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लॉकडाउन के बाद पटरी पर लौटा एमएसएमई सेक्टर

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Published : Dec 20, 2020, 6:34 PM IST

Updated : Dec 20, 2020, 6:44 PM IST

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण लागू हुए लॉकडाउन का असर तकरीबन हर क्षेत्र पर पड़ा. एमएसएमई सेक्टर भी इससे अछूता नहीं रहा. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस आपदा के समय एमएसएमई सेक्टर पर फोकस किया और बंद पड़ी इकाइयों का संचालन शुरू करवाया. इसके साथ ही नई एमएसएमई इकाइयों को ऋण भी दिलाया, जिस वजह से एमएसएमई सेक्टर एक बार फिर से पटरी पर आता दिखाई दे रहा है.

change in msme sector after lockdown in uttar pradesh
लॉकडाउन के बाद पटरी पर लौटा एमएसएमई सेक्टर.

लखनऊ : कोरोना ने देश और दुनिया भर के उद्योगों को भारी चोट पहुंचाई. छोटे-बड़े सभी उद्योग ठहर गए थे. एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम) सेक्टर में रुकावट आने से उत्तर प्रदेश के हर हिस्से में लोग प्रभवित हुए. ऐसी विपरीत परिस्थिति में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सबसे पहले एमएसएमई सेक्टर को चुना. उसे आगे बढ़ाने पर तेजी से काम शुरू किया. बंद पड़ी इकाइयों का संचालन शुरू किया गया. सरकार ने करीब सात लाख नई एमएसएमई इकाइयों को ऋण दिलाया. सिंगल विंडो सिस्टम को अपनाकर प्रक्रिया को आसान किया. एमएसएमई सेक्टर आज एक बार फिर से पटरी पर आता दिखाई दे रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट.

आठ महीने में करीब सात लाख नई इकाइयों को बढ़ाया आगे
उद्योग जगत में चारों तरफ जब निराशा छाई हुई थी, उस वक्त प्रदेश में एमएसएमई सेक्टर की समस्याओं को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ठोस कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए. शासन स्तर पर कार्ययोजना तैयार की गई. इस कार्ययोजना पर अमल करते हुए पिछले आठ महीने में आत्मनिर्भर पैकेज के जरिए छह लाख 65 हजार 740 नई इकाइयों को आगे ही नहीं बढ़ाया गया, बल्कि उनमें 26 लाख 62 हजार 960 लोगों को रोजगार भी मिला. सेवायोजन पोर्टल के जरिए भी पांच लाख 25 हजार 978 लोगों को रोजगार मिला.

आत्मनिर्भर पैकेज के तहत 4.37 लाख पुरानी इकाइयों को लोन
कोरोना काल के दौरान योगी सरकार ने आत्मनिर्भर पैकेज के तहत चार लाख 36 हजार 283 पुरानी इकाइयों को 11 हजार 092 करोड़ रुपये का लोन देकर बचाए रखा. प्रदेश में बंद पड़े लगभग ढाई लाख सूक्ष्म एवं कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवन देने का भी काम किया गया. इसके साथ ही दूसरे राज्यों से लौटे लगभग 40 लाख प्रवासी श्रमिकों का स्किल मैपिंग अभियान चलाया गया. इन श्रमिकों में से 11 लाख 04 हजार 466 प्रवासी श्रमिकों को रियल एस्टेट क्षेत्र में रोजगार दिलाया गया. एक लाख से अधिक श्रमिकों को छोटे जिलों में ही काम दिलाया गया.

11 लाख इकाइयों को 30 हजार करोड़ का लोन
अपर मुख्य सचिव एमएसएमई नवनीत सहगल ने बताया कि प्रदेश में 11 लाख इकाइयों को 30 हजार करोड़ रुपये से अधिक का ऋण वितरित किया गया है. 4.37 लाख इकाइयों को 11 हजार करोड़ और 6.66 लाख इकाइयों को करीब 20 हजार करोड़ रुपये का लोन दिया गया. इन इकाइयों के माध्यम से 27 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है. इस वित्तीय वर्ष में 50 लाख लोगों को रोजगार देने का सरकार ने लक्ष्य रखा है. प्रदेश सरकार के लाखों गरीब मजदूर और श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराने के प्रयासों को रिजर्व बैंक ने भी सराहा है.

change in msme sector after lockdown in uttar pradesh
सीएम योगी.

