लखनऊ : ऐतिहासिक धरोहरों के लिए देश-दुनिया में लखनऊ का नाम है. आज कल इन धरोहरों की चमक युवाओं के प्यार के इजहार के कारण फीकी पड़ रही है. राजधानी लखनऊ के जितनी भी ऐतिहासिक इमारतें रेजीडेंसी, इमामबाड़ा, भूलभुलैया आदि हैं. वहां पर लोग अपने प्यार का इजहार दीवारों पर लिखकर करते हैं. ऐसे लोगों की ओछी मानसिकता से ऐतिहासिक धरोहरें बदसूरत हो रही हैं. लोगों के ऐसे कृत्य से धरोहरों की वजूद बिगड़ रहा है वहीं देसी विदेशी पर्यटकों के आगे नवाबों की नगरी की छवि भी धूमिल हो रही है.
राजधानी लखनऊ की धरोहरों में शामिल रेजीडेंसी, इमामबाड़ा, टीले वाली मस्जिद, भूल भुलैया की दीवारों पर गंदे शब्द और अश्लील चित्र में उकेरे गए हैं. यह कृत्य किसी चित्रकार और फनकार का नहीं है. ऐसा यहां घूमने जाने वाले लोग ही करते हैं. शहर की धरोहरों के देखभाल की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग की है. धरोहरों के रखरखाव के लिए तमाम नियम कायदे बनाए गए हैं, लेकिन अराजकतत्व अपनी ओछी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं.
ऐतिहासिक धरोहर रेजीडेंसी
रेजीडेंसी का निर्माण नवाब आसफुद्दौला के शासनकाल में हुआ था. नवाब ने अंग्रेजों की सुविधा के लिए दरिया किनारे एक ऊंचे टीले पर इसे बनवाया था. 1800 में नवाब सआदत अली खां के शासन में रेजीडेंसी बन कर तैयार हुई. पहले ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से नियुक्त अधिकारी इसी में रहते थे. लखौरी ईंट और सुर्ख चूने से बनी इस दो मंजिला इमारत में बड़े-बड़े बरामदे और एक पोर्टिको था. रेजीडेंसी के नीचे आज भी एक बड़ा तहखाना है. अवध के रेजीडेंट इस तहखाने में आराम फरमाते थे. गदर के वक्त तमाम अंग्रेज महिलाओं और बच्चों ने इसी तहखाने में शरण ली थी. बकौल इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीण इसी जगह पहली जुलाई 1857 को कर्नल पामर की बेटी के पैर में गोली लगी थी.
बड़ा इमामबाड़ा भी हो रहा बदरंग
बड़ा इमामबाड़े का निर्माण आसिफ़उद्दौला ने 1784 में अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत करवाया था. यह विशाल गुम्बदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है. लगभग इसे बनाने में उस ज़माने में पांच से दस लाख रुपये की लागत आई थी. यही नहीं इस इमारत के पूरा होने के बाद भी नवाब इसकी साज सज्जा पर ही चार से पांच लाख रुपये सालाना खर्च करते थे. इसमें विश्व-प्रसिद्ध भूलभुलैया बनी है जो अनचाहे प्रवेश करने वाले को रास्ता भुला कर आने से रोकती थी. इसका निर्माण नवाब ने राज्य में पड़े दुर्भिक्ष से निपटने के लिए किया था. इसमें एक गहरा कुआं भी है. भूल भुलैया के भीतर अराजकतत्वों ने दीवारों पर तमाम निशान बनाए हैं. यहां की पूरी दीवार अनाप-शनाप शब्दों से भरी पड़ी है.
धरोहरों को बदरंग करना अच्छी बात नहीं
बड़ा इमामबाड़ा घूमने पहुंचे लखीमपुर से घूमने पहुंचे सैलानी ने बातचीत के दौरान कहा कि भूल भुलैया के अंदर बहुत ज्यादा दीवारों पर अपशब्द लिखे हुए हैं. जिसे देखकर एक पल के लिए बहुत बुरा लगा. देश-विदेश से पर्यटक यहां पर घूमने के लिए आते हैं यहां तक कि लोग अपने परिवार के साथ घूमने के लिए आते हैं इस तरह का दीवारों पर लिखा हुआ देखकर मन खराब होता है. यह कोई अच्छी चीज नहीं है. इस तरह यह काम नहीं करना चाहिए, जिससे विश्व स्तर पर हमारी धरोहर की छवि धूमिल हो.
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