लखनऊ: प्रदेश में समाधान दिवस एक मजाक बनकर रह गया है. यहां अधिकारी और कर्मचारी फरियादियों की सुनवाई करने आते हैं लेकिन तहसील दिवस की शुरूआत होते ही सभी लोग अपने-अपने मोबाइल फोन में बिजी हो जाते हैं. कन्नौज से जालौन तक प्रशासनिक अधिकारी जनता की समस्या सुनने की बजाय सोशल मीडिया पर लाइक, कमेंट और शेयर करने को ज्यादा तवज्जो देते हैं. साथ ही इनके लिए नाश्ते के भी इंतजाम किए जाते हैं. तमाम आला अधिकारियों की मौजूदगी में यह खेल चलता रहता है और फरियादी निराश होकर लौट जाते हैं.
समाधान दिवस पर जनता अपनी समस्याएं लेकर आती है लेकिन फरियादियों की समस्याओं से बेखबर अधिकारी मोबाइल में बिजी रहते हैं. महिला कर्मचारी और अधिकारी ग्रुप में मोबाइल देखने में मुब्तला रहते हैं तो कुछ अधिकारी पीछे की लाइन में बैठकर सोशल मीडिया का मजा लेते नजर आते हैं. कुछ लोग नजरें बचाकर टेबल के नीचे से फोन में ताक-झांक करते देखे जा सकते हैं. ये हालात तब हैं जब मौके पर जिले के बड़े अधिकारी भी मौजूद रहते हैं. इतना ही नहीं जनता की फरियाद सुनने के नाम पर मोबाइल में खोये इन सरकारी बाबुओं के लिए चाय-नाश्ता का भी इंतजाम किया जाता है. ये हाल किसी एक जिले का नहीं है, प्रदेश के कई जिलों में अधिकारियों के लिए मोबाइल जनता की समस्याओं से ज्यादा जरूरी बन गया है.
प्रदेश के मुख्यमंत्री कितने भी दावे कर लें लेकिन इन अधिकारियों की जनता को समाधान देने में जरा भी दिलचस्पी नहीं है. सरकारी बाबुओं ने मान लिया है कि मोबाइल के इस दौर में आप समाधान की इच्छा न करें.