लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती इन दिनों वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई हैं. दशकों बाद अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही पार्टी को फिर से खड़ा करना मायावती के लिए एक बड़ी चुनौती है. वर्ष 2007 में दलित ब्राह्मण समीकरण से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली मायावती वर्ष 2022 में सिर्फ एक विधायक जिता सकी हैं. ऐसे में मायावती ने संकेत दिए हैं कि वह युवाओं पर दांव लगाएंगी. पार्टी में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे उनके भतीजे आकाश भी युवा हैं. इसलिए बसपा को युवाओं को पार्टी से जोड़ने में आसानी होगी. वैसे भी माना जाता है के चुनावों में युवा मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. मायावती ने पिछले चुनावों में भी दलित-ब्राह्मण कार्ड के सहारे जीत हासिल करने का प्रयास किया था, लेकिन उन्हें कामयाबी नसीब नहीं हुई. स्वाभाविक तौर पर अब जरूरी हो गया है कि पार्टी नई रणनीति बनाकर चुनाव मैदान में उतरे.
लंबे अर्से तक अस्थिरता और मिलीजुली सरकारों का दौर देखने के बाद उत्तर प्रदेश ने वर्ष 2007 में स्थिर सरकार का दौर भी देखा, जब बहुजन समाज पार्टी पूर्ण बहुमत लेकर सत्ता में आई. इस दौरान बसपा के कार्यकाल में लोगों ने मायावती को एक सख्त प्रशासक के रूप में देखा. अपने पांच साल के शासनकाल में मायावती ने कई उल्लेखनीय कार्य किए तो सरकार में उनके सहयोगी मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. कुछ मंत्रियों को सलाखों के पीछे भी जाना पड़ा. वर्ष 2012 में प्रदेश की जनता ने भारी परिवर्तन किया और बसपा को सत्ता से उतार कर समाजवादी पार्टी की सरकार बनाई. मुलायम सिंह यादव ने अपने युवा पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया. इन पांच वर्षों में सपा में खूब पारिवारिक कलह हुई. साथ ही सरकार के मंत्री गायत्री प्रजापति पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. बाद में उन्हें जेल भी जाना पड़ा. वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता ने समाजवादी पार्टी को भी नकार दिया और प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार भ्रष्टाचार के मामले से दूर ही रही. माफिया और अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई कर सरकार ने अपनी एक अलग छवि बना ली. यही कारण है कि वर्ष 2022 के चुनाव में दोबारा भाजपा की सरकार बनी. ऐसे हालात में बसपा और सपा सहित अन्य दलों के लिए प्रदेश की सत्ता पर काबिल होना चुनौतीपूर्ण बन गया है. यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल भावी चुनाव के लिए अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं.
बसपा प्रमुख मायावती समझ चुकी हैं कि अब नए दौर की राजनीति में पुराने दांव काम नहीं आएंगे. इसलिए वह अब नए सिरे से रणनीति बना रही हैं. पार्टी नेतृत्व अपने काॅडर से कह रहा है कि वह अधिक से अधिक युवाओं को पार्टी से जुड़े. बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती के भतीजे आकाश युवा हैं और उनमें क्षमता है कि वह युवाओं को पार्टी से जोड़ सकें. शायद इसीलिए बसपा प्रमुख ज्यादा से ज्यादा युवाओं को पार्टी से जोड़ने की रणनीति बना रही हैं. गौरतलब है कि लोकसभा में बसपा के 10 सांसद हैं. यदि वर्ष 2024 में भी वर्ष 2022 वाली स्थित रही तो लोकसभा से भी पार्टी का सूपड़ा साफ हो सकता है. वर्ष 2007 के विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था. तब उसे 206 सीटें जीतने में सफलता मिली थी. इस चुनाव में उसे सर्वाधिक 30.43 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे. वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में बसपा को 80 सीटों पर सफलता मिली थी और उसने 25.95 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. यदि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों को देखें तो पार्टी ने महज 19 सीटों पर जीत हासिल की और उसे 22.24 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए. वहीं वर्ष 2022 के विधानसभा में सिर्फ पार्टी सिर्फ एक सीट जीत पाई. इस चुनाव में पार्टी को 12.88 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए. यह आंकड़े बताते हैं कि कैसे साल दर साल बसपा का पतन होता जा रहा है. स्वाभाविक है कि इससे उबरने के लिए पार्टी को नई रणनीति पर काम करना होगा.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ बीडी शुक्ला कहते हैं कि वर्ष 2022 में बसपा को भले ही सिर्फ एक सीट मिली हो, इसके बावजूद उसे 12 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले. पार्टी तमाम सीटों पर महज कुछ मतों के अंतर से पराजित हुई. साफ है कि यदि थोड़े प्रयास और किए जाते तो आज बसपा की स्थिति इससे बेहतर होती. आज भी बहुजन समाज पार्टी प्रदेश की जनता में अच्छा प्रभाव रखती हैं और उसे हाशिए पर नहीं माना जा सकता. निश्चितरूप से मायावती के भतीजे आकाश पार्टी का युवा चेहरा हैं. ऐसे में यदि वह ज्यादा से ज्यादा युवाओं को पार्टी में जोड़ने से कामयाब होते हैं, तो इसका लाभ बसपा को मिलेगा. लोकसभा चुनावों के लिए अभी एक साल बाकी है. तब तक कई मुद्दे आएंगे-जाएंगे. कई बार तात्कालिक विषय भी बड़ा उलटफेर कर देते हैं. इसलिए अभी इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए क्या आने वाले दिनों में क्या समीकरण बनते हैं. यही समीकरण चुनाव के दिशा तय करेंगे.