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यूपी में पॉलिटिकल पार्टियों ने किया माफिया से तौबा, कभी शान से खिंचवाते थे फोटो

राजनीति के अपराधीकरण और सियासत में माफिया अब बड़ा मुद्दा बन चुका है. ऐसा नहीं है कि माफिया राजनीति में सक्रिय नहीं हैं मगर योगी राज में हुई बुलडोजर कार्रवाई और एनकाउंटर का खौफ बना जरूर है. हालत यह है कि सभी राजनीतिक दल खुद को पाक साफ साबित करने के लिए खुलेआम माफिया के समर्थन में नजर नहीं आ रहे हैं.

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Published : Apr 11, 2023, 6:03 PM IST

लखनऊ : एक समय था, जब यूपी के माफिया बड़े राजनेताओं के साथ नजर आते थे. नेता भी उनके साथ तस्वीर खिंचवाने में नहीं हिचकते थे. मगर यूपी में अब बड़े माफिया अलग-थलग पड़े हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती ने माफिया अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन का मेयर का टिकट काट कर अपराधियों और माफिया के राजनीति में टिके रहने की बची उम्मीद पर पानी फेर दिया है. इससे पहले मुख्तार अंसारी और उसके परिवार से बड़े राजनीतिक दलों ने दूरी बनाई. धनंजय सिंह को भी किसी बड़े दल का समर्थन नहीं मिला. अब अतीक अहमद के परिवार की राजनीतिक दलों में नो एंट्री हो गई है. पॉलिटिकल पार्टियों के बदले रवैये से यूपी में माफिया के राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है.

80 के दशक में माफियागिरी शुरू करने वाले बाहुबलियों ने 2012 विधानसभा चुनाव तक अपनी धमक बरकरार रखी थी. 2017 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश को योगी आदित्यनाथ ने अपने बुल्डोजर स्कीम से परिचय कराया. योगी के सख्त रवैये ने माफिया को एहसास दिला दिया कि राजनीति में उनका कोई काम नहीं, वे जेल में ही ठीक हैं. कार्रवाई का नतीजा है कि मुख्तार, अतीक व विजय मिश्रा जैसे बाहुबली विधानसभा से गायब हैं. बदले राजनीतिक हालात में राजनीतिक दल भी माफिया और विवादित छवि वाले नेताओं से दूरी बना कर चल रहे हैं. आलम यह है कि मुख्तार अंसारी के बेटे को सुभासपा ने विधायक बनाया, मगर पार्टी एक साल के भीतर उसका नाम भी नहीं लेना चाहती है. विजय मिश्र, अतीक अहमद , धनंजय सिंह और डीपी यादव जैसे सरीखे नेता राजनीतिक दलों में एंट्री के लिए लालायित हैं.

mafia politics in Uttar Pradesh
अतीक अहमद को दोबारा उमेश पाल हत्याकांड में सुनवाई के लिए प्रयागराज लाया जा रहा है. पत्नी शाइस्ता 50 हजार की इनामी हो चुकी है.
अतीक जेल में, परिवार भी फरार : अतीक अहमद अपने जिले प्रयागराज से 1000 किलोमीटर दूर साबरमती जेल में बंद है. किसी जमाने में अतीक को हाथों हाथ लेने वाले दल के नेता उनका नाम लेने से भी गुरेज कर रहे हैं. 2022 के विधान चुनाव में पूर्वांचल की 14 सीटों पर वर्चस्व रखने वाले अतीक अहमद को किसी भी राजनीतिक दल ने लिफ्ट नहीं दिया. अतीक को उम्मीद थी कि उसका राजनीतिक भविष्य उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन संभालेगी, लिहाजा पहले उसे असादुदीन ओवैसी की पार्टी एआईएआईएम ज्वाइन कराई और फिर बसपा के हाथी पर सवार करा दिया. उमेश पाल हत्याकांड के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने शाइस्ता का मेयर का टिकट काटकर अतीक की उम्मीदों को धराशायी कर दिया. अब अतीक के दो बालिग बेटे जेल में है, नाबालिग लापता है और एक फरार है, ऐसे में उसका राजनीतिक भविष्य गर्त में चला गया है.क्या है अतीक का राजनीतिक करियर : बाहुबली माफिया अतीक अहमद इलाहाबाद के शहर पश्चिमी सीट से 5 बार विधायक रहा हैं और एक बार समाजवादी पार्टी से सांसद भी चुना जा चुका है. अतीक अहमद ने पहला चुनाव 1989 में इलाहाबाद पश्चिमी सीट से निर्दलीय लड़ कर जीता था. इसके बाद 1993 तक लगातार 3 बार निर्दलीय इसी सीट से जीतते रहे. इसके बाद 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीते. 2002 में अतीक अहमद ने अपना दल का खाता खोलते हुए जीत