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कोरोना का कहर: राजधानी में अटके ऑर्गन ट्रांसप्लांट के मामले, मरीजों के सामने छाया संकट - अंग प्रत्यारोपण

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कोरोना का कहर देखने को मिल रहा है. राजधानी के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी जैसे नामी अस्पतालों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट यानी अंग प्रत्यारोपण के मामले रुक गए हैं. देखिए यह विशेष रिपोर्ट...

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राजधानी लखनऊ में अंग प्रत्यारोपण के मामले अटके.
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Published : Apr 11, 2020, 8:38 PM IST

Updated : Apr 12, 2020, 4:37 PM IST

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में कोरोना महामारी की वजह से अन्य मर्जों के मरीजों की परेशानियां भी बढ़ रही हैं. प्रदेश में ऑर्गन ट्रांसप्लांट यानि अंग प्रत्यारोपण जैसी जटिल कवायदों पर भी विराम लग गया है. इसके चलते ट्रांसप्लांट के जरूरतमंद मरीजों और उनके परिवारों के समक्ष नया संकट खड़ा हो गया है.

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संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान.

अस्पतालों की स्थिति
राजधानी लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे अस्पतालों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधाएं उपलब्ध है, मगर कोरोना वायरस के कारण इन सभी जगहों पर ऑर्गन ट्रांसप्लांट के कई मामले लंबित हैं. अकेले एसजीपीजीआई में लगभग 16 केस की तारीख आगे बढ़ा दी गई है तो वहीं डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में भी 3 ट्रांसप्लांट अटके हुए हैं.

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किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी.

यह थी पूर्व में स्थिति
अस्पतालों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट की बात की जाए तो संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में किडनी ट्रांसप्लांट प्रक्रिया होती है. यहां पर जनवरी में 11, फरवरी में 11 और 23 मार्च तक 8 किडनी ट्रांसप्लांट किए गए हैं. वहीं डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में जनवरी में 3, फरवरी में 1 और मार्च में 2 किडनी ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किए गए हैं. किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के तहत लिवर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया की जाती है. यहां पर जनवरी से मार्च के बीच में एक लिवर ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया गया है.

क्या कह रहे विशेषज्ञ
राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. एके. त्रिपाठी कहते हैं कि उनके संस्थान में किडनी ट्रांसप्लांट होता है और यह औसतन महीने में तीन होते हैं, लेकिन 15 मार्च के बाद से इसे बंद कर दिया गया है, क्योंकि यह इलेक्टिव सर्जरी प्रोसीजर के तहत आता है. इसकी वजह से 3 मरीजों के किडनी ट्रांसप्लांट का उनके यहां प्लान था, लेकिन उन्हें स्थगित किया गया है, लेकिन मरीजों का नुकसान नहीं होने दे रहे हैं. उन्हें डायलिसिस पर रखा गया है. उनका कहना हैं कि वो प्रयास करेंगे कि ट्रांसप्लांट प्रक्रिया जब भी दोबारा शुरू हो तो इनकी संख्या में बढ़ोतरी की जाए.

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डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान.

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता डॉक्टर सुधीर सिंह की माने तो केजीएमयू में लीवर प्रत्यारोपण का कार्य भली-भांति हो रहा था. कोरोना वायरस की वजह से जो संकट चल रहा है, इसे देखते हुए फिलहाल के लिए विभाग में जो लीवर प्रत्यारोपण थे, उन्हें पाइपलाइन में रखा गया है. डॉ. सिंह ने बताया कि लीवर प्रत्यारोपण के लिए 3 रोगी उनके पास हैं, जिनकी देखरेख की जा रही है और जैसे ही इलेक्टिव सर्जरी के प्रोसीजर शुरू होगी, वैसे ही वो इन मरीजों को ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा उपलब्ध करा देंगे.

संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज के डायरेक्टर डॉ. आर.के धीमन के अनुसार एसजीपीजीआई किडनी ट्रांसप्लांट मामलों में सबसे अग्रणी रहा है. पिछले तीन महीनों में भी यहां पर सबसे अधिक ट्रांसप्लांट हुए हैं. पीजीआई में प्रति हफ्ते 3 किडनी ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किए जाते हैं.

