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लखनऊ: किसानों को बताए मिंट की खेती के तरीके, चुनौतियों पर भी हुई चर्चा

लखनऊ के सीएसआईआर संस्थान में मिंट सम्मेलन का आयोजन कर इसकी खेती से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा की गई. इस दौरान एंटरप्रेन्योर, इंडस्ट्रियलिस्ट, वैज्ञानिक, किसान आदि मौजूद रहे.

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Published : Feb 26, 2019, 2:29 PM IST

अनिल त्रिपाठी

लखनऊ: सीएसआईआर केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान में तीन दिवसीय मिंट सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन में एंटरप्रेन्योर, इंडस्ट्रियलिस्ट, वैज्ञानिक, किसान समेत देशभर से मिंट की खेती से जुड़े हुए लोग आए. इस दौरान मिंट की फसल से जुड़ी उपयोगिता, उत्पादकता और आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की गई.

सीएसआईआर में तीन दिवसीय मिंट सम्मेलन का आयोजन किया गया.

सम्मेलन में सीमैप के पूर्व निदेशक और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ. अनिल त्रिपाठी ने बताया कि मिंट की खेती ने किसानों के जीवन को काफी हद तक सुधारा है. उनके आर्थिक स्तर को मजबूत किया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सिंथेटिक मिंट का इस्तेमाल अधिक होने लगा है. इसके अलावा अब इंडस्ट्रीज भी सिंथेटिक मिंट को अधिक इस्तेमाल करती हैं. इसकी वजह से किसानों को आर्थिक रूप से नुकसान हो रहा है. साथ ही उनकी उत्पादकता का उन्हें सही मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है. इस वजह से उनमें निराशा है. इस सम्मेलन में मिंट की खेती से जुड़े हुए सभी लोगों को बुलाया गया है ताकि यह पता किया जा सके कि सही क्या है और गलत क्या है.

वहीं अरोमा इंडस्ट्री से जुड़े संत सांगानेर ने बताया कि सिंथेटिक मिंट और मूल मिंट दो अलग-अलग चीजें हैं. बाजार में एक भ्रांति फैली हुई है कि सिंथेटिक मिंट की वजह से किसानों का नुकसान हो रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि इससे किसी का भी नुकसान नहीं हो रहा है. जहां पर मूल मिंट का इस्तेमाल किया जा रहा है, वहां पर सिंथेटिक मेंथा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

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लखनऊ: सीएसआईआर केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान में तीन दिवसीय मिंट सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन में एंटरप्रेन्योर, इंडस्ट्रियलिस्ट, वैज्ञानिक, किसान समेत देशभर से मिंट की खेती से जुड़े हुए लोग आए. इस दौरान मिंट की फसल से जुड़ी उपयोगिता, उत्पादकता और आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की गई.

सीएसआईआर में तीन दिवसीय मिंट सम्मेलन का आयोजन किया गया.

सम्मेलन में सीमैप के पूर्व निदेशक और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ. अनिल त्रिपाठी ने बताया कि मिंट की खेती ने किसानों के जीवन को काफी हद तक सुधारा है. उनके आर्थिक स्तर को मजबूत किया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सिंथेटिक मिंट का इस्तेमाल अधिक होने लगा है. इसके अलावा अब इंडस्ट्रीज भी सिंथेटिक मिंट को अधिक इस्तेमाल करती हैं. इसकी वजह से किसानों को आर्थिक रूप से नुकसान हो रहा है. साथ ही उनकी उत्पादकता का उन्हें सही मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है. इस वजह से उनमें निराशा है. इस सम्मेलन में मिंट की खेती से जुड़े हुए सभी लोगों को बुलाया गया है ताकि यह पता किया जा सके कि सही क्या है और गलत क्या है.

वहीं अरोमा इंडस्ट्री से जुड़े संत सांगानेर ने बताया कि सिंथेटिक मिंट और मूल मिंट दो अलग-अलग चीजें हैं. बाजार में एक भ्रांति फैली हुई है कि सिंथेटिक मिंट की वजह से किसानों का नुकसान हो रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि इससे किसी का भी नुकसान नहीं हो रहा है. जहां पर मूल मिंट का इस्तेमाल किया जा रहा है, वहां पर सिंथेटिक मेंथा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

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Intro:लखनऊ। सीएसआईआर केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान में आज एक तीन दिवसीय मिंट सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में एंटरप्रेन्योर, इंडस्ट्रियलिस्ट, किसान, वैज्ञानिक समेत देश भर से मिंट की खेती से जुड़े हुए लोग आए और मिंट की फसल से जुड़ी उपयोगिता, उत्पादकता और आने वाले चैलेंज के बारे में बात की।


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सम्मेलन में मुख्य अतिथि के तौर पर पधारे सीमैप के पूर्व निदेशक और इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉक्टर अनिल त्रिपाठी ने बताया कि मिंट की खेती ने किसानों के जीवन को काफी हद तक सुधारा है। उनके आर्थिक स्तर को मजबूत किया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सिंथेटिक मिंट का इस्तेमाल अधिक होने लगा है। इंडस्ट्रीज भी सिंथेटिक मिंट को अधिक इस्तेमाल करती हैं। इसकी वजह से किसानों को आर्थिक रूप से नुकसान हो रहा है। इसके अलावा उनकी उत्पादकता का उन्हें सही मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। इस वजह से उनमें निराशा भी है। ऐसे में यह सम्मेलन कर इस खेती से जुड़े हुए सभी लोगों को बुलाया गया है ताकि सभी की बात सुनी जा सके और पता चल सके कि सही क्या है और गलत क्या है।

अरोमा इंडस्ट्री से जुड़े एक कंपनी से आए संत सांगानेर ने बताया कि सिंथेटिक मिंट और मूल मिनट दो अलग-अलग चीजें हैं। बाजार में यह एक भ्रांति फैली हुई है कि सिंथेटिक मिंट की वजह से किसानों का नुकसान हो रहा है, पर सच्चाई यह है कि इससे किसी का भी नुकसान नहीं हो रहा है। जहां पर मूल मेंथा का इस्तेमाल किया जा रहा है। वहां पर सिंथेटिक मेंथा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, इसलिए किसानों के बीच भी भ्रांति फैलाना गलत है कि उन्हें आर्थिक नुकसान हो रहा है या वह किसी असमंजस में हों।


Conclusion:बाइट- डॉ अनिल त्रिपाठी

रामांशी मिश्रा
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