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ओलंपिक के बॉक्सिंग रिंग में उतरने को आतुर हैं मलिहाबाद की बेटियां, सपनों की राह में यह है बाधा

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Published : Dec 7, 2022, 10:47 AM IST

मलिहाबाद क्षेत्र की बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मलिहाबाद जोश अकादमी समिति पिछले 12 वर्षों से ग्रामीण क्षेत्र की बालिकाओं को बॉक्सिंग सिखा रही है. यहां की बालिकाएं नेशनल, स्टेट और डिस्ट्रिक्ट स्तर पर अपना जौहर दिखा चुकी हैं और अब इनकी तमन्ना ओलंपिक में बॉक्सिंग रिंग में उतरने की है, लेकिन संसाधनों की कमी आड़े आ रही है.

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लखनऊ : राजधानी से 30 किमी की दूरी पर स्थित मलिहाबाद क्षेत्र की बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मलिहाबाद जोश अकादमी समिति द्वारा पिछले 12 वर्षों से ग्रामीण क्षेत्र की बालिकाओं को बॉक्सिंग सिखाया जा रहा है. यहां बालिकाएं प्रशिक्षक की सरपरस्पती में आत्मरक्षा के गुर सीख रही हैं. बालिकाएं अपने सपनों को साकार कर कई मेडल भी जीते हैं. इन बालिकाओं में से किसी ने नेशनल तो किसी ने स्टेट तो किसी ने डिस्ट्रिक्ट स्तर तक खेला है और गोल्ड समेत कई मेडल भी जीते हैं. इन बालिकाओं की तमन्ना है कि वे ओलंपिक में बॉक्सिंग रिंग में अपना जलवा दिखा सकें. बस इन्हें मलाल है सिर्फ संसाधनों की कमी का.


बॉक्सिंग सीखने वाली मलिहाबाद के मुंशीगंज की रहने वाली नूर आयशा खान बताती हैं कि वह 12वीं की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं. देश प्रदेश में बालिकाओं के साथ हो रही घटनाओं को देखते हुए तीन साल पहले आत्मनिर्भर बनने के लिए बॉक्सिंग सीखनी शुरू की थी, जिससे वह डिस्ट्रिक लेवल, स्टेट और नेशनल लेवल पर प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी हैं. जिसमें वह नेशनल कैम्प में दूसरे नंबर पर आई थी. मेरा ओलंपिक खेलने का सपना है, मगर संसाधनों की कमी के कारण हम लोगों की प्रैक्टिस सही से नहीं हो पा रही है. भलुसी गांव की शिवानी ने बताया कि वह बहुत गरीब परिवार से है. उसके पास फीस देने तक पैसे नहीं है. पहले तो वह स्कूल जाती है फिर घर के काम करने के बाद यहां बॉक्सिंग सीखने आती है. यहां सीखते हुए वह स्टेट लेवल झांसी खेली थी. जिसमें उसकी दूसरी पोजीशन आई थी और डिस्ट्रिक में तो कई बार गोल्ड मेडल ला चुकी है. मुजासा गांव की रहने वाली कांति बताती है कि पिछले 2 साल से निशुल्क बॉक्सिंग सीख कर आत्मरक्षा के गुर भी सीख रही है. साथ ही यहां सीखते हुए वह 6 बार डिस्ट्रिक्ट लेवल पर खेलने गई और 6 बार गोल्ड मेडल जीता. इन बालिकाओं का कहना है कि संसाधनों की कमी के चलते हम लोग इससे आगे नहीं जा पा रहे हैं. अगर सरकार हम लोगों को सुविधा दे तो ओलंपिक तक पहुंच पाएंगे.

जानकारी देते संवाददाता मो. मारूफ.

