस निकलता है. वहां टैरिफ में बढोतरी नहीं घटोत्तरी के लिए सुनवाई की जाती है. उपभोक्ता परिषद ने विद्युत नियामक आयोग से रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत संवैधानिक परिपाटी को बचाने के लिए वर्तमान वार्षिक राजस्व आवश्यक्ता वर्ष 2023 -24 के साथ ही इस पूरे मामले पर भी निर्णय कराए जाने का अनुरोध किया है.

अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा उत्तर प्रदेश में बिजली दरों में कमी कराने को लेकर उपभोक्ता परिषद द्वारा विद्युत नियामक आयोग में दाखिल याचिका पर पिछले दिनों जब विद्युत नियामक आयोग ने पावर कारपोरेशन से जवाब तलब किया उस पर पावर कारपोरेशन ने यह जवाब दाखिल किया कि उपभोक्ता परिषद की उठाई गई सरप्लस रकम पर बिजली कंपनियों की तरफ से अपीलेट ट्रिब्यूनल में मुकदमा दाखिल किया गया है, इसलिए अभी आयोग को इस पर निर्णय नहीं करना चाहिए ? सबसे बडा सवाल ये उठता है कि किसी भी न्यायालय में कोई मुकदमा दाखिल कर देने मात्र से कोई भी सुनवाई या उस पर कोई भी निर्णय तब तक नहीं रोका जा सकता जब तक उस पर कोई स्टे आर्डर या अंतरिम आदेश पारित न किया हो, सिर्फ मुकदमा दाखिल कर देने से प्रक्रिया रुक जाएगी, ऐसा देश का सुप्रीम न्यायालय भी इजाजत नहीं देता.

अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने आगे कहा कि ऐसे में उपभोक्ता परिषद उत्तर प्रदेश सरकार से भी जनहित में यह मांग उठाती है कि उत्तर प्रदेश सरकार आगे आकर विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 108 के तहत विद्युत नियामक आयोग को उपभोक्ताओं के निकले सरप्लस रकम को दिलाने के लिए लोक महत्व का विषय मानते हुए निर्देश देना चाहिए.

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