राजधानी में अंग प्रत्यारोपण के मामले अटके.

लखनऊ: लॉकडाउन की मार, भूखे रहने को मजबूर हैं कई सपेरों के परिवार

उन्होंने बताया कि देशव्यापी लॉकडाउन के शुरू होने के बाद से ही फिलहाल इसे बंद कर दिया गया है. पीजीआई में कोरोना क्राइसिस के चलते लगभग 12 किडनी ट्रांसप्लांट मामलों की तारीखें बढ़ा दी गई हैं. डॉ. धीमन के अनुसार, जैसे ही हमें ट्रांसप्लांटेशन के अनुमति दोबारा मिलेगी, वो इसे दोगुनी रफ़्तार से करेंगे. ताकि मरीजों का इलाज सही ढंग से और सही समय पर हो सके.

कोरोना के कारण पड़ी दोहरी मार
विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि कोरोना महामारी बहुत तेजी से फैल रही है और उसका कोई इलाज नहीं है तो उससे युद्ध स्तर पर निपटना जरूरी है. हालांकि उनका यह भी कहना है कि इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि इसकी रणनीति का खामियाजा गंभीर बीमारियों से पीड़ित अन्य मरीजों को न भुगतना पड़े.

लॉकडाउन: श्मशान घाट पर खत्म होने को हैं लकड़ियां, इलेक्ट्रिक शवदाह ही सहारा

ऑर्गन ट्रांसप्लांट (अंग प्रत्यारोपण) का मामला भी ऐसा ही है, क्योंकि बेहद गंभीर परिस्थितियों और अन्य विकल्प समाप्त होने के बाद ही डॉक्टर इसकी अनुशंसा करते हैं. यह प्रक्रिया बहुत ही महंगी होने के साथ ही बहुत जटिल भी है. कई मामलों में डोनर मिलना ही मुश्किल होता है. ऐसे में इन मामलों के अटकने से न केवल मरीजों की स्वास्थ्य संबंधी तकलीफें बढ़ने की आशंका है. बल्कि यह पूरी प्रक्रिया ही गतिरोध का शिकार हो सकती है.

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में कोरोना महामारी की वजह से अन्य मर्जों के मरीजों की परेशानियां भी बढ़ रही हैं. प्रदेश में ऑर्गन ट्रांसप्लांट यानि अंग प्रत्यारोपण जैसी जटिल कवायदों पर भी विराम लग गया है. इसके चलते ट्रांसप्लांट के जरूरतमंद मरीजों और उनके परिवारों के समक्ष नया संकट खड़ा हो गया है.

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संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान.

अस्पतालों की स्थिति
राजधानी लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे अस्पतालों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधाएं उपलब्ध है, मगर कोरोना वायरस के कारण इन सभी जगहों पर ऑर्गन ट्रांसप्लांट के कई मामले लंबित हैं. अकेले एसजीपीजीआई में लगभग 16 केस की तारीख आगे बढ़ा दी गई है तो वहीं डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में भी 3 ट्रांसप्लांट अटके हुए हैं.

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किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी.

यह थी पूर्व में स्थिति
अस्पतालों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट की बात की जाए तो संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में किडनी ट्रांसप्लांट प्रक्रिया होती है. यहां पर जनवरी में 11, फरवरी में 11 और 23 मार्च तक 8 किडनी ट्रांसप्लांट किए गए हैं. वहीं डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में जनवरी में 3, फरवरी में 1 और मार्च में 2 किडनी ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किए गए हैं. किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के तहत लिवर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया की जाती है. यहां पर जनवरी से मार्च के बीच में एक लिवर ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया गया है.

