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लखीमपुर खीरी: दिल्ली से पश्चिम बंगाल पैदल जा रहा परिवार

दिल्ली में ठेलिया चलाकर अपना गुजारा करने वाला एक परिवार घर पहुंचने की आस में पिछले कई दिनों पैदल चल रहा है. यह परिवार पश्चिम बंगाल जाना चाहता है और अभी सिर्फ खीरी तक का सफर तय कर पाया है.

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दिल्ली से बंगाल पैदल निकला परिवार पहुंचा खीरी, 10 दिन का सफर अभी बांकी .
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Published : May 21, 2020, 9:06 AM IST

लखीमपुर खीरी: प्रवासी मजदूरों के दर्द और यात्राओं का अंतहीन होता सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. दिल्ली से पैदल चलकर पश्चिम बंगाल के लिए निकले एक परिवार से ईटीवी भारत ने बात की. मालदा जिले का रहने वाला यह परिवार साढ़े चार सौ किलोमीटर का फासदा पैदल तय करके लखीमपुर खीरी पहुंच गया है.

रोजी रोटी संकट के चलते पलायन

मालदा जिले के रहने वाले उत्तम मंडल दिल्ली में ठेलिया चला कर अपने परिवार का गुजर-बसर कर रहे थे, लेकिन इस देशव्यापी बंदी ने उनकी रोजी रोटी पर सकंट खड़ा कर दिया. उत्तम का कहना है कि पहले लगा कि 21 दिन बाद सब ठीक हो जाएगा. जब देखा कि लॉकडाउन बढ़ता ही जा रहा है. तो पैदल सफर करने को मजबूर होना पड़ा.

उत्तम बताते हैं कि दिन-रात मेहनत करके जो पैसे कमाए थे, वो खत्म हो गए हैं. अब तो खाने-पीने की भी दिक्कत होने लगी है. इसीलिए परिवार सहित ठेलिया लेकर पैदल ही घर की ओर चल दिए.

ललिता मंडल बताती हैं कि शाहजहांपुर में पुलिस ने उन्हें रोककर एक ट्रैक्टर पर बैठा दिया, लेकिन ट्रैक्टर इतनी रफ्तार में था कि उससे बच्चे डर गए क्योंकि रोज मजदूरों की सड़क हादसे में मौत की खबरें आती हैं. अगर जिंदगी रही तो हफ्ते-दस दिन में घर पहुंच ही जाएंगे.

सड़कों पर मजदूरों का हूजूम

ट्राली चालक ने बताया कि पुलिस ने परिवार को घर पहुंचाने के लिए 1,500 रुपये भी दिए थे. इन मुश्किल हालात में प्रवासी मजदूरों को उम्मीद है कि बस एक बार वो कैसे भी घर पहुंच जाएं तो शायद अपनों के बीच ये बुरा वक्त किसी तरह कट ही जाएगा.

लखीमपुर खीरी: प्रवासी मजदूरों के दर्द और यात्राओं का अंतहीन होता सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. दिल्ली से पैदल चलकर पश्चिम बंगाल के लिए निकले एक परिवार से ईटीवी भारत ने बात की. मालदा जिले का रहने वाला यह परिवार साढ़े चार सौ किलोमीटर का फासदा पैदल तय करके लखीमपुर खीरी पहुंच गया है.

रोजी रोटी संकट के चलते पलायन

मालदा जिले के रहने वाले उत्तम मंडल दिल्ली में ठेलिया चला कर अपने परिवार का गुजर-बसर कर रहे थे, लेकिन इस देशव्यापी बंदी ने उनकी रोजी रोटी पर सकंट खड़ा कर दिया. उत्तम का कहना है कि पहले लगा कि 21 दिन बाद सब ठीक हो जाएगा. जब देखा कि लॉकडाउन बढ़ता ही जा रहा है. तो पैदल सफर करने को मजबूर होना पड़ा.

उत्तम बताते हैं कि दिन-रात मेहनत करके जो पैसे कमाए थे, वो खत्म हो गए हैं. अब तो खाने-पीने की भी दिक्कत होने लगी है. इसीलिए परिवार सहित ठेलिया लेकर पैदल ही घर की ओर चल दिए.

ललिता मंडल बताती हैं कि शाहजहांपुर में पुलिस ने उन्हें रोककर एक ट्रैक्टर पर बैठा दिया, लेकिन ट्रैक्टर इतनी रफ्तार में था कि उससे बच्चे डर गए क्योंकि रोज मजदूरों की सड़क हादसे में मौत की खबरें आती हैं. अगर जिंदगी रही तो हफ्ते-दस दिन में घर पहुंच ही जाएंगे.

सड़कों पर मजदूरों का हूजूम

ट्राली चालक ने बताया कि पुलिस ने परिवार को घर पहुंचाने के लिए 1,500 रुपये भी दिए थे. इन मुश्किल हालात में प्रवासी मजदूरों को उम्मीद है कि बस एक बार वो कैसे भी घर पहुंच जाएं तो शायद अपनों के बीच ये बुरा वक्त किसी तरह कट ही जाएगा.

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