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NGT ने UP के मुख्य सचिव को किया तलब, पानी की व्यवस्था पर मांगा जवाब

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Published : Sep 23, 2019, 11:38 PM IST

Updated : Sep 24, 2019, 2:49 PM IST

एनजीटी ने यूपी की हिंडन नदी के आसपास के गांवों में पीने के पानी उचित व्यवस्था करने का निर्देश दिया है. इसके लिए एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को तलब कर व्यवस्था नहीं होने की वजह मांगी है.

राष्ट्रीय हरित अधिकरण

नई दिल्ली: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पश्चिमी उत्तरप्रदेश की हिंडन नदी के आसपास के गांवों में पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं करने पर उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को तलब किया है. एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली बेंच ने मुख्य सचिव को 21 अक्टूबर को पेश होने का निर्देश दिया है.

3 हफ्ते में रिपोर्ट दाखिल करने का दिया निर्देश
एनजीटी ने मुख्य सचिव को एनजीटी के आदेशों का पालन करने में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है. एनजीटी ने कहा कि जिन अधिकारियों ने पेयजल उपलब्ध कराने के लिए डीपीआर को स्वीकृत करने में देरी की है, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए. एनजीटी ने मुख्य सचिव को तीन हफ्ते में एनजीटी को अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है.


41 गांवों में ही पाइप लाइन की व्यवस्था
एनजीटी ने पाया कि अनुपालन रिपोर्ट के मुताबिक 148 प्रभावित गांवों में से केवल 41 गांवों में ही पाइप के जरिये पानी पहुंचाने की व्यवस्था है. ये आंकड़ा पिछले 25 जुलाई का है. इसका मतलब कि 25 जुलाई के बाद इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है. एनजीटी ने पाया कि बाकी 107 गांवों में पेयजल की व्यवस्था के लिए बने डीपीआर की स्वीकृति ही नहीं मिली है. यहां तक कि पानी के स्रोत को लेकर कोई सूचना नहीं दी गई है कि हैंडपंप सुरक्षित हैं या नहीं.


1088 हैंडपंपों को हटाया जा चुका है
एनजीटी ने कहा कि अनुपालन रिपोर्ट में पानी की गुणवत्ता के बारे में भी नहीं बताया गया है. प्रदूषित पानी देने वाले 1088 हैंडपंपों को हटाया जा चुका है. हेल्थ चेक अप के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों की तादाद काफी है. उसके बावजूद कोई उपचारात्मक कार्रवाई नहीं की गई. उनमें से कई लोगों को कैंसर हो चुका है. जिनका बड़े अस्पतालों में इलाज चल रहा है.


124 औद्योगिक ईकाईयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज
8 अगस्त 2018 को एनजीटी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 7 जिलों की प्रदूषण फैलाने वाली 124 औद्योगिक ईकाईयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था. जिन सात जिलों में ये औद्योगिक ईकाईयां स्थित हैं वे हैं मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा, बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली और सहारनपुर. इन औद्योगिक ईकाईयों पर काली, कृष्णा और हिंडन नदियों को प्रदूषित करने का आरोप था.

एनजीटी ने राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वे प्रदूषित पानी के शिकार लोगों के लिए विशेष चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराएं. साथ ही प्रदूषित पानी से विकलांग हुए लोगों को रोजगार मुहैया कराने पर विचार करें.

पानी में मिली मरकरी तत्व
बता दें कि 12 जुलाई 2018 को एनजीटी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 6 जिलों के हैंडपंप और बोरवेल से पानी निकालने पर रोक लगा दी थी. एनजीटी ने कहा कि ये शर्मिंदा होने की बात है कि पानी में मरकरी मिला. बच्चे पानी पीने के लिए मजबूर हैं. एनजीटी ने गठित स्पेशल कमेटी की रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने आदेश दिया था कि जिन बोरवेल से मरकरी निकल रहा है उन्हें सील करें.