क्या कह रहे विशेषज्ञ
राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. एके. त्रिपाठी कहते हैं कि उनके संस्थान में किडनी ट्रांसप्लांट होता है और यह औसतन महीने में तीन होते हैं, लेकिन 15 मार्च के बाद से इसे बंद कर दिया गया है, क्योंकि यह इलेक्टिव सर्जरी प्रोसीजर के तहत आता है. इसकी वजह से 3 मरीजों के किडनी ट्रांसप्लांट का उनके यहां प्लान था, लेकिन उन्हें स्थगित किया गया है, लेकिन मरीजों का नुकसान नहीं होने दे रहे हैं. उन्हें डायलिसिस पर रखा गया है. उनका कहना हैं कि वो प्रयास करेंगे कि ट्रांसप्लांट प्रक्रिया जब भी दोबारा शुरू हो तो इनकी संख्या में बढ़ोतरी की जाए.

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डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान.

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता डॉक्टर सुधीर सिंह की माने तो केजीएमयू में लीवर प्रत्यारोपण का कार्य भली-भांति हो रहा था. कोरोना वायरस की वजह से जो संकट चल रहा है, इसे देखते हुए फिलहाल के लिए विभाग में जो लीवर प्रत्यारोपण थे, उन्हें पाइपलाइन में रखा गया है. डॉ. सिंह ने बताया कि लीवर प्रत्यारोपण के लिए 3 रोगी उनके पास हैं, जिनकी देखरेख की जा रही है और जैसे ही इलेक्टिव सर्जरी के प्रोसीजर शुरू होगी, वैसे ही वो इन मरीजों को ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा उपलब्ध करा देंगे.

संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज के डायरेक्टर डॉ. आर.के धीमन के अनुसार एसजीपीजीआई किडनी ट्रांसप्लांट मामलों में सबसे अग्रणी रहा है. पिछले तीन महीनों में भी यहां पर सबसे अधिक ट्रांसप्लांट हुए हैं. पीजीआई में प्रति हफ्ते 3 किडनी ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किए जाते हैं.

राजधानी में अंग प्रत्यारोपण के मामले अटके.

लखनऊ: लॉकडाउन की मार, भूखे रहने को मजबूर हैं कई सपेरों के परिवार

उन्होंने बताया कि देशव्यापी लॉकडाउन के शुरू होने के बाद से ही फिलहाल इसे बंद कर दिया गया है. पीजीआई में कोरोना क्राइसिस के चलते लगभग 12 किडनी ट्रांसप्लांट मामलों की तारीखें बढ़ा दी गई हैं. डॉ. धीमन के अनुसार, जैसे ही हमें ट्रांसप्लांटेशन के अनुमति दोबारा मिलेगी, वो इसे दोगुनी रफ़्तार से करेंगे. ताकि मरीजों का इलाज सही ढंग से और सही समय पर हो सके.

कोरोना के कारण पड़ी दोहरी मार
विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि कोरोना महामारी बहुत तेजी से फैल रही है और उसका कोई इलाज नहीं है तो उससे युद्ध स्तर पर निपटना जरूरी है. हालांकि उनका यह भी कहना है कि इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि इसकी रणनीति का खामियाजा गंभीर बीमारियों से पीड़ित अन्य मरीजों को न भुगतना पड़े.

लॉकडाउन: श्मशान घाट पर खत्म होने को हैं लकड़ियां, इलेक्ट्रिक शवदाह ही सहारा

ऑर्गन ट्रांसप्लांट (अंग प्रत्यारोपण) का मामला भी ऐसा ही है, क्योंकि बेहद गंभीर परिस्थितियों और अन्य विकल्प समाप्त होने के बाद ही डॉक्टर इसकी अनुशंसा करते हैं. यह प्रक्रिया बहुत ही महंगी होने के साथ ही बहुत जटिल भी है. कई मामलों में डोनर मिलना ही मुश्किल होता है. ऐसे में इन मामलों के अटकने से न केवल मरीजों की स्वास्थ्य संबंधी तकलीफें बढ़ने की आशंका है. बल्कि यह पूरी प्रक्रिया ही गतिरोध का शिकार हो सकती है.

Last Updated : Apr 12, 2020, 4:37 PM IST
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