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लाशों के सौदों पर मिल रही MBBS की डिग्रियां!

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Published : Aug 5, 2022, 6:39 PM IST

उत्तर प्रदेश में लाशों के सौदों पर एमबीबीएस की डिग्री मिल रही है. निजी मेडिकल कॉलेजों को पढ़ाई के लिए लाशों का सौदा करना पड़ रहा है. पढ़िए यह खास खबर.

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लाशों के सौदों पर मिल रही है MBBS की डिग्रियां!

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई कराने वाले निजी मेडिकल कॉलेज मोटी रकम वसूलने के लिए लाशों का सौदा कर रहे हैं. निजी मेडिकल कॉलेजों में हर साल 230 लाशों की खरीद-फरोख्त का जुगाड़ चल रहा है. मौजूदा समय में सरकारी और गैर सरकारी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सीटों के अनुपात में हर साल 421 डेडबॉडी की जरुरत एनॉटमी की पढ़ाई के लिए पड़ रही है. इनमें 4600 सीटें निजी कॉलेजों को आवंटित हैं जिन्हें 230 डेडबॉडी की व्यवस्था करनी पड़ती है. जबकि इतनी डेडबॉडी निजी कॉलेजों को कानूनी प्रक्रिया के तहत नही मिल पा रही हैं. ऐसे में मान्यता बचाने के लिए निजी मेडिकल कॉलेज लाशों के जुगाड़ करने में जुटे हुए हैं.

KGMU के एनॉटमी विभाग के आंकड़े के मुताबिक कोरोना काल से पहले प्रति वर्ष 100 से अधिक देहदान के रजिस्ट्रेशन हो रहे है जबकि अनुपातिक 20 देहदान हो पा रहा है. यह आंकड़ा राज्य के अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सबसे ज्यादा है. ऐसे में सरकारी कॉलेजों में ही कैडवर की पूर्ति नहीं हो पा रही है. बावजूद इसके प्रदेश में तेजी से खुल रहे नए निजी कॉलेजों के लिए कैडवर (शव) की जरूरत पूरी करने के लिए अवैध तरीके से डेडबॉडी का इंतजाम किया जा रहा है.

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की मान्यता पर प्रदेश में 30 ऐसे निजी मेडिकल कॉलेज संचालित हो रहे हैं जिनमें एमबीबीएस की 4600 सीटें आवंटित की गई है. इसके अलावा 31 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं जिनमें 3828 सीटों पर एमबीबीएस में दाखिला लिया जा रहा है. एमसीआई की ओर से 23 निजी और 4 सरकारी मेडिकल कॉलेज में बीडीएस की पढ़ाई कराई जा रही है. एमबीबीएस के प्रथम सत्र में एनॉटमी क्लास के लिए प्रति 20 छात्र पर एक कैडवर का मानक एमसीआई ने तय किया है. इंफ्रास्टक्चर और संसाधनों के साथ कैडवर की उपलब्धता देखकर ही एमबीबीएस की मान्यता दी जाती है. मानक और सीटों के अनुपात में हर साल निजी कॉलेजों को 230 कैडवर की जरुरत पड़ रही है जिसे वह अवैध स्रोतों से पूरा कर रहे हैं.

केजीएमयू के एनॉटमी विभाग की प्रमुख डॉ. पुनीता मानिक के मुताबिक लखनऊ में देहदान का अनुपात बहुत कम है. केजीएमयू में 250 सीटों पर एमबीबीएस की पढ़ाई होती है जिसके लिए हर साल 25 कैडवर की जरुरत पड़ रही है. डॉ. पुनिता के मुताबिक हर साल औसत 15 से 20 देहदान हो रहे हैं. जागरुकता न होने के कारण 4-5 साल पहले का यह आंकड़ा महज 8 से 10 था जिसकी वजह से पढ़ाई मे काफी दिक्कत आती थी. कोरोनाकाल में तो KGMU ने देहदान की गई डेडबॉडी को लिया ही नही था.