जानिए याचिका में क्या कहा गया
याचिका दोआबा पर्यावरण समिति ने दायर की है. याचिकाकर्ता की ओर से वकील गौरव बंसल ने एनजीटी से कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में भ्रष्टाचार की वजह से इन छह जिलों के बच्चे मरकरी युक्त पानी पीने को मजबूर हैं. इन हैंडपंपों का पानी पीने की वजह से उन्हें हेपाटाइटिस बी, कैंसर और दूसरी बीमारियां हो रही हैं.

नई दिल्ली: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पश्चिमी उत्तरप्रदेश की हिंडन नदी के आसपास के गांवों में पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं करने पर उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को तलब किया है. एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली बेंच ने मुख्य सचिव को 21 अक्टूबर को पेश होने का निर्देश दिया है.

3 हफ्ते में रिपोर्ट दाखिल करने का दिया निर्देश
एनजीटी ने मुख्य सचिव को एनजीटी के आदेशों का पालन करने में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है. एनजीटी ने कहा कि जिन अधिकारियों ने पेयजल उपलब्ध कराने के लिए डीपीआर को स्वीकृत करने में देरी की है, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए. एनजीटी ने मुख्य सचिव को तीन हफ्ते में एनजीटी को अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है.


41 गांवों में ही पाइप लाइन की व्यवस्था
एनजीटी ने पाया कि अनुपालन रिपोर्ट के मुताबिक 148 प्रभावित गांवों में से केवल 41 गांवों में ही पाइप के जरिये पानी पहुंचाने की व्यवस्था है. ये आंकड़ा पिछले 25 जुलाई का है. इसका मतलब कि 25 जुलाई के बाद इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है. एनजीटी ने पाया कि बाकी 107 गांवों में पेयजल की व्यवस्था के लिए बने डीपीआर की स्वीकृति ही नहीं मिली है. यहां तक कि पानी के स्रोत को लेकर कोई सूचना नहीं दी गई है कि हैंडपंप सुरक्षित हैं या नहीं.


1088 हैंडपंपों को हटाया जा चुका है
एनजीटी ने कहा कि अनुपालन रिपोर्ट में पानी की गुणवत्ता के बारे में भी नहीं बताया गया है. प्रदूषित पानी देने वाले 1088 हैंडपंपों को हटाया जा चुका है. हेल्थ चेक अप के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों की तादाद काफी है. उसके बावजूद कोई उपचारात्मक कार्रवाई नहीं की गई. उनमें से कई लोगों को कैंसर हो चुका है. जिनका बड़े अस्पतालों में इलाज चल रहा है.


124 औद्योगिक ईकाईयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज
8 अगस्त 2018 को एनजीटी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 7 जिलों की प्रदूषण फैलाने वाली 124 औद्योगिक ईकाईयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था. जिन सात जिलों में ये औद्योगिक ईकाईयां स्थित हैं वे हैं मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा, बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली और सहारनपुर. इन औद्योगिक ईकाईयों पर काली, कृष्णा और हिंडन नदियों को प्रदूषित करने का आरोप था.

एनजीटी ने राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वे प्रदूषित पानी के शिकार लोगों के लिए विशेष चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराएं. साथ ही प्रदूषित पानी से विकलांग हुए लोगों को रोजगार मुहैया कराने पर विचार करें.

पानी में मिली मरकरी तत्व
बता दें कि 12 जुलाई 2018 को एनजीटी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 6 जिलों के हैंडपंप और बोरवेल से पानी निकालने पर रोक लगा दी थी. एनजीटी ने कहा कि ये शर्मिंदा होने की बात है कि पानी में मरकरी मिला. बच्चे पानी पीने के लिए मजबूर हैं. एनजीटी ने गठित स्पेशल कमेटी की रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने आदेश दिया था कि जिन बोरवेल से मरकरी निकल रहा है उन्हें सील करें.

जानिए याचिका में क्या कहा गया
याचिका दोआबा पर्यावरण समिति ने दायर की है. याचिकाकर्ता की ओर से वकील गौरव बंसल ने एनजीटी से कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में भ्रष्टाचार की वजह से इन छह जिलों के बच्चे मरकरी युक्त पानी पीने को मजबूर हैं. इन हैंडपंपों का पानी पीने की वजह से उन्हें हेपाटाइटिस बी, कैंसर और दूसरी बीमारियां हो रही हैं.

