लखनऊः लखनऊ के ग्राम पंचायत धोबैला गांव के प्रधान मधुराम द्वारा गांव के रहने वाले ग्रामीणों के नाम से पहले तो मनरेगा जॉब कार्ड बनाया गया. उसके बाद मनरेगा जॉब कार्ड धारकों से मनरेगा में चल रही योजनाओं पर प्रधान द्वारा करीब 1 से 2 महीने तक काम लिया गया. उसके बाद भीम, रामलखन, गणेश, रीमा, कोमल सहित करीब एक दर्जन मनरेगा जॉब कार्ड धारकों के पैसे खाते में न पहुंचने को लेकर लापरवाही बरती गई. जिसके बाद जॉब कार्ड धारक लगातार अपने श्रम को पाने को लेकर प्रधान का चक्कर लगाते रहे. इसके बावजूद भी समस्याओं का निस्तारण नहीं हो पाया.
जिसको लेकर मनरेगा में काम करने वाले श्रमिक अपने श्रम को लेकर गुहार लगा रहे हैं. जहां सरकार द्वारा मनरेगा के लागू किए जाने के बाद पंचायती राज व्यवस्था में काफी मजबूती आई. सबसे ज्यादा फायदा ये हुआ कि ग्रामीण का पलायन रुका है. लोगों को घर बैठे काम मिल रहा है और निर्धारित मजदूरी भी मिल रहा है. मजदूरों में इस बात की खुशी भी है, कि उन्हें काम के साथ सम्मान भी मिला है. वही एक तरफ सरकार द्वारा कार्यस्थल पर उनकी आधारभूत जरूरतों का भी ध्यान रखा है. अब गांव के हर नागरिक के जुबां पर मनरेगा का नाम सुनने में आया है. उन्हें विश्वास है कि मनरेगा के जरिए वे कम से कम दो वक्त की रोटी का इंतजाम जरूर कर पाएंगे. उन्हें यह कहते हुए गर्व होता है कि अब गांव शहर एक साथ चलेगा.
मजदूरी भुगतान के तौर तरीके
मजदूरी भुगतान मनरेगा के तहत सप्ताहिक आधार पर किया जाता है. किसी भी काम के लिए अधिकतम 15 दिन के भीतर मजदूरी भुगतान करना अनिवार्य है. अधिनियम में पहले यह व्यवस्था दी गई थी, कि काम शुरू होते वक्त मजदूरों की संख्या कम से कम 50 होनी चाहिए. लेकिन इसमें बदलाव किया गया है, अब मजदूरों की संख्या 10 कर दी गई है. मजदूरों का भुगतान मेट की ओर से तैयार की गई मास्टर रोल के हिसाब से दिया जाएगा. इसको लेकर जॉब कार्ड धारी का खाता पोस्ट ऑफिस या बैंक में खोला जाता है.