जीएसवीएम कानपुर, बीआरडी गोरखपुर सहित प्रदेश के अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेजों में तो शरीर दान का अनुपात अब भी प्रति साल 10 से 12 है. ऐसे में सरकारी मेडिकल कॉलेज से किसी निजी कॉलेज को कैडवर उपलब्ध कराना संभव नहीं है. डॉ पुनिता के मुताबिक बीते साल कुछ डेडबॉडी अतिरिक्त होने के कारण सिर्फ सरकारी मेडिकल कॉलेज को कानूनी प्रक्रिया के तहत दी गयी थी जिससे वहां एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे बच्चों को पढ़ाया जा सके.

चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार मेडिकल काउंसिल और डेंटल काउंसिल की गाइड लाइन के अनुसार बिना डेड बॉडी पर डिसेक्शन किए एमबीबीएस और बीडीएस की डिग्री ही नहीं दी जा सकती. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के निजी मेडिकल कॉलेज को मान्यता देने से पहले सीटों के अनुपात में कैडवर कई जांच करती है. तभी मान्यता दी जाती है. ऐसे में कड़े रुख के चलते इस धंधे को बढ़ावा मिला है.

राज्य के 30 निजी मेडिकल कॉलेज में 4600 एमबीबीएस सीट हैं. देहदान की गई डेडबॉडी राज्य के 31 सरकारी मेडिकल कॉलेज के लिए ही कम पड़ रही है तो निजी कॉलेज कैसे इसका इंतजाम करते होंगे यह बड़ा सवाल है. KGMU के एनॉटमी विभाग की प्रमुख डॉ. पुनीता कहतीं हैं कि सरकार मेडिकल कॉलेज में देहदान के लिए आई डेडबॉडी को अगर हम लोग देते है तो सिर्फ सरकारी संस्थानों को ही, निजी को नही. ऐसे में निजी मेडिकल कॉलेज सिर्फ जुगाड़ के माध्यम या फिर लावारिस लाशों के सहारे ही रहते है. डॉ पुनिता कहती है कि कुछ साल पहले बाबा रहीम के आश्रम से जिस तरह बॉडी को निजी मेडिकल कॉलेज में भेजा जाता था, ठीक उसी तरह ही ये निजी मेडिकल कॉलेज जुगाड़ करते होंगे.

निजी मेडिकल कॉलेज ने राम रहीम से किया था लाशों के सौदा
साल 2017 में मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने राजधानी लखनऊ के बीकेटी स्थित जीसीआरजी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में निरीक्षण किया था. यहां एक भी कैडवर न मौजूद होने पर कार्रवाई की बात कही गयी थी. उसके बाद अचानक इस मेडिकल कॉलेज में 14 डेडबॉडी पाई गई थी. जांच में पता चला था कि राम रहीम के डेरा सच्चा सौदा के आश्रम से 14 शव मंगवाए थे. इन शवों के साथ न कोई डेथ सर्टिफिकेट था और न ही सरकार की अनुमति का पत्र. इसको लेकर जीसीआरजी मेडिकल कॉलेज पर कार्रवाई हुई थी.


निजी मेडिकल कॉलेजों को शव बेचने के मामले प्रदेश के कई पोस्टमार्टम हाउस में सामने आ चुके हैं. साल 2010 में मुरादाबाद मॉर्च्युरी से कई शव गायब होने की जांच हुई तो कर्मचारियों की भूमिका सामने आई. पड़ताल में पता चला कि यहां से प्रदेश के कई निजी मेडिकल कॉलेजों को शव बेचे जा रहे थे. इस मामले में चार कर्मचारियों के खिलाफ केस दर्ज कराया गया था. 2013 में लखनऊ में केजीएमयू के पोस्टमार्टम हाउस से हरदोई निवासी एक युवक का शव गायब होने की जानकारी पर छानबीन की गई. जांच में शव एक निजी मेडिकल कॉलेज को बेचे जाने का खुलासा होने पर प्रभारी संयज गुप्ता के खिलाफ चौक कोतवाली में केस दर्ज कराया गया था. साल 2014 में फैजाबाद रोड पर एक रसूखदार व्यक्ति की दुर्घटना के बाद उसे लावारिस मानकर शव को निजी मेडिकल कॉलेज को बेच दिया गया था. जब उसकी पहचान दक्षिण भारत के एक अधिकारी का शव होने की जानकारी मिली तो इस शव को वापस मंगाकर मॉर्च्युरी में रखवाया गया था.


