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Lohia Institute : इस तकनीक से हटाया जाएगा दिल को खून पहुंचाने वाली नसों में जमा कैल्शियम

दिल को खून पहुंचाने वाली नसों को ब्लाॅक होने पर नई तकनीक (Lohia Institute) से उसमें जमा कैल्शियम हटाया जा सकेगा. इससे ओपन हार्ट सर्जरी की नौबत नहीं आएगी. लोहिया संस्थान में चार मरीजों की सफल एंजियोप्लास्टी की गई.

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Published : Feb 14, 2023, 11:39 AM IST

लखनऊ : दिल को खून पहुंचाने वाली नसों में जमा कैल्शियम को और बेहतर तरीके से हटाया जा सकेगा. खास बात यह है कि नसों के भीतर व बाहर जमा कैल्शियम को एक ही तकनीक व उपकरण से हटाकर मरीजों को नया जीवन दिया जा सकता है. यह संभव होगा कोरोनरी ऑरबिटल एर्थेक्टॉमी तकनीक से. लोहिया संस्थान के कॉर्डियोलॉजी विभाग में इस तकनीक से एंजियोप्लास्टी शुरू कर दी गई है. यह जानकारी लोहिया संस्थान में कॉर्डियोलॉजी विभाग के डॉ. सुदर्शन विजय ने दी.

कॉर्डियोलॉजी विभाग में कोरोनरी ऑरबिटल एर्थेक्टॉमी तकनीक से चार मरीजों की एंजियोप्लास्टी की गई. इसके बाद बीमारी से मरीज को राहत भी प्रदान की गई. चारों मरीजों की तबीयत स्थिर है. डॉ. सुदर्शन विजय ने बताया कि 'अभी तक दिल को खून पहुंचाने वाली नसों के भीतर जमा कैल्शियम को हटाने के लिए रोटाब्लेशन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस पर करीब 65 हजार रुपये खर्च आता है. नसों के बाहरी हिस्से में जमा कैल्शियम को हटाने के लिए लिथोट्रिप्सी तकनीक के तहत शॉक वेव बैलून का इस्तेमाल किया जाता है. इस पर करीब तीन लाख रुपये खर्च आता है. उन्होंने बताया कि 'कोरोनरी ऑरबिटल एर्थेक्टॉमी में मरीज को करीब दो लाख रुपये खर्च करने पड़ेंगे. यह तकनीक ज्यादा बेहतर व सटीक होगी. सुरक्षित भी अधिक है.

जटिल है कैल्शियम हटाना : कॉर्डियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. भुवन चन्द्र तिवारी ने बताया कि 'नसों में जमा कैल्शियम को हटाना कठिन हो जाता है. कई बार कोलेस्ट्रॉल व कैल्शियम दोनों ही नसों के भीतर व बाहर जम जाते हैं. इससे नस ब्लॉक हो जाती है. दिल को पर्याप्त खून नहीं मिल पाता है. इससे मरीज को सीने में दर्द समेत दूसरी गंभीर समस्या हो सकती है.' उन्होंने बताया कि 'कैल्शियम पुराना होने से वह सख्त हो जाता है. ऐसे में एंजियोप्लास्टी कठिन हो जाती है. नस के फटने का खतरा रहता है. कैल्शियम हटने के बाद स्टंट प्रत्यारोपित किया जा सकता है. लिहाजा आधुनिक तकनीक अधिक कारगर होगी.'

डॉ. सुदर्शन विजय ने बताया कि 'दिल की नसों में कैल्शियम जमने की प्रवृत्ति में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसकी कई वजह हो सकती हैं. खान-पान व जीवनशैली भी जिम्मेदार है.' उन्होंने बताया कि 'एंजियोप्लास्टी के लिए अस्पताल पहुंचने वाले छह से 30 फीसदी मरीजों में कैल्शियम जमने संबंधी परेशानी देखने को मिल रही है. यह गंभीर चिंता का विषय है.'

इन डॉक्टरों ने किया ऑपरेशन : डॉ. सुर्दशन विजय, डॉ. अमरीष, डॉ. प्रशांत व डॉ. रितेश ने चारों मरीजों की नई तकनीक से एंजियोप्लास्टी की. उनके साथ टेक्नीशियन प्रियरंजन, दिव्या, मोहित रहीं. नर्सिंग स्टाफ दीपमाला व अजय थे.

