लखनऊ : राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिक लगातार हर्बल रंगों के निर्माण के लिए कार्य कर रहे हैं. हर्बल रंग किसी तरह से कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और यह पूरी तरह से नेचुरल होते हैं. एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत हर्बल रंगों का निर्माण किया है. वैज्ञानिकों ने इस बार होली के लिए दो तरह के और हर्बल रंग बनाए हैं. जिसमें एक नारंगी रंग है, जिसे गुलाब से बनाया गया है और दूसरा बैंगनी रंग, जिसे गेंदा व गुलाब से बनाया गया है. यह हर्बल रंग कुछ बाजार में भी उपलब्ध हैं और कुछ नए रंग बनाए गए हैं जो कि जल्दी बाजार में उपलब्ध होंगे.
टेंपल बेस्ट फ्लावर से बनते हैं हर्बल रंग : वैज्ञानिक डॉ. महेश पाल ने बताया कि एनबीआरआई की लैब में जितने भी रंग बनाए जाते हैं. वह टेंपल वेस्ट फ्लावर होते हैं. जिन्हें प्रदेश की अलग-अलग प्रख्यात मंदिरों से एकत्रित कर लाया जाता है और अच्छी तरह से उसे धोकर सुखाया जाता है. इसके बाद इसे कड़क धूप में दो-चार दिन के लिए छोड़ देते हैं. इसके बाद रोटावेपर के द्वारा फूलों का कलर निकाला जाता है. उन्हें बताया कि यह हर्बल रंग इतनी स्मूद हैं कि आप को छूने में बहुत ही मुलायम महसूस होगा. जब भी कोई इसे आपके गाल में लगाएगा तो बहुत ही आसानी से यह छूट भी जाएगा. इससे किसी प्रकार की कोई एलर्जी नहीं होने वाली है.
वैज्ञानिक डॉ. महेश पाल के अनुसार बाजार में मिलने वाले सिंथेटिक रंगों में बहुत अधिक हेवी मेटल्स का इस्तेमाल किया जाता है. आपने देखा होगा कि यह बहुत ज्यादा चमकीले होते हैं. इससे त्वचा को बहुत नुकसान पहुंचता है. सिंथेटिक रंग में लेड, क्रोमियम, मैग्नीज, जिंक की मात्रा अधिक होती है. इसके कारण यह त्वचा सहित आंखों के लिए भी काफी ज्यादा नुकसानदायक होता है. अगर आंखों में यह रंग चला जाए तो आंखों में जलन, लालपन जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है. कई बार यह काफी नुकसानदायक हो जाती है. क्योंकि इसके खतरनाक साइड इफेक्ट होते हैं. कई बार आप लोग देखते होंगे कि होली में रंग खेलने के बाद लोगों के चेहरे पर जलन व लालपन बना रहता है. यही रंग का रिएक्शन होता है.
एनबीआरआई के द्वारा बनाए गए हर्बल रंग, जिसमें लाल, हरा, पीला रंग पहले से ही बाजार में उपलब्ध हैं. इसके अलावा इस बार जो नया रंग बनाया गया है उसकी टेक्नोलॉजी जल्दी कंपनी से शेयर करेंगे. क्योंकि जब भी हम किसी चीज का निर्माण करते हैं तो उसके बाद उसकी जो टेक्नोलॉजी होती है. उसको हम कंपनी को बेचते हैं, फिर कंपनी उस टेक्नोलॉजी के जरिए एनबीआरआई के नाम से हर्बल रंग बनाता है और उसे बाजार में बेचता है. फिलहाल जो रंग बाजार में हैं, वह हर कहीं उपलब्ध हैं. बस पब्लिक एनबीआरआई के होल मार्क को देख कर ही बाजार से हर्बल रंग खरीदें.
बहुत सस्ते में हैं उपलब्ध : क्योंकि यह रगं टेंपल वेस्ट फ्लावर से बनाए गए हैं. इसलिए इसका दाम बहुत ज्यादा नहीं रखा गया है. इन हर्बल रंगों का दाम एनबीआरआई के द्वारा 200 रुपये किलो के हिसाब से रखा गया है. आम पब्लिक इसे आसानी से खरीद भी सकती है, क्योंकि एक किलो रंग कोई नहीं खरीदता है. इस हिसाब से इसका दाम बहुत कम निर्धारित किया गया है. ताकि आम पब्लिक आसानी से एनबीआरआई के हर्बल रंगों खरीद सके. डॉ महेश पाल के अंडर में फ्लोरीकल्चर मिशन के एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत वैशाली मिश्रा ने बताया कि फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत हम टेंपल बेस्ट फ्लावर को प्रदेश के अलग-अलग मंदिरों से इकट्ठा करते हैं. जब मंदिरों से फूल को एकत्रित करते हैं. उसमें सभी मिले-जुले फूल होते हैं. जिसमें गुलाब, गेंदा, गुड़हल और बेलपत्र मिला होता है. जिसे अलग-अलग करके अच्छी तरीके से धोया जाता है फिर उसके बाद धूप में सुखाया जाता है. इसके बाद इसे रोटावेपर में डाल कर हाई टेंपरेचर में गर्म करके इसका कलर निकाला जाता है.
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