ईटीवी भारत की टीम बॉक्सिंग सीख रही लड़कियों के गांव पहुंची और उनके परिजनों से बात की. कांति के भाई ने बताया कि वह लोग बहुत गरीब हैं. इतने पैसे नहीं की कोई कोच रखकर बहन को बॉक्सिंग सिखा सकें. बहन ने 6 बार डिस्ट्रिक्ट लेवल पर गोल्ड मेडल जीता है. हम सभी बहुत खुश हैं कि एक दिन बहन जरूर देश का नाम रोशन करेगी. कल्पना की माता तो बात करते करते भावुक हो गईं और बताया कि मेरी बेटी 4 बार डिस्ट्रिक खेली है और गोल्ड जीता है. मलिहाबाद में मो. शैफ बिना पैसे के कोचिंग दे रहे हैं. एक दिन बेटियां बहुत आगे जाएंगी और देश का नाम जरूर रोशन करेंगी.


बॉक्सिंग कोच सैफ खान (boxing coach saif khan) बताते हैं कि मेरा एक ही मकसद है कि समाज में बालिकाओं को गलत नजर से देखने वाले मनचलों व शोहदों को मौके पर ही सबक सिखाया जा सके. यहां पर मौजूद कल्पना, मोनिका गौतम, अनीशा, बिनू रावत व अन्य पढ़ाई के साथ साथ नियमित अभ्यास करने को आती हैं. इस अकादमी के संचालक व कोच मोहम्मद सैफ खान बताते हैं कि पिछले 12 वर्षों से बिना किसी सरकारी मदद के ग्रामीण लड़कियों को बिना किसी संसाधन के खेतों में निशुल्क बॉक्सिंग सिखा रहे हैं. खेतों में अभ्यास करते समय इन बालिकाओं का उत्साह देखते ही बनता है. यहां पर मौजूद सबसे छोटी 12 वर्षीय रिया उसका सपना है कि वह पुलिस में भर्ती होकर देश की सेवा कर सके. सैफ ने बताया कि हमारी एनजीओ के पास संसाधनों की कमी है. जिससे बच्चियों को सिखाने में दिक्कत होती है. सारा खर्च हम अपने पास से स्वयं करते हैं. सबसे बड़ी समस्या बॉक्सिंग रिंग की है, जिससे हमारी बच्चियां नंगे पैर सीखती है. हम प्रदेश के मुख्यमंत्री से गुजारिश करते हैं कि हम लोगों को बॉक्सिंग रिंग, बॉक्सिंग ग्लब्स, हेड गार्ड, मुहैया कराए, जिससे हम अपने बच्चियों को नेशनल और ओलंपिक तक पहुंचा सकें.


यह भी पढ़ें : हार्वर्ड विवि के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष 8 को एकेटीयू में बताएंगे भारतीय होने का महत्व, गौ ऐप का डेमो 9 को

लखनऊ : राजधानी से 30 किमी की दूरी पर स्थित मलिहाबाद क्षेत्र की बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मलिहाबाद जोश अकादमी समिति द्वारा पिछले 12 वर्षों से ग्रामीण क्षेत्र की बालिकाओं को बॉक्सिंग सिखाया जा रहा है. यहां बालिकाएं प्रशिक्षक की सरपरस्पती में आत्मरक्षा के गुर सीख रही हैं. बालिकाएं अपने सपनों को साकार कर कई मेडल भी जीते हैं. इन बालिकाओं में से किसी ने नेशनल तो किसी ने स्टेट तो किसी ने डिस्ट्रिक्ट स्तर तक खेला है और गोल्ड समेत कई मेडल भी जीते हैं. इन बालिकाओं की तमन्ना है कि वे ओलंपिक में बॉक्सिंग रिंग में अपना जलवा दिखा सकें. बस इन्हें मलाल है सिर्फ संसाधनों की कमी का.


