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यूपी में मायावती ने शुरू किया था छात्रों की आवाज कुचलने का षड्यंत्र, जानिए कैसे लगा छात्रसंघ पर बैन.. - लखनऊ का समाचार

लखनऊ विश्वविद्यालय में आखिरी छात्र संघ चुनाव 2005 में हुआ. साल 2007 में उत्तर प्रदेश में मायावती सत्ता में आई. प्रदेशभर के राज्य विश्वविद्यालयों में शासन चुनावों पर रोक लगा दी गई.

जानिए कैसे लगा छात्रसंघ पर बैन
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Published : Nov 9, 2021, 7:18 PM IST

लखनऊः साल 2007 में उत्तर प्रदेश में मायावती सत्ता में आईं, तो उन्होंने प्रदेश भर के राज्य विश्वविद्यालय में चुनावों पर रोक लगा दी. तत्कालीन सीएम मायावती ने कहा छात्र संघ की वजह से यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में अराजकता फैलती है. लखनऊ विश्विविद्यालय में आखिरी छात्र संघ चुनाव 2005 में हुआ था.


लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सेवानिवृत्त शिक्षक डॉ. नीरज जैन कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी का कोई फ्रंटल स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन नहीं था. सरकार जानती थी कि उनको अगर सबसे बड़ी चुनौती कहीं से मिलेगी तो वह छात्र हैं. ऐसे में छात्रों के आंदोलनों को कुचलने के लिए मायावती सरकार ने यह फैसला प्रदेश भर में लागू कर दिया. वर्ष 2012 में अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार सत्ता में आई. उन्होंने छात्र संघ बहाली के आदेश जारी कर दिये. शर्त रखी की लिंगदोह समिति की सिफारिश के आधार पर चुनाव होंगे. इससे प्रदेश भर में एक उम्मीद जगी थी, लेकिन उसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन के स्तर पर अलग-अलग कारण देकर प्रदेशभर के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में चुनाव ही नहीं कराए गए.

जानिए कैसे लगा छात्रसंघ पर बैन

एक ही राज्य में दोहरी नीति

डॉ नीरज जैन कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक देश एक कानून का नारा देते हैं. इसी भाजपा के शासन में उत्तर प्रदेश के शिक्षण संस्थानों में दोहरी नीति अपनाई जा रही है. बनारस के काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद विश्वविद्यालय समेत कई अन्य संस्थानों में छात्र संघ चुनाव कराए जाते हैं, लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय में नहीं. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में छात्र राजनीति हमेशा से काफी मजबूत रही है. 1974 में हिंदी आंदोलन के चलते उत्तर प्रदेश सरकार गिर गई थी. यह आंदोलन छात्रों ने ही संभाला था.

लखनऊ विश्वविद्यालय
लखनऊ विश्वविद्यालय
पहले भी दबाने की हो चुकी है कोशिशडॉ नीरज जैन ने बताया कि यह पहली बार नहीं है जब उत्तर प्रदेश में छात्र राजनीति को कुचलने की कोशिश की गई है. 1970 के दशक में इमरजेंसी के बाद केंद्र में चौधरी चरण सिंह की सरकार सत्ता में आई. उन्होंने छात्र आंदोलनों को कुचलने के लिए पूरे देश भर में सभी छात्र संघ चुनाव पर रोक लगा दी थी. यूपी में भी यह रोक लगी रही लेकिन, ज्यादा नहीं चल पाई. 1984-85 में छात्र संघ बहाल हुआ और लखनऊ विश्वविद्यालय में चुनाव कराए गए थे.