एनॉटमी ऐक्ट के मुताबिक निजी मेडिकल कॉलेज देहदान के जरिए डेडबॉडी ले सकते हैं. इसके लिए जिला प्रशासन में एक अधिकारी नियुक्त है जिसके पास आवेदन करना होता है. यह आवेदन संबंधित सरकारी मेडिकल कॉलेज और पुलिस को भेजा जाता है. जिस सरकारी कॉलेज में डेड बॉडी की उपलब्धता होती है और किसी अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेज को जरूरत नही होती है तब ऐसी स्थिति में निजी कॉलेज को सूचित किया जाता है. इसके बाद डीएम और जिले के पुलिस मुखिया की संस्तुति पर बॉडी निजी कॉलेज के सुपुर्द की जाती है. हालांकि सरकारी मेडिकल कॉलेज की संख्या में बढ़ोतरी होने से बहुत कम ही होता है कि निजी कॉलेज को डेडबॉडी मिल सके.

एनॉटमी एक्ट में लावारिश शव लेने की व्यवस्था पुलिस के जरिए की गई है. इसके लिए किसी लावारिश की मौत पर उसके शव का पंचनामा कर मॉर्च्युरी भेज दिया जाता है. 72 घंटे शव की पहचान के लिए रखती है व बाद में उसका पोस्टमार्टम कर दिया जाता है और पुलिस उसका अंतिम संस्कार कर देती है. हालांकि निजी मेडिकल कॉलेजों को लावारिश बॉडी को लेने के लिए एसएसपी को अर्जी देनी होती है क्योंकि अधिकतर मॉर्च्युरी में पहुंची हर डेडबॉडी का पोस्टमार्टम किया जाता है, इस कारण कॉलेज उन्हें नही लेते है और कोशिश करते है कि जुगाड़ से बिना पोस्टमार्टम हुई बॉडी उन्हें मिल जाये.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई कराने वाले निजी मेडिकल कॉलेज मोटी रकम वसूलने के लिए लाशों का सौदा कर रहे हैं. निजी मेडिकल कॉलेजों में हर साल 230 लाशों की खरीद-फरोख्त का जुगाड़ चल रहा है. मौजूदा समय में सरकारी और गैर सरकारी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सीटों के अनुपात में हर साल 421 डेडबॉडी की जरुरत एनॉटमी की पढ़ाई के लिए पड़ रही है. इनमें 4600 सीटें निजी कॉलेजों को आवंटित हैं जिन्हें 230 डेडबॉडी की व्यवस्था करनी पड़ती है. जबकि इतनी डेडबॉडी निजी कॉलेजों को कानूनी प्रक्रिया के तहत नही मिल पा रही हैं. ऐसे में मान्यता बचाने के लिए निजी मेडिकल कॉलेज लाशों के जुगाड़ करने में जुटे हुए हैं.

KGMU के एनॉटमी विभाग के आंकड़े के मुताबिक कोरोना काल से पहले प्रति वर्ष 100 से अधिक देहदान के रजिस्ट्रेशन हो रहे है जबकि अनुपातिक 20 देहदान हो पा रहा है. यह आंकड़ा राज्य के अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सबसे ज्यादा है. ऐसे में सरकारी कॉलेजों में ही कैडवर की पूर्ति नहीं हो पा रही है. बावजूद इसके प्रदेश में तेजी से खुल रहे नए निजी कॉलेजों के लिए कैडवर (शव) की जरूरत पूरी करने के लिए अवैध तरीके से डेडबॉडी का इंतजाम किया जा रहा है.

