लखनऊः इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अपने एक निर्णय में स्पष्ट किया है कि कंपनियों, कॉरपोरेट घरानों और निगमों को आपराधिक अभियोजन से कोई छूट नही प्राप्त है. कोर्ट ने कहा कि कंपनियों को इस आधार पर छूट नहीं दी जा सकती कि वे अपराध करने की मनोदशा नहीं रखती हैं. कोर्ट ने यह भी कहा है कि जब कंपनी पर आरोप हों तो बिना उसे अभियुक्त के तौर पर शामिल किए आपराधिक प्रक्रिया नहीं चल सकती.
यह निर्णय जस्टिस श्रीप्रकाश सिंह की एकल पीठ ने रायबरेली की श्रीभवानी पेपर मिल के दो निदेशकों उमाशंकर सोनी व एक अन्य की याचिका पर पारित किया. निदेशकों ने खुद के खिलाफ दायर आपराधिक परिवाद में पारित तलबी आदेश को चुनौती दी थी. कहा गया कि उक्त आपराधिक परिवाद में कंपनी को पक्षकार नहीं बनाया गया. न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि वास्तव में इस मामले में कंपनी के खिलाफ आरोप है और कंपनी एक कानूनी इकाई होती है लिहाजा अभियुक्त के तौर पर यदि कंपनी को शामिल नहीं किया गया है तो ऐसी कार्यवाही दूषित हो जाएगी.
न्यायालय ने इस टिप्पणी के साथ तलबी आदेश को रद्द कर दिया. हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि कंपनी को अभियुक्त के रूप में पेश न करने के प्रश्न पर ही यह आदेश पारित किया गया है. वर्ष 2015 में रायबरेली की श्रीभवानी पेपर मिल से सम्बंधित मामले में यह कहते हुए परिवाद दायर किया गया कि निदेशक कंपनी के कर्मचारियों के शेयरों को उनके भविष्य निधि (ईपीएफ) और कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) में जमा करने के लिए बाध्य थे जो उन्होने नहीं किया. लिहाजा कर्मचारियों के साथ जालसाजी का मामला निदेशकों के खिलाफ बनता है. इस पर रायबरेली के एसीजेएम की अदालत ने याचियों को तलब कर लिया.
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