यह भी पढ़ें : UP Weather Update : तेज हवाओं ने बढ़ाई सर्दी, अधिकतम व न्यूनतम तापमान में 5 डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट

लखनऊ : दिल को खून पहुंचाने वाली नसों में जमा कैल्शियम को और बेहतर तरीके से हटाया जा सकेगा. खास बात यह है कि नसों के भीतर व बाहर जमा कैल्शियम को एक ही तकनीक व उपकरण से हटाकर मरीजों को नया जीवन दिया जा सकता है. यह संभव होगा कोरोनरी ऑरबिटल एर्थेक्टॉमी तकनीक से. लोहिया संस्थान के कॉर्डियोलॉजी विभाग में इस तकनीक से एंजियोप्लास्टी शुरू कर दी गई है. यह जानकारी लोहिया संस्थान में कॉर्डियोलॉजी विभाग के डॉ. सुदर्शन विजय ने दी.

कॉर्डियोलॉजी विभाग में कोरोनरी ऑरबिटल एर्थेक्टॉमी तकनीक से चार मरीजों की एंजियोप्लास्टी की गई. इसके बाद बीमारी से मरीज को राहत भी प्रदान की गई. चारों मरीजों की तबीयत स्थिर है. डॉ. सुदर्शन विजय ने बताया कि 'अभी तक दिल को खून पहुंचाने वाली नसों के भीतर जमा कैल्शियम को हटाने के लिए रोटाब्लेशन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस पर करीब 65 हजार रुपये खर्च आता है. नसों के बाहरी हिस्से में जमा कैल्शियम को हटाने के लिए लिथोट्रिप्सी तकनीक के तहत शॉक वेव बैलून का इस्तेमाल किया जाता है. इस पर करीब तीन लाख रुपये खर्च आता है. उन्होंने बताया कि 'कोरोनरी ऑरबिटल एर्थेक्टॉमी में मरीज को करीब दो लाख रुपये खर्च करने पड़ेंगे. यह तकनीक ज्यादा बेहतर व सटीक होगी. सुरक्षित भी अधिक है.

जटिल है कैल्शियम हटाना : कॉर्डियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. भुवन चन्द्र तिवारी ने बताया कि 'नसों में जमा कैल्शियम को हटाना कठिन हो जाता है. कई बार कोलेस्ट्रॉल व कैल्शियम दोनों ही नसों के भीतर व बाहर जम जाते हैं. इससे नस ब्लॉक हो जाती है. दिल को पर्याप्त खून नहीं मिल पाता है. इससे मरीज को सीने में दर्द समेत दूसरी गंभीर समस्या हो सकती है.' उन्होंने बताया कि 'कैल्शियम पुराना होने से वह सख्त हो जाता है. ऐसे में एंजियोप्लास्टी कठिन हो जाती है. नस के फटने का खतरा रहता है. कैल्शियम हटने के बाद स्टंट प्रत्यारोपित किया जा सकता है. लिहाजा आधुनिक तकनीक अधिक कारगर होगी.'

डॉ. सुदर्शन विजय ने बताया कि 'दिल की नसों में कैल्शियम जमने की प्रवृत्ति में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसकी कई वजह हो सकती हैं. खान-पान व जीवनशैली भी जिम्मेदार है.' उन्होंने बताया कि 'एंजियोप्लास्टी के लिए अस्पताल पहुंचने वाले छह से 30 फीसदी मरीजों में कैल्शियम जमने संबंधी परेशानी देखने को मिल रही है. यह गंभीर चिंता का विषय है.'

इन डॉक्टरों ने किया ऑपरेशन : डॉ. सुर्दशन विजय, डॉ. अमरीष, डॉ. प्रशांत व डॉ. रितेश ने चारों मरीजों की नई तकनीक से एंजियोप्लास्टी की. उनके साथ टेक्नीशियन प्रियरंजन, दिव्या, मोहित रहीं. नर्सिंग स्टाफ दीपमाला व अजय थे.

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