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की मान्यता पर प्रदेश में 30 ऐसे निजी मेडिकल कॉलेज संचालित हो रहे हैं जिनमें एमबीबीएस की 4600 सीटें आवंटित की गई है. इसके अलावा 31 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं जिनमें 3828 सीटों पर एमबीबीएस में दाखिला लिया जा रहा है. एमसीआई की ओर से 23 निजी और 4 सरकारी मेडिकल कॉलेज में बीडीएस की पढ़ाई कराई जा रही है. एमबीबीएस के प्रथम सत्र में एनॉटमी क्लास के लिए प्रति 20 छात्र पर एक कैडवर का मानक एमसीआई ने तय किया है. इंफ्रास्टक्चर और संसाधनों के साथ कैडवर की उपलब्धता देखकर ही एमबीबीएस की मान्यता दी जाती है. मानक और सीटों के अनुपात में हर साल निजी कॉलेजों को 230 कैडवर की जरुरत पड़ रही है जिसे वह अवैध स्रोतों से पूरा कर रहे हैं.

केजीएमयू के एनॉटमी विभाग की प्रमुख डॉ. पुनीता मानिक के मुताबिक लखनऊ में देहदान का अनुपात बहुत कम है. केजीएमयू में 250 सीटों पर एमबीबीएस की पढ़ाई होती है जिसके लिए हर साल 25 कैडवर की जरुरत पड़ रही है. डॉ. पुनिता के मुताबिक हर साल औसत 15 से 20 देहदान हो रहे हैं. जागरुकता न होने के कारण 4-5 साल पहले का यह आंकड़ा महज 8 से 10 था जिसकी वजह से पढ़ाई मे काफी दिक्कत आती थी. कोरोनाकाल में तो KGMU ने देहदान की गई डेडबॉडी को लिया ही नही था.

जीएसवीएम कानपुर, बीआरडी गोरखपुर सहित प्रदेश के अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेजों में तो शरीर दान का अनुपात अब भी प्रति साल 10 से 12 है. ऐसे में सरकारी मेडिकल कॉलेज से किसी निजी कॉलेज को कैडवर उपलब्ध कराना संभव नहीं है. डॉ पुनिता के मुताबिक बीते साल कुछ डेडबॉडी अतिरिक्त होने के कारण सिर्फ सरकारी मेडिकल कॉलेज को कानूनी प्रक्रिया के तहत दी गयी थी जिससे वहां एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे बच्चों को पढ़ाया जा सके.

चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार मेडिकल काउंसिल और डेंटल काउंसिल की गाइड लाइन के अनुसार बिना डेड बॉडी पर डिसेक्शन किए एमबीबीएस और बीडीएस की डिग्री ही नहीं दी जा सकती. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के निजी मेडिकल कॉलेज को मान्यता देने से पहले सीटों के अनुपात में कैडवर कई जांच करती है. तभी मान्यता दी जाती है. ऐसे में कड़े रुख के चलते इस धंधे को बढ़ावा मिला है.

राज्य के 30 निजी मेडिकल कॉलेज में 4600 एमबीबीएस सीट हैं. देहदान की गई डेडबॉडी राज्य के 31 सरकारी मेडिकल कॉलेज के लिए ही कम पड़ रही है तो निजी कॉलेज कैसे इसका इंतजाम करते होंगे यह बड़ा सवाल है. KGMU के एनॉटमी विभाग की प्रमुख डॉ. पुनीता कहतीं हैं कि सरकार मेडिकल कॉलेज में देहदान के लिए आई डेडबॉडी को अगर हम लोग देते है तो सिर्फ सरकारी संस्थानों को ही, निजी को नही. ऐसे में निजी मेडिकल कॉलेज सिर्फ जुगाड़ के माध्यम या फिर लावारिस लाशों के सहारे ही रहते है. डॉ पुनिता कहती है कि कुछ साल पहले बाबा रहीम के आश्रम से जिस तरह बॉडी को निजी मेडिकल कॉलेज में भेजा जाता था, ठीक उसी तरह ही ये निजी मेडिकल कॉलेज जुगाड़ करते होंगे.