Intro:नई दिल्ली। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पश्चिमी उत्तरप्रदेश की हिंडन नदी के आसपास के गांवों में पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं करने पर उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव को तलब किया है। एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली बेंच ने मुख्य सचिव को 21 अक्टूबर को पेश होने का निर्देश दिया है।



Body:एनजीटी ने मुख्य सचिव को एऩजीटी के आदेशों का पालन करने में कोताही बरतनेवाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है। एनजीटी ने कहा कि जिन अधिकारियों ने पेयजल उपलब्ध कराने के लिए डीपीआर को स्वीकृत करने में देरी की उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। एनजीटी ने मुख्य सचिव को तीन हफ्ते में कार्रवाई कर एनजीटी को अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
एनजीटी ने पाया कि अनुपालन रिपोर्ट के मुताबिक 148 प्रभावित गांवों में से केवल 41 गांवों में ही पाइप के जरिये पानी पहुंचाने की व्यवस्था है। ये आंकड़ा पिछले 25 जुलाई को सुनवाई के दौरान भी था। इसका मतलब कि 25 जुलाई के बाद इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है। एऩजीटी ने पाया कि बाकी 107 गांवों में पेयजल की व्यवस्था के लिए बने डीपीआर की स्वीकृति ही नहीं मिली है। यहां तक कि पानी के स्रोत को लेकर कोई सूचना नहीं दी गई है कि हैंडपंप सुरक्षित हैं या नहीं।
एनजीटी ने कहा कि अनुपालन रिपोर्ट में पानी की गुणवत्ता के बारे में भी नहीं बताया गया है। प्रदूषित पानी देनेवाले 1088 हैंड पंपों को हटाया जा चुका है। हेल्थ चेक अप के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों की तादाद काफी है उसके बावजूद कोई उपचारात्मक कार्रवाई नहीं की गई। उनमें से कई लोगों को कैंसर हो चुका है जिनका बड़े अस्पतालों में इलाज चल रहा है।
8 अगस्त 2018 को एनजीटी ने पश्चिमी उत्तरप्रदेश के 7 जिलों की प्रदूषण फैलानेवाली 124 औद्योगिक ईकाईयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था। जिन सात जिलों में ये औद्योगिक ईकाईयां स्थित हैं वे हैं मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा,बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली और सहारनपुर। इन औद्योगिक ईकाईयों पर काली, कृष्णा और हिंडन नदियों को प्रदूषित करने का आरोप था।
एनजीटी ने राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वे प्रदूषित पानी के शिकार लोगों के लिए विशेष चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराएं। साथ ही प्रदूषित पानी से विकलांग हुए लोगों को रोजगार मुहैया कराने पर विचार करे।
आपको बता दें कि 12 जुलाई 2018 को एनजीटी ने 
पश्चिमी उत्तरप्रदेश के  6 जिलों के हैंडपंप और बोरवेल से पानी निकालने पर रोक लगा दी थी। एनजीटी ने हैंडपंप और बोरवेल पानी से मरकरी निकाल रहे हैंडपम्प और बोरवेल पर रोक लगाई थी। एनजीटी ने कहा कि ये शर्मिंदा होने की बात है कि पानी में मरकरी मिला जहाँ पानी पीने के लिए बच्चे मजबूर हैं। 
एनजीटी द्वारा गठित स्पेशल कमेटी की रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने आदेश दिया था कि जिन बोरवेल से मरकरी निकल रहा है उन्हें सील करें।



Conclusion:याचिका दोआबा पर्यावरण समिति ने दायर की है। याचिकाकर्ता की ओर से वकील गौरव बंसल ने एनजीटी से कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में भ्रष्टाचार की वजह से इन छह जिलों के बच्चे मरकरी युक्त पानी पीने को मजबूर हैं। इन हैंडपंपों का पानी पीने की वजह से उन्हें हेपाटाइटिस बी, कैंसर और दूसरी बीमारियां हो रही हैं।
Last Updated : Sep 24, 2019, 2:49 PM IST
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