लखनऊ : किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में कैंसर मरीजों के लिए बेहतर चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था की गई है. इन्हीं व्यवस्थाओं को और आगे बढ़ाते हुए सर्जिकल आंकोलॉजिकल विभाग ने पाॅवर फाइनेंस कॉरपोरेशन से 10 करोड़ की राशि प्राप्त हुई है. इससे विभाग ने दो मशीनें स्थापित होने जा रही हैं. पहली इलेक्ट्रो कीमोथेरेपी मशीन और दूसरी हाइपरथर्मिक इंट्रा पेरीटोनियल कीमोथेरेपी मशीन है. इन मशीनों के जो एसेसरीज और बाकी के उपकरण हैं वह काफी महंगे होते हैं. इन सामानों को इसी लागत के जरिए विभाग में लाया जा रहा है. इससे कैंसर पीड़ित मरीजों को बेहतर इलाज मिल सकेगा.
![केजीएमयू में कीमोथेरेपी की सुविधा.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/26-09-2023/up-luc-01-kgmu-special-7209871_26092023151110_2609f_1695721270_429.jpeg)
![किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में बढ़ेंगी सुविधाएं.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/26-09-2023/19612625_apnspl2.jpg)
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी ते सर्जिकल आंकोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. विजय कुमार ने बताया कि केजीएमयू में कैंसर मरीजों के बेहतर इलाज के लिए सरकारी के साथ ही निजी सहयोग भी मिलने लगा है. विवि के सर्जिकल आंकोलॉजी विभाग को पाॅवर फाइनेंस कॉर्पोरेशन ने इलेक्ट्रो कीमोथेरेपी मशीन और इसके सहायक उपकरण खरीदने के लिए 10 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद देने के लिए करार किया है. यह पहली बार है कि केजीएमयू को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत इतनी बड़ी रकम मिल रही है. पिछले साल अगस्त से वह पाॅवर फाइनेंस कॉर्पोरेशन के संपर्क में हैं. करार के तहत केजीएमयू को पहली किस्त में एक करोड़ रुपये मिलेंगे. यह राशि इसी महीने मिलने की उम्मीद है. इससे टेंडर आदि की प्रक्रिया होगी. प्रक्रिया संपन्न होने के बाद विभाग को मशीन मिल जाएगी और कंपनी उसका भुगतान कर देगी. यह प्रक्रिया अगले तीन महीने में पूरी होने का अनुमान है.
![किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में बढ़ेंगी सुविधाएं.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/26-09-2023/19612625_apnspl1.jpg)
एचआईपीईसी का प्रोसेस : डॉ. सुधीर के मुताबिक कीमोथेरेपी के लिए सिस्प्लैटिन नाम की दवाई दी जाती है. एचआईपीईसी मशीन द्वारा 42 डिग्री तापमान पर इसे गर्म किया जाता है. 90 मिनट तक ओपन तकनीक से इसे गांठ वाले हिस्से में रिलीज किया जाता है. सर्जरी के इस पूरे प्रोसेस में करीब 8 से 10 घंटे का समय लगता है. इस तकनीक से मेडिसिन केवल गांठ वाले हिस्से पर ही रिलीज होती है. उन्होंने कहा कि इससे पहले इंजेक्शन के माध्यम से थेरेपी दी जाती थी. इस तकनीक से दवा खून में जाने की बजाय सीधे पेट में जाएगी. 42 डिग्री पर इसे गर्म करने की वजह से दूसरी बार गांठ बनने की आशंका कम रहेगी. इलाज के बाद इसका साइड इफेक्ट न के बराबर होता है.
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