निजी मेडिकल कॉलेज ने राम रहीम से किया था लाशों के सौदा
साल 2017 में मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने राजधानी लखनऊ के बीकेटी स्थित जीसीआरजी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में निरीक्षण किया था. यहां एक भी कैडवर न मौजूद होने पर कार्रवाई की बात कही गयी थी. उसके बाद अचानक इस मेडिकल कॉलेज में 14 डेडबॉडी पाई गई थी. जांच में पता चला था कि राम रहीम के डेरा सच्चा सौदा के आश्रम से 14 शव मंगवाए थे. इन शवों के साथ न कोई डेथ सर्टिफिकेट था और न ही सरकार की अनुमति का पत्र. इसको लेकर जीसीआरजी मेडिकल कॉलेज पर कार्रवाई हुई थी.


निजी मेडिकल कॉलेजों को शव बेचने के मामले प्रदेश के कई पोस्टमार्टम हाउस में सामने आ चुके हैं. साल 2010 में मुरादाबाद मॉर्च्युरी से कई शव गायब होने की जांच हुई तो कर्मचारियों की भूमिका सामने आई. पड़ताल में पता चला कि यहां से प्रदेश के कई निजी मेडिकल कॉलेजों को शव बेचे जा रहे थे. इस मामले में चार कर्मचारियों के खिलाफ केस दर्ज कराया गया था. 2013 में लखनऊ में केजीएमयू के पोस्टमार्टम हाउस से हरदोई निवासी एक युवक का शव गायब होने की जानकारी पर छानबीन की गई. जांच में शव एक निजी मेडिकल कॉलेज को बेचे जाने का खुलासा होने पर प्रभारी संयज गुप्ता के खिलाफ चौक कोतवाली में केस दर्ज कराया गया था. साल 2014 में फैजाबाद रोड पर एक रसूखदार व्यक्ति की दुर्घटना के बाद उसे लावारिस मानकर शव को निजी मेडिकल कॉलेज को बेच दिया गया था. जब उसकी पहचान दक्षिण भारत के एक अधिकारी का शव होने की जानकारी मिली तो इस शव को वापस मंगाकर मॉर्च्युरी में रखवाया गया था.


एनॉटमी ऐक्ट के मुताबिक निजी मेडिकल कॉलेज देहदान के जरिए डेडबॉडी ले सकते हैं. इसके लिए जिला प्रशासन में एक अधिकारी नियुक्त है जिसके पास आवेदन करना होता है. यह आवेदन संबंधित सरकारी मेडिकल कॉलेज और पुलिस को भेजा जाता है. जिस सरकारी कॉलेज में डेड बॉडी की उपलब्धता होती है और किसी अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेज को जरूरत नही होती है तब ऐसी स्थिति में निजी कॉलेज को सूचित किया जाता है. इसके बाद डीएम और जिले के पुलिस मुखिया की संस्तुति पर बॉडी निजी कॉलेज के सुपुर्द की जाती है. हालांकि सरकारी मेडिकल कॉलेज की संख्या में बढ़ोतरी होने से बहुत कम ही होता है कि निजी कॉलेज को डेडबॉडी मिल सके.

एनॉटमी एक्ट में लावारिश शव लेने की व्यवस्था पुलिस के जरिए की गई है. इसके लिए किसी लावारिश की मौत पर उसके शव का पंचनामा कर मॉर्च्युरी भेज दिया जाता है. 72 घंटे शव की पहचान के लिए रखती है व बाद में उसका पोस्टमार्टम कर दिया जाता है और पुलिस उसका अंतिम संस्कार कर देती है. हालांकि निजी मेडिकल कॉलेजों को लावारिश बॉडी को लेने के लिए एसएसपी को अर्जी देनी होती है क्योंकि अधिकतर मॉर्च्युरी में पहुंची हर डेडबॉडी का पोस्टमार्टम किया जाता है, इस कारण कॉलेज उन्हें नही लेते है और कोशिश करते है कि जुगाड़ से बिना पोस्टमार्टम हुई बॉडी उन्हें मिल जाये.

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