लखनऊ : भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) द्वारा खून आपूर्ति के लिए 250 से लेकर 1550 रुपये भले ही निर्धारित कर दिया गया हो, मगर मरीजों को राहत मिलती नहीं दिख रही है, क्योंकि खून उपलब्ध कराने में प्रोसेसिंग शुल्क लेने की लंबी फेहरिस्त है. राजधानी स्थित किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में ही नैट स्क्रीनिंग युक्त खून मरीजों को दो हजार रुपये में उपलब्ध है. यही स्थिति कॉरपोरेट अस्पतालों में भी बनी हुई है.
केजीएमयू ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. तुलिका चंद्रा ने बताया कि डीजीसीआई के नियमानुसार ही मरीजों को खून उपलब्ध कराया जाता है. केजीएमयू के मरीजों को निशुल्क खून उपलब्ध कराया जाता है. सरकारी अस्पतालों के मरीजों से 400 रुपये लिए जाते हैं. प्राइवेट अस्पताल के मरीजों को दो हजार रुपये प्रोसेसिंग लिया जाता है. प्रोसेसिंग शुल्क अधिक होने के लिए तर्क देते हुए उन्होंने बताया कि डोनेट खून में ब्लड ग्रुपिंग के अलावा ऑटोमेटेड तकनीक से एंटीबॉडी स्क्रीनिंग कराई जाती है. गंभीर बीमारियों की जांच के लिए विभिन्न तकनीक से टीटीआई टेस्ट कराए जाते हैं. आई रेडियेशन जांच आदि कई जांचें होती हैं. हर तरह के नुकसान की संभावनाओं को देखते हुए मुक्त खून मरीजों को उपलब्ध कराया जाता है. ये सभी जांचें कराने में करीब 4500 रुपये प्रति यूनिट प्रोसेसिंग शुल्क का खर्च आता है. इसे पीआरबीसी, प्लाज्मा और प्लेटलेट्स आदि में विभाजित कर प्रति यूनिट रेट फिक्स किया जाता है. प्रति यूनिट दो हजार रुपये भी, आने वाले प्रोसेसिंग शुल्क से कम ही है.
संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में संस्थान के मरीजों को निर्धारित शुल्क में खून उपलब्ध कराया जाता है. लखनऊ में आईएमए ब्लड बैंक और लखनऊ नर्सिंग होम एसोसिएशन के ब्लड बैंक द्वारा मरीजों को 1450 रुपये में प्रति यूनिट पीआरबीसी उपलब्ध कराई जाती है. प्राइवेट ब्लड बैंक व निजी अस्पतालों में स्थापित ब्लड बैंकों में प्रोसेसिंग शुल्क के नाम पर शुल्क निर्धारण अपने-अपने स्तर पर लिया जाता है. कॉरपोरेट अस्पतालों में मरीज के परिवारजनों का कहना है कि खून के लिए तीन हजार लेने के साथ ही ब्लड चढ़ाने के नाम पर तीन-चार हजार रुपये लिये जाते हैं. जिसकी निगरानी की जिम्मेदारी खाद्य एवं औषधि विभाग को करनी होती है.
यह भी पढ़ें : लोकबन्धु अस्पताल में जल्द खुलेगा ब्लड बैंक, मरीजों को मिलेगी राहत