उद्यमी सीएम योगी से खुश, लेकिन अधिकारियों से परेशान
योगी सरकार के प्रयासों की सराहना भले ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने की हो, लेकिन धरातल पर अभी भी बहुत से सवाल खड़े हो रहे हैं. एमएसएमई सेक्टर के उद्यमी सरकारी तंत्र से संतुष्ट नहीं हैं. प्रक्रिया को अभी भी जटिल बनाए रखा गया है. जिन प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया गया, उसे सरकारी तंत्र उलझाए हुए है. उद्यमियों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा के अनुरूप काम हो जाए तो उद्योग जगत में निश्चित तौर पर यूपी शीर्ष पर होगा.

'कई महीनों का एक साथ आ रहा बिजली का बिल'
उद्यमी शैलेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि जहां तक सरकार की इच्छा और उसकी मंशा का सवाल है तो वह बहुत अच्छी है. मुख्यमंत्री चाहते हैं कि प्रदेश में उद्योग को बढ़ावा मिले. ग्राउंड पर सरकार की नीतियों का क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है. एक और समस्या है कि कहीं न कहीं सरकार निवेश की तरफ ज्यादा भाग रही है. पुराने उद्योग बंदी की कगार पर आते जा रहे हैं. इस तरीके से कानूनों में बांध दिया जा रहा है कि उद्यमी अपने उत्पादों को बेचने में समर्थ नहीं हो पा रहे हैं. हम उन कानूनी दांवपेच में ही फंसकर रह जा रहे हैं. लेबर कानून की समस्या, पॉल्यूशन को लेकर दिक्कत और अब बिजली एक बड़ी समस्या है. कई महीनों तक बिजली का बिल विभाग नहीं भेजता. इकट्ठा बिल आने से उद्यमी परेशान होता है.

'उद्यमियों के लिए बड़ी समस्या है फायर का एनओसी लेना'
उद्यमी शैलेंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि अब एक और नई समस्या से उद्यमियों को रूबरू होना पड़ रहा है. फायर का एनओसी लेने के लिए 20 से 25 लाख रुपये खर्च करने होंगे. एक छोटा उद्यमी इतने रुपये कहां से लाएगा. सरकार को इन सब चीजों पर फोकस करना होगा. सरकार को पुराने उद्योगों को बचाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे. जब तक हम लोग नहीं खड़े होंगे, तब तक बाहरी निवेशक प्रदेश में नहीं आएगा. जब कोई निवेशक प्रदेश में निवेश करना चाहता है तो उस राज्य के पुराने उद्यमियों से बात करता है. पुराने उद्यमी अपनी पीड़ा व्यक्त करेंगे तो निश्चित तौर पर बाहरी उद्यमी निवेश के लिए नहीं आएगा. यही कारण है कि तमाम एमओयू साइन हुए, जो कि अभी तक धरातल पर नहीं दिखाई दे रहे हैं.

फॉर्म भरने के लिए देने पड़ते हैं 10 से 15 हजार
उद्यमियों का आरोप है कि सरकार का सिंगल विंडो सिस्टम काम नहीं कर रहा है. इस सिस्टम को इतना जटिल बना दिया गया है कि छोटा उद्यमी बिना किसी सहयोग इस प्रक्रिया को अपना नहीं सकता. उदाहरण के रूप में पॉल्यूशन का फार्म कोई भी उद्यमी अपने से भर नहीं सकता है. इसको लेकर भी 10 से 15 हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. सरकार एक तरफ ईज आफ डूइंग बिजनेस की बात कर रही है, वहीं दूसरी तरफ इतना जटिल सिस्टम बनाया जा रहा है, जिससे उद्यमियों को परेशानी हो रही है.

क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार गिरीश चंद्र पांडे कहते हैं कि लॉकडाउन जब शुरू हुआ था, तब रुकावट नहीं, सब कुछ बंद ही हो गया था. वह तो इस सरकार की दूरदृष्टि थी कि उसने एमएसएमई सेक्टर पर पूरी तरह से फोकस किया. एक-एक इकाई के बारे में मुख्यमंत्री ने खुद चिंता की. उन्हें क्या दिक्कत है. रॉ मैटेरियल मिल पा रहा है नहीं या फिर लेबर की कोई समस्या आ रही है, इन सबके लिए जिला अधिकारी तक को निर्देशित किया गया कि वे उद्यमियों की मदद करें. इसके अलावा एमएसएमई सेक्टर की समस्याओं को दूर करने के लिए सारथी एप बनाया गया. इस एप के माध्यम से 24 घंटे उद्यमियों की समस्याओं को सुना गया. उनकी परेशानियों को दूर किया गया. पुरानी इकाइयों की क्षमता बढ़ाने पर सरकार ने जोर दिया. नई इकाइयों की स्थापना को लेकर भी सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाए, जिसकी बदौलत एमएसएमई सेक्टर एक बार फिर ढर्रे पर आ गया है.

