लखनऊ: सीएसआईआर केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान में तीन दिवसीय मिंट सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन में एंटरप्रेन्योर, इंडस्ट्रियलिस्ट, वैज्ञानिक, किसान समेत देशभर से मिंट की खेती से जुड़े हुए लोग आए. इस दौरान मिंट की फसल से जुड़ी उपयोगिता, उत्पादकता और आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की गई.
सम्मेलन में सीमैप के पूर्व निदेशक और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ. अनिल त्रिपाठी ने बताया कि मिंट की खेती ने किसानों के जीवन को काफी हद तक सुधारा है. उनके आर्थिक स्तर को मजबूत किया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सिंथेटिक मिंट का इस्तेमाल अधिक होने लगा है. इसके अलावा अब इंडस्ट्रीज भी सिंथेटिक मिंट को अधिक इस्तेमाल करती हैं. इसकी वजह से किसानों को आर्थिक रूप से नुकसान हो रहा है. साथ ही उनकी उत्पादकता का उन्हें सही मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है. इस वजह से उनमें निराशा है. इस सम्मेलन में मिंट की खेती से जुड़े हुए सभी लोगों को बुलाया गया है ताकि यह पता किया जा सके कि सही क्या है और गलत क्या है.
वहीं अरोमा इंडस्ट्री से जुड़े संत सांगानेर ने बताया कि सिंथेटिक मिंट और मूल मिंट दो अलग-अलग चीजें हैं. बाजार में एक भ्रांति फैली हुई है कि सिंथेटिक मिंट की वजह से किसानों का नुकसान हो रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि इससे किसी का भी नुकसान नहीं हो रहा है. जहां पर मूल मिंट का इस्तेमाल किया जा रहा है, वहां पर सिंथेटिक मेंथा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.