बॉक्सिंग सीखने वाली मलिहाबाद के मुंशीगंज की रहने वाली नूर आयशा खान बताती हैं कि वह 12वीं की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं. देश प्रदेश में बालिकाओं के साथ हो रही घटनाओं को देखते हुए तीन साल पहले आत्मनिर्भर बनने के लिए बॉक्सिंग सीखनी शुरू की थी, जिससे वह डिस्ट्रिक लेवल, स्टेट और नेशनल लेवल पर प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी हैं. जिसमें वह नेशनल कैम्प में दूसरे नंबर पर आई थी. मेरा ओलंपिक खेलने का सपना है, मगर संसाधनों की कमी के कारण हम लोगों की प्रैक्टिस सही से नहीं हो पा रही है. भलुसी गांव की शिवानी ने बताया कि वह बहुत गरीब परिवार से है. उसके पास फीस देने तक पैसे नहीं है. पहले तो वह स्कूल जाती है फिर घर के काम करने के बाद यहां बॉक्सिंग सीखने आती है. यहां सीखते हुए वह स्टेट लेवल झांसी खेली थी. जिसमें उसकी दूसरी पोजीशन आई थी और डिस्ट्रिक में तो कई बार गोल्ड मेडल ला चुकी है. मुजासा गांव की रहने वाली कांति बताती है कि पिछले 2 साल से निशुल्क बॉक्सिंग सीख कर आत्मरक्षा के गुर भी सीख रही है. साथ ही यहां सीखते हुए वह 6 बार डिस्ट्रिक्ट लेवल पर खेलने गई और 6 बार गोल्ड मेडल जीता. इन बालिकाओं का कहना है कि संसाधनों की कमी के चलते हम लोग इससे आगे नहीं जा पा रहे हैं. अगर सरकार हम लोगों को सुविधा दे तो ओलंपिक तक पहुंच पाएंगे.

जानकारी देते संवाददाता मो. मारूफ.

ईटीवी भारत की टीम बॉक्सिंग सीख रही लड़कियों के गांव पहुंची और उनके परिजनों से बात की. कांति के भाई ने बताया कि वह लोग बहुत गरीब हैं. इतने पैसे नहीं की कोई कोच रखकर बहन को बॉक्सिंग सिखा सकें. बहन ने 6 बार डिस्ट्रिक्ट लेवल पर गोल्ड मेडल जीता है. हम सभी बहुत खुश हैं कि एक दिन बहन जरूर देश का नाम रोशन करेगी. कल्पना की माता तो बात करते करते भावुक हो गईं और बताया कि मेरी बेटी 4 बार डिस्ट्रिक खेली है और गोल्ड जीता है. मलिहाबाद में मो. शैफ बिना पैसे के कोचिंग दे रहे हैं. एक दिन बेटियां बहुत आगे जाएंगी और देश का नाम जरूर रोशन करेंगी.


बॉक्सिंग कोच सैफ खान (boxing coach saif khan) बताते हैं कि मेरा एक ही मकसद है कि समाज में बालिकाओं को गलत नजर से देखने वाले मनचलों व शोहदों को मौके पर ही सबक सिखाया जा सके. यहां पर मौजूद कल्पना, मोनिका गौतम, अनीशा, बिनू रावत व अन्य पढ़ाई के साथ साथ नियमित अभ्यास करने को आती हैं. इस अकादमी के संचालक व कोच मोहम्मद सैफ खान बताते हैं कि पिछले 12 वर्षों से बिना किसी सरकारी मदद के ग्रामीण लड़कियों को बिना किसी संसाधन के खेतों में निशुल्क बॉक्सिंग सिखा रहे हैं. खेतों में अभ्यास करते समय इन बालिकाओं का उत्साह देखते ही बनता है. यहां पर मौजूद सबसे छोटी 12 वर्षीय रिया उसका सपना है कि वह पुलिस में भर्ती होकर देश की सेवा कर सके. सैफ ने बताया कि हमारी एनजीओ के पास संसाधनों की कमी है. जिससे बच्चियों को सिखाने में दिक्कत होती है. सारा खर्च हम अपने पास से स्वयं करते हैं. सबसे बड़ी समस्या बॉक्सिंग रिंग की है, जिससे हमारी बच्चियां नंगे पैर सीखती है. हम प्रदेश के मुख्यमंत्री से गुजारिश करते हैं कि हम लोगों को बॉक्सिंग रिंग, बॉक्सिंग ग्लब्स, हेड गार्ड, मुहैया कराए, जिससे हम अपने बच्चियों को नेशनल और ओलंपिक तक पहुंचा सकें.


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