लखनऊ : देश में सीमा की सुरक्षा करने से लेकर लड़ाकू विमान उड़ाने में महिलाएं परचम लहरा रही हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश का फायर विभाग (fire department of Uttar Pradesh) उन्हीं महिलाओं को खतरे का सामना उठाने के लायक ही नहीं समझता है. यही कारण है कि बीते दिनों फायर एंड इमरजेंसी सर्विस में बदलाव करने पर भी यूपी फायर सर्विस में महिलाओं की भागीदारी नहीं तय हो सकी. 1944 से अब तक कई बार विभाग की नियमावली में बदलाव किए जा चुके हैं, बावजूद इसके ब्रिटिश शासनकाल के समय महिलाओं पर फायर डिपार्टमेंट में भर्ती पर से प्रतिबंध को नहीं हटाया जा सका. जबकि बिहार, हरियाणा, तमिलनाडू व महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने फायर सर्विस में महिलाओं को जगह दे दी है.
साल 1944 में फायर सर्विस एक्ट बनने के बाद 1945 में नियमावली बनी थी. ब्रिटिश सरकार ने आग बुझाने को जोखिम भरा काम मानते हुए महिलाओं की भर्ती पर प्रतिबंध लगा दिया था. उस दौरान पुलिस और सेना की सभी विंग में महिलाओं की भर्ती पर रोक थी. बाद में समय बदला पुलिस और सेना सहित तमाम विभागों ने नियमावली में संशोधन कर महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की. फायर सर्विस में भी आ राजपत्रित अधिकारी कर्मचारी भर्ती सेवा नियमावली में साल 2010, 2013 और 2015 में संशोधन किया गया, बावजूद इसके महिलाओं की भर्ती पर विचार नहीं हो सका.
फायर सर्विस की कमान 1944 से लेकर 1972 तक स्टेट अफसर तिलक कॉक के हाथों में रही थी. इसके बाद एआईजी की तैनाती हुई, जो 1976 तक रहे. इनके बाद डीआईजी का पद सृजित कर आईपीएस अफसर को तैनात कर फायर सर्विस को पुलिस विभाग में मर्ज कर दिया गया. 1986 से लेकर 1988 तक आईजी फायर सर्विस ने कमान संभाली. इसके बाद डीजी फायर सर्विस का पद सृजित किया गया. तब से अब तक जितने भी डीजी रहे हैं उसमें एक भी बार किसी महिला आईपीएस को जिम्मेदारी नहीं दी गई है.
यूपी फ़ायर सर्विस में कई ऐसे पद हैं, जिन्हें सीधे तौर पर फ़ायर फाइटिंग के लिये नहीं भेजा जाता है. इसमें खासकर ज्वाइंट डायरेक्टर प्रिवेंशेन पद है जो फ़ायर सेफ्टी को लेकर जागरूकता कार्यक्रम व हादसों की रोकथाम के लिए प्लानिंग करता है. बावजूद इसके ब्रिटिश काल से फ़ायर सर्विस में महिलाओं के प्रतिबंध के चलते इस पद के भी लायक महिलाओं को नहीं समझा गया है, जबकि जिस प्रतिबंध को ब्रिटेन की सरकार ने लगाया था, उस देश ने महिलाओं को फाइटर बनाने की तैयारी 19वीं सदी में ही शुरू कर दी थी. 1878 में इंग्लैंड में महिला फायर ब्रिगेड कॉलेज की स्थापना कर दी गई थी 1887 में लिवर पुल कि सिंगार कंपनी ने महिला फायर फाइटर्स को नौकरी पर रखा था. 1920 में दक्षिण इंग्लैंड में महिला फायर ब्रिगेड बनाई गई और 1982 में ब्रिटिश सरकार ने लंदन फायर ब्रिगेड में महिला फायर फाइटर्स को मुकम्मल तौर पर तैनाती दी थी.
बिहार फायर डिपार्टमेंट में करीब 893 महिलाकर्मियों की भर्ती की गई. हरियाणा फायर सर्विस में बकायदा नौकरी में 33 प्रतिशत आरक्षण तक दे दिया. महाराष्ट्र में फायर ब्रिगेड में 116 महिला अग्निशमक हैं. यही नहीं फायर ब्रिगेड में कुल 180 अधिकारियों में से तीन महिला अग्निशमन अधिकारी भी हैं, हालांकि फायर सर्विस में महिलाओं की एंट्री तमिलनाडू में हुई थी, साल 2003 में मीनाक्षी विजयकुमार को बतौर संभागीय अग्निशमन अधिकारी के पद पर तैनाती दी थी. यह देश की पहली महिला अग्निशमन अधिकारी हैं. इन्हें 2013 में चैन्नई में एक बचाव अभियान के दौरान कार्रवाई के चलते इन्हें राष्ट्रपति ने बहादुरी के लिए फायर सर्विस मेडल से सम्मानित किया था.
पूर्व डीजीपी एके जैन के मुताबिक, आग लगने की स्थिति में उस पर काबू पाना जोखिम का काम होता है. यह इतना आसान नहीं होता है, आग जहां लगी होती है वहां घुसना पड़ता है, जिसमें काफी खतरा होता है. यही नहीं कभी-कभी कई दिनों तक आग लगने वाली जगह रुकना भी पड़ता है. इस वजह से फ़ायर सर्विस में महिलाओं की भर्ती नहीं की जाती है.
डीआईजी फायर सर्विस आकाश कुलहरि कहते हैं कि ये कहना गलत नहीं होगा कि फायर फाइटिंग जोखिम भरा काम है, जिस वजह से महिलाओं की भर्ती पर लगा प्रतिबंध नहीं हटाया गया है, हालांकि अब महिलाएं यूपी पुलिस सेवा में मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. ऐसे में जल्द ही विभाग द्वारा नियमावली में संशोधन में इसका प्रस्ताव रखा जाएगा.