इसे भी पढ़ें- राफेल घोटाले पर बीजेपी बोली- सच्चाई आ गई सामने, 2013 से पहले 65 करोड़ की दी गई घूस

आवाज दबाने का षड्यंत्र

डॉ नीरज जैन कहते हैं कि किसी भी सत्ता का विरोध युवा यानी छात्रों की तरफ से ही उठा है. सरकारे जानती हैं कि अगर छात्र संघ हुआ तो उनकी गलत नीतियों पर उंगलियां उठेंगी. विश्वविद्यालय प्रशासन समझता है कि छात्र सवाल खड़े करेंगे. इन हालातों में अपनी निरंकुश सत्ता को मजबूत करने और छात्रों को दबाने के लिए विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव कराने से पीछे हट रहे हैं.

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लखनऊः साल 2007 में उत्तर प्रदेश में मायावती सत्ता में आईं, तो उन्होंने प्रदेश भर के राज्य विश्वविद्यालय में चुनावों पर रोक लगा दी. तत्कालीन सीएम मायावती ने कहा छात्र संघ की वजह से यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में अराजकता फैलती है. लखनऊ विश्विविद्यालय में आखिरी छात्र संघ चुनाव 2005 में हुआ था.


लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सेवानिवृत्त शिक्षक डॉ. नीरज जैन कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी का कोई फ्रंटल स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन नहीं था. सरकार जानती थी कि उनको अगर सबसे बड़ी चुनौती कहीं से मिलेगी तो वह छात्र हैं. ऐसे में छात्रों के आंदोलनों को कुचलने के लिए मायावती सरकार ने यह फैसला प्रदेश भर में लागू कर दिया. वर्ष 2012 में अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार सत्ता में आई. उन्होंने छात्र संघ बहाली के आदेश जारी कर दिये. शर्त रखी की लिंगदोह समिति की सिफारिश के आधार पर चुनाव होंगे. इससे प्रदेश भर में एक उम्मीद जगी थी, लेकिन उसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन के स्तर पर अलग-अलग कारण देकर प्रदेशभर के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में चुनाव ही नहीं कराए गए.

जानिए कैसे लगा छात्रसंघ पर बैन

एक ही राज्य में दोहरी नीति

डॉ नीरज जैन कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक देश एक कानून का नारा देते हैं. इसी भाजपा के शासन में उत्तर प्रदेश के शिक्षण संस्थानों में दोहरी नीति अपनाई जा रही है. बनारस के काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद विश्वविद्यालय समेत कई अन्य संस्थानों में छात्र संघ चुनाव कराए जाते हैं, लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय में नहीं. उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में छात्र राजनीति हमेशा से काफी मजबूत रही है. 1974 में हिंदी आंदोलन के चलते उत्तर प्रदेश सरकार गिर गई थी. यह आंदोलन छात्रों ने ही संभाला था.

लखनऊ विश्वविद्यालय
लखनऊ विश्वविद्यालय
पहले भी दबाने की हो चुकी है कोशिशडॉ नीरज जैन ने बताया कि यह पहली बार नहीं है जब उत्तर प्रदेश में छात्र राजनीति को कुचलने की कोशिश की गई है. 1970 के दशक में इमरजेंसी के बाद केंद्र में चौधरी चरण सिंह की सरकार सत्ता में आई. उन्होंने छात्र आंदोलनों को कुचलने के लिए पूरे देश भर में सभी छात्र संघ चुनाव पर रोक लगा दी थी. यूपी में भी यह रोक लगी रही लेकिन, ज्यादा नहीं चल पाई. 1984-85 में छात्र संघ बहाल हुआ और लखनऊ विश्वविद्यालय में चुनाव कराए गए थे.

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आवाज दबाने का षड्यंत्र

डॉ नीरज जैन कहते हैं कि किसी भी सत्ता का विरोध युवा यानी छात्रों की तरफ से ही उठा है. सरकारे जानती हैं कि अगर छात्र संघ हुआ तो उनकी गलत नीतियों पर उंगलियां उठेंगी. विश्वविद्यालय प्रशासन समझता है कि छात्र सवाल खड़े करेंगे. इन हालातों में अपनी निरंकुश सत्ता को मजबूत करने और छात्रों को दबाने के लिए विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव कराने से पीछे हट रहे हैं.

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