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2019 ने दिया 'तीन तलाक' को तलाक

साल 2019 में जहां कई ऐसी घटनाएं रहीं, जिसने देश को झकझोर दिया, वहीं मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की चली आ रही प्रथा को सरकार ने कानून के दायरे में लाने का काम किया. इस कानून से न सिर्फ मुस्लिम महिलाओं की जीत हुई, बल्कि तीन तलाक पीड़िताओं को गर्व से जीने का अधिकार मिल गया.

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Published : Dec 30, 2019, 2:14 PM IST

Updated : Dec 30, 2019, 2:28 PM IST

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तीन तलाक पर कानून.

लखनऊः हर गुजरता साल कुछ दर्द देता है तो कुछ जख्मों पर मरहम लगा जाता है. साल 2019 भी कुछ ऐसा ही रहा. इस साल कुछ नए जख्म मिले तो कुछ बरसों पुराने जख्मों को हमेशा के लिए भर दिया गया. ऐसा ही एक जख्म जो मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को बरसों से दर्द दे रहा था, उस पर सरकार ने मरहम लगाने का काम किया. तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के लिए अभिशाप की तरह बरसों से उनका पीछा कर रहा था. साल 1980 में शाहबानो ने जब इसके लिए आवाज उठाई तब किसे पता था कि यह लड़ाई कितनी लंबी चलेगी.

2019 में बना तीन तलाक कानून.

शाहबानो ने छेड़ी तीन तलाक के खिलाफ जंग
शाहबानो के जज्बे ने देश की कई मुस्लिम महिलाओं को हिम्मत दी कि वह तलाक के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर सकें. एक सर्वे के अनुसार, मध्यमवर्गीय परिवारों में तीन तलाक के ज्यादा मामले देखने को मिलते हैं. कोई शौहर फोन कर तलाक दे देता है तो कोई मैसेज पर. वहीं कई ऐसे भी थे जो राह चलते तलाक, तलाक, तलाक कह देते. फिर महिला का क्या, वह न्याय की तलाश में दर-दर भटकने को मजबूर हो जाती.

सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया था अमान्य
1986 में सामने आए शाहबानो और 2002 में सामने आए शमीम आरा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को भारतीय संविधान और इस्लाम की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए अमान्य कर दिया था. फिर भी गाहे-बगाहे तीन तलाक के मामले मुस्लिम महिलाओं के जीवन में नासूर बन कर चुभते रहे हैं.

कुरान में भी तीन तलाक को गलत ठहराया है
इस्लाम धर्म की पवित्र किताब कुरान में तीन तलाक को गलत ठहराया गया है. वहीं पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे इस्लामिक देशों में तीन तलाक पर पाबंदी है. 2018 में शायरा बानों के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने तलाक-ए-बिद्दत को अमान्य ठहराया. साथ ही सरकार को कानून बनाने के लिए निर्देश दिया.

मुस्लिम महिला( विवाह सरंक्षण) विधेयक
आखिरकार साल 2019 की 25 जुलाई को लोकसभा में मुस्लिम महिला (विवाह सरंक्षण) विधेयक को पास किया गया. 30 जुलाई का दिन मुस्लिम महिलाओं के जीवन में नई खुशियां लेकर आया. जब राज्यसभा में भी तीन तलाक बिल पारित हो गया.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कानून पर उठाए सवाल
राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब यह विधेयक कानून बन चुका है. इस कानून के तहत तीन तलाक देने वाले पति को तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है. वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस कानून का विरोध किया है. तीन तलाक पर बने कानून पर भले ही कई प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं पर मुस्लिम महिलाओं की सालों से चली आ रही लड़ाई साल 2019 में खत्म सी हो गई.

लखनऊः हर गुजरता साल कुछ दर्द देता है तो कुछ जख्मों पर मरहम लगा जाता है. साल 2019 भी कुछ ऐसा ही रहा. इस साल कुछ नए जख्म मिले तो कुछ बरसों पुराने जख्मों को हमेशा के लिए भर दिया गया. ऐसा ही एक जख्म जो मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को बरसों से दर्द दे रहा था, उस पर सरकार ने मरहम लगाने का काम किया. तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के लिए अभिशाप की तरह बरसों से उनका पीछा कर रहा था. साल 1980 में शाहबानो ने जब इसके लिए आवाज उठाई तब किसे पता था कि यह लड़ाई कितनी लंबी चलेगी.

2019 में बना तीन तलाक कानून.

शाहबानो ने छेड़ी तीन तलाक के खिलाफ जंग
शाहबानो के जज्बे ने देश की कई मुस्लिम महिलाओं को हिम्मत दी कि वह तलाक के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर सकें. एक सर्वे के अनुसार, मध्यमवर्गीय परिवारों में तीन तलाक के ज्यादा मामले देखने को मिलते हैं. कोई शौहर फोन कर तलाक दे देता है तो कोई मैसेज पर. वहीं कई ऐसे भी थे जो राह चलते तलाक, तलाक, तलाक कह देते. फिर महिला का क्या, वह न्याय की तलाश में दर-दर भटकने को मजबूर हो जाती.

सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया था अमान्य
1986 में सामने आए शाहबानो और 2002 में सामने आए शमीम आरा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को भारतीय संविधान और इस्लाम की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए अमान्य कर दिया था. फिर भी गाहे-बगाहे तीन तलाक के मामले मुस्लिम महिलाओं के जीवन में नासूर बन कर चुभते रहे हैं.

कुरान में भी तीन तलाक को गलत ठहराया है
इस्लाम धर्म की पवित्र किताब कुरान में तीन तलाक को गलत ठहराया गया है. वहीं पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे इस्लामिक देशों में तीन तलाक पर पाबंदी है. 2018 में शायरा बानों के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने तलाक-ए-बिद्दत को अमान्य ठहराया. साथ ही सरकार को कानून बनाने के लिए निर्देश दिया.

मुस्लिम महिला( विवाह सरंक्षण) विधेयक
आखिरकार साल 2019 की 25 जुलाई को लोकसभा में मुस्लिम महिला (विवाह सरंक्षण) विधेयक को पास किया गया. 30 जुलाई का दिन मुस्लिम महिलाओं के जीवन में नई खुशियां लेकर आया. जब राज्यसभा में भी तीन तलाक बिल पारित हो गया.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कानून पर उठाए सवाल
राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब यह विधेयक कानून बन चुका है. इस कानून के तहत तीन तलाक देने वाले पति को तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है. वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस कानून का विरोध किया है. तीन तलाक पर बने कानून पर भले ही कई प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं पर मुस्लिम महिलाओं की सालों से चली आ रही लड़ाई साल 2019 में खत्म सी हो गई.

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Last Updated : Dec 30, 2019, 2:28 PM IST
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