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नई शिक्षा नीति के खिलाफ NSUI ने लांच किया शिक्षा बचाओ-देश बचाओ अभियान

एनएसयूआई (National Student Union of India) ने सोमवार को नई शिक्षा नीति के खिलाफ उत्तर प्रदेश में शिक्षा बचाओ-देश बचाओ अभियान की शुरुआत की. एनएसयूआई का मानना है कि नयी शिक्षा नीति केंद्रीकरण व शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देती है.

नई शिक्षा नीति के खिलाफ शिक्षा बचाओ-देश बचाओ अभियान
नई शिक्षा नीति के खिलाफ शिक्षा बचाओ-देश बचाओ अभियान
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Published : Nov 8, 2021, 10:48 PM IST

लखनऊ: एनएसयूआई (National Student Union of India) ने सोमवार को नई शिक्षा नीति के खिलाफ उत्तर प्रदेश में शिक्षा बचाओ-देश बचाओ अभियान की शुरुआत की. एनएसयूआई का मानना है कि नयी शिक्षा नीति केंद्रीकरण व शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देती है. साथ ही यह शिक्षा विरोधी नीति तब लाई गई जब पूरे देश में कोरोना महामारी का कहर था. एनएसयूआई का कहना है कि मोदी सरकार शिक्षा को भी सिर्फ अमीरों तक ही सीमित रखना चाहती है. गरीब बच्चों के भविष्य के साथ यह सीधा खिलवाड़ है. वहीं शिक्षा बचाओं-देश बचाओ अभियान की शुरुआत एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव व प्रदेश प्रभारी शौर्यवीर सिंह और प्रदेश अध्यक्ष अनस रहमान ने की.

एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव एवं प्रदेश प्रभारी शौर्यवीर सिंह ने कहा कि बीजेपी सरकार ने निजीकरण के साथ नौकरी, आरक्षण व भविष्य सब खत्म करने की ठान ली है. सरकारी संस्थानों के निजीकरण से देश के युवाओं के लिए स्थायी रोजगार के अवसर खत्म हो जाएंगे. अब तो नयी शिक्षा नीति भी निजीकरण को बढ़ावा दे रही है. उन्होंने कहा कि ऐसे में गरीब जाएं तो कहां जाएं?

नई शिक्षा नीति के खिलाफ शिक्षा बचाओ-देश बचाओ अभियान

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि एसएससी, एनईईटी, जेईई जैसी सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में घोटाले सामने आ रहे है. बीजेपी सरकार युवाओं को नौकरी तक नहीं देना चाहती. इससे साफ हो जाता है कि मोदी सरकार छात्र विरोधी सरकार है. अगर हम छात्र वर्ग के लिए कोई नीति बना रहें हैं तो हमारा फर्ज बनता है कि हम उनसे चर्चा करें, लेकिन मौजूदा सरकार का रवैया है कि सभी नीतियां तानाशाही तरीके से लागू करते हैं.

यह भी पढ़ें- आमरण अनशन करने वाले सपा विधायक से अस्पताल में मिले राम गोविंद चौधरी


वहीं एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष अनस रहमान ने कहा कि जब से बीजेपी सरकार सत्ता में आई है तब से छात्रों की फैलोशिप एवं स्कॉलरशिप रोकी जा रही है. प्रवेश परीक्षाओं में घोटाले हो रहे हैं और परीक्षाओं के परिणाम देरी से आ रहे हैं, जिसके कारण छात्रों के दो से तीन साल बर्बाद हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि एनएसयूआई केंद्र सरकार से मांग करती हैं कि केंद्र व प्रदेश स्तर पर छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं में आयु सीमा में कम से कम दो साल की छूट दी जाए, क्योंकि कोरोना काल में छात्रों के दो साल पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं.

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लखनऊ: एनएसयूआई (National Student Union of India) ने सोमवार को नई शिक्षा नीति के खिलाफ उत्तर प्रदेश में शिक्षा बचाओ-देश बचाओ अभियान की शुरुआत की. एनएसयूआई का मानना है कि नयी शिक्षा नीति केंद्रीकरण व शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा देती है. साथ ही यह शिक्षा विरोधी नीति तब लाई गई जब पूरे देश में कोरोना महामारी का कहर था. एनएसयूआई का कहना है कि मोदी सरकार शिक्षा को भी सिर्फ अमीरों तक ही सीमित रखना चाहती है. गरीब बच्चों के भविष्य के साथ यह सीधा खिलवाड़ है. वहीं शिक्षा बचाओं-देश बचाओ अभियान की शुरुआत एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव व प्रदेश प्रभारी शौर्यवीर सिंह और प्रदेश अध्यक्ष अनस रहमान ने की.

एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव एवं प्रदेश प्रभारी शौर्यवीर सिंह ने कहा कि बीजेपी सरकार ने निजीकरण के साथ नौकरी, आरक्षण व भविष्य सब खत्म करने की ठान ली है. सरकारी संस्थानों के निजीकरण से देश के युवाओं के लिए स्थायी रोजगार के अवसर खत्म हो जाएंगे. अब तो नयी शिक्षा नीति भी निजीकरण को बढ़ावा दे रही है. उन्होंने कहा कि ऐसे में गरीब जाएं तो कहां जाएं?

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साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि एसएससी, एनईईटी, जेईई जैसी सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में घोटाले सामने आ रहे है. बीजेपी सरकार युवाओं को नौकरी तक नहीं देना चाहती. इससे साफ हो जाता है कि मोदी सरकार छात्र विरोधी सरकार है. अगर हम छात्र वर्ग के लिए कोई नीति बना रहें हैं तो हमारा फर्ज बनता है कि हम उनसे चर्चा करें, लेकिन मौजूदा सरकार का रवैया है कि सभी नीतियां तानाशाही तरीके से लागू करते हैं.

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वहीं एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष अनस रहमान ने कहा कि जब से बीजेपी सरकार सत्ता में आई है तब से छात्रों की फैलोशिप एवं स्कॉलरशिप रोकी जा रही है. प्रवेश परीक्षाओं में घोटाले हो रहे हैं और परीक्षाओं के परिणाम देरी से आ रहे हैं, जिसके कारण छात्रों के दो से तीन साल बर्बाद हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि एनएसयूआई केंद्र सरकार से मांग करती हैं कि केंद्र व प्रदेश स्तर पर छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं में आयु सीमा में कम से कम दो साल की छूट दी जाए, क्योंकि कोरोना काल में छात्रों के दो साल पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं.

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