लखनऊः उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) को लेकर भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ एआईएमआईएम (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर की कई बार मुलाकात हो चुकी है. दोनों प्रमुख नेताओं के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर लगातार बातचीत हो रही है. जानकारों के अनुसार दोनों प्रमुख नेता 'ओम' (OBC AND MUSLIM) समीकरण को फिट करने के लिए लगातार मंथन कर रहे हैं.
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उत्तर प्रदेश की करीब 130 विधानसभा सीट मुस्लिम बहुल सीटें हैं, जिनमें करीब 100 सीटों पर ओवैसी की नजर है. शुरुआती बातचीत में गठबंधन के साथ 100 सीट पर लड़ने की बातचीत हुई है. इन मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम उम्मीदवार उतारेगी. वहीं, अति पिछड़ी जातियों की पूर्वांचल की विधानसभा सीटों पर राजभर की पार्टी या भागीदारी संकल्प मोर्चे के साथ जो अन्य दल जुड़े हैं, उनमें बंटवारा किया जाएगा. जिससे सत्ता की कुर्सी पर आसानी से काबिज होने के लिए जातियों के समीकरण को फिट किया जा सके. राजनीतिक विश्लेषक रतन मणिलाल कहते हैं कि ओवैसी मुख्य रूप से मुस्लिमों के केंद्र बिंदु में रहते हैं. वह मुसलमानों की ही मुख्य रूप से राजनीति करते हैं और इसी आधार पर वह सीटों के बंटवारे का काम करेंगे. ओवैसी ने बहराइच से अपने चुनाव कार्यक्रम की शुरुआत की है, जो वोट बैंक आधारित सीटों के बंटवारे के समीकरण को बताता है.
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राजनीतिक विश्लेषक रतन मणिलाल के अनुसार ओवैसी आने वाले दिनों में अपनी मुस्लिम समुदाय वाली राजनीति को धार देते हुए नजर आएंगे. ओवैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर अगर उम्मीदवार उतारते हैं और राजभर के नेतृत्व में बनने वाले भागीदारी संकल्प मोर्चा को सफलता मिलती है तो यूपी की राजनीति में इस गठबंधन की स्थिति बेहतर हो सकती है. सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर पिछड़ी जाति की राजभर बिरादरी से आते हैं. पूर्वांचल के करीब 10 जिले अति पिछड़ी जातियों की बहुलता वाले हैं. यही कारण है वोट बैंक आधारित विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने की चर्चा की जा रही है. वहीं, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष व भागीदारी संकल्प मोर्चा के संयोजक ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि हमें 2022 में सरकार बनानी है. सीट हम कैसे ज्यादा से ज्यादा जीतें, उस पर चर्चा करके तय करेंगे. जातीय समीकरण के आधार पर चुनाव लड़ाया जाएगा.
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राजनीतिक विश्लेषक रतन मणिलाल कहते हैं कि असदुद्दीन ओवैसी पिछले कई सालों से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना के बाहर भी मुस्लिम समुदाय की राजनीति के लिए सक्रिय रहे हैं. पिछले चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी की सरकार ने उनके उत्तर प्रदेश में मीटिंग करने पर रोक लगा दी थी. क्योंकि समाजवादी पार्टी को लगता था कि जिस तरीके से यह मुस्लिम समुदाय को एकजुट करने की कोशिश करेंगे उससे कहीं न कहीं सपा को भी नुकसान हो सकता है. लेकिन अब समाजवादी पार्टी बिल्कुल खुले तौर पर अल्पसंख्यक का साथ देने से अपने को बचा रही है और सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ बढ़ रही है. ऐसे में ओवैसी को एक नया खुला मैदान उत्तर प्रदेश की विधानसभा चुनाव में नजर आ रहा है. ओवैसी मुस्लिम समाज को अपनी तरफ जोड़ने की हर कोशिश करने पर ध्यान दे रहे हैं. यह कोशिश कहीं न कहीं समाजवादी पार्टी को उस कोशिश को चैलेंज है जो उन्होंने मुस्लिम समुदाय और यादव को अपने साथ रखा था. बसपा की उस कोशिश को भी चैलेंज है जब उन्होंने दलित और मुस्लिम को अपने साथ रखा था. अब देखना होगा कि राजभर और पिछड़े वर्ग को साथ लाने के लिए सपा, बसपा और भारतीय जनता पार्टी क्या रणनीति अपनाएंगी.
यूपी में जातीय समीकरण
बता दें कि पूर्वांचल में गोरखपुर, गाजीपुर, बनारस, मऊ, चंदौली, महाराजगंज, श्रावस्ती, सिद्धार्थ नगर, बस्ती जिले अति पिछड़े दलितों की बहुलता वाले माने जाते हैं. वहीं, बहराइच, बलरामपुर, बरेली, मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, संभल, हापुड़, सिद्धार्थ नगर, बागपत, पीलीभीत, श्रावस्ती, संत कबीर नगर, बाराबंकी, बदायूं, गाजियाबाद, लखनऊ, बुलंदशहर, लखीमपुर खीरी और अमेठी में मुस्लिम बहुल सीटे हैं. इन जिलों में की करी 130 सीटों पर ओवैसी की पार्टी की नजर है. यूपी में अभी दलित 21 और मुस्लिम वोटर 19 प्रतिशत हैं. वहीं, ओबीसी वोटर 41 प्रतिशत है, जिसका वोट प्रतिशत अनेक दलों के बीच बंटता है.