लखनऊ : कोरोना ने देश और दुनिया भर के उद्योगों को भारी चोट पहुंचाई. छोटे-बड़े सभी उद्योग ठहर गए थे. एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम) सेक्टर में रुकावट आने से उत्तर प्रदेश के हर हिस्से में लोग प्रभवित हुए. ऐसी विपरीत परिस्थिति में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सबसे पहले एमएसएमई सेक्टर को चुना. उसे आगे बढ़ाने पर तेजी से काम शुरू किया. बंद पड़ी इकाइयों का संचालन शुरू किया गया. सरकार ने करीब सात लाख नई एमएसएमई इकाइयों को ऋण दिलाया. सिंगल विंडो सिस्टम को अपनाकर प्रक्रिया को आसान किया. एमएसएमई सेक्टर आज एक बार फिर से पटरी पर आता दिखाई दे रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट.

आठ महीने में करीब सात लाख नई इकाइयों को बढ़ाया आगे
उद्योग जगत में चारों तरफ जब निराशा छाई हुई थी, उस वक्त प्रदेश में एमएसएमई सेक्टर की समस्याओं को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ठोस कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए. शासन स्तर पर कार्ययोजना तैयार की गई. इस कार्ययोजना पर अमल करते हुए पिछले आठ महीने में आत्मनिर्भर पैकेज के जरिए छह लाख 65 हजार 740 नई इकाइयों को आगे ही नहीं बढ़ाया गया, बल्कि उनमें 26 लाख 62 हजार 960 लोगों को रोजगार भी मिला. सेवायोजन पोर्टल के जरिए भी पांच लाख 25 हजार 978 लोगों को रोजगार मिला.

आत्मनिर्भर पैकेज के तहत 4.37 लाख पुरानी इकाइयों को लोन
कोरोना काल के दौरान योगी सरकार ने आत्मनिर्भर पैकेज के तहत चार लाख 36 हजार 283 पुरानी इकाइयों को 11 हजार 092 करोड़ रुपये का लोन देकर बचाए रखा. प्रदेश में बंद पड़े लगभग ढाई लाख सूक्ष्म एवं कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवन देने का भी काम किया गया. इसके साथ ही दूसरे राज्यों से लौटे लगभग 40 लाख प्रवासी श्रमिकों का स्किल मैपिंग अभियान चलाया गया. इन श्रमिकों में से 11 लाख 04 हजार 466 प्रवासी श्रमिकों को रियल एस्टेट क्षेत्र में रोजगार दिलाया गया. एक लाख से अधिक श्रमिकों को छोटे जिलों में ही काम दिलाया गया.

11 लाख इकाइयों को 30 हजार करोड़ का लोन
अपर मुख्य सचिव एमएसएमई नवनीत सहगल ने बताया कि प्रदेश में 11 लाख इकाइयों को 30 हजार करोड़ रुपये से अधिक का ऋण वितरित किया गया है. 4.37 लाख इकाइयों को 11 हजार करोड़ और 6.66 लाख इकाइयों को करीब 20 हजार करोड़ रुपये का लोन दिया गया. इन इकाइयों के माध्यम से 27 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है. इस वित्तीय वर्ष में 50 लाख लोगों को रोजगार देने का सरकार ने लक्ष्य रखा है. प्रदेश सरकार के लाखों गरीब मजदूर और श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराने के प्रयासों को रिजर्व बैंक ने भी सराहा है.

change in msme sector after lockdown in uttar pradesh
सीएम योगी.

उद्यमी सीएम योगी से खुश, लेकिन अधिकारियों से परेशान
योगी सरकार के प्रयासों की सराहना भले ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने की हो, लेकिन धरातल पर अभी भी बहुत से सवाल खड़े हो रहे हैं. एमएसएमई सेक्टर के उद्यमी सरकारी तंत्र से संतुष्ट नहीं हैं. प्रक्रिया को अभी भी जटिल बनाए रखा गया है. जिन प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया गया, उसे सरकारी तंत्र उलझाए हुए है. उद्यमियों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा के अनुरूप काम हो जाए तो उद्योग जगत में निश्चित तौर पर यूपी शीर्ष पर होगा.

'कई महीनों का एक साथ आ रहा बिजली का बिल'
उद्यमी शैलेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि जहां तक सरकार की इच्छा और उसकी मंशा का सवाल है तो वह बहुत अच्छी है. मुख्यमंत्री चाहते हैं कि प्रदेश में उद्योग को बढ़ावा मिले. ग्राउंड पर सरकार की नीतियों का क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है. एक और समस्या है कि कहीं न कहीं सरकार निवेश की तरफ ज्यादा भाग रही है. पुराने उद्योग बंदी की कगार पर आते जा रहे हैं. इस तरीके से कानूनों में बांध दिया जा रहा है कि उद्यमी अपने उत्पादों को बेचने में समर्थ नहीं हो पा रहे हैं. हम उन कानूनी दांवपेच में ही फंसकर रह जा रहे हैं. लेबर कानून की समस्या, पॉल्यूशन को लेकर दिक्कत और अब बिजली एक बड़ी समस्या है. कई महीनों तक बिजली का बिल विभाग नहीं भेजता. इकट्ठा बिल आने से उद्यमी परेशान होता है.

'उद्यमियों के लिए बड़ी समस्या है फायर का एनओसी लेना'
उद्यमी शैलेंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि अब एक और नई समस्या से उद्यमियों को रूबरू होना पड़ रहा है. फायर का एनओसी लेने के लिए 20 से 25 लाख रुपये खर्च करने होंगे. एक छोटा उद्यमी इतने रुपये कहां से लाएगा. सरकार को इन सब चीजों पर फोकस करना होगा. सरकार को पुराने उद्योगों को बचाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे. जब तक हम लोग नहीं खड़े होंगे, तब तक बाहरी निवेशक प्रदेश में नहीं आएगा. जब कोई निवेशक प्रदेश में निवेश करना चाहता है तो उस राज्य के पुराने उद्यमियों से बात करता है. पुराने उद्यमी अपनी पीड़ा व्यक्त करेंगे तो निश्चित तौर पर बाहरी उद्यमी निवेश के लिए नहीं आएगा. यही कारण है कि तमाम एमओयू साइन हुए, जो कि अभी तक धरातल पर नहीं दिखाई दे रहे हैं.

फॉर्म भरने के लिए देने पड़ते हैं 10 से 15 हजार
उद्यमियों का आरोप है कि सरकार का सिंगल विंडो सिस्टम काम नहीं कर रहा है. इस सिस्टम को इतना जटिल बना दिया गया है कि छोटा उद्यमी बिना किसी सहयोग इस प्रक्रिया को अपना नहीं सकता. उदाहरण के रूप में पॉल्यूशन का फार्म कोई भी उद्यमी अपने से भर नहीं सकता है. इसको लेकर भी 10 से 15 हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. सरकार एक तरफ ईज आफ डूइंग बिजनेस की बात कर रही है, वहीं दूसरी तरफ इतना जटिल सिस्टम बनाया जा रहा है, जिससे उद्यमियों को परेशानी हो रही है.

क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार गिरीश चंद्र पांडे कहते हैं कि लॉकडाउन जब शुरू हुआ था, तब रुकावट नहीं, सब कुछ बंद ही हो गया था. वह तो इस सरकार की दूरदृष्टि थी कि उसने एमएसएमई सेक्टर पर पूरी तरह से फोकस किया. एक-एक इकाई के बारे में मुख्यमंत्री ने खुद चिंता की. उन्हें क्या दिक्कत है. रॉ मैटेरियल मिल पा रहा है नहीं या फिर लेबर की कोई समस्या आ रही है, इन सबके लिए जिला अधिकारी तक को निर्देशित किया गया कि वे उद्यमियों की मदद करें. इसके अलावा एमएसएमई सेक्टर की समस्याओं को दूर करने के लिए सारथी एप बनाया गया. इस एप के माध्यम से 24 घंटे उद्यमियों की समस्याओं को सुना गया. उनकी परेशानियों को दूर किया गया. पुरानी इकाइयों की क्षमता बढ़ाने पर सरकार ने जोर दिया. नई इकाइयों की स्थापना को लेकर भी सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाए, जिसकी बदौलत एमएसएमई सेक्टर एक बार फिर ढर्रे पर आ गया है.

Last Updated : Dec 20, 2020, 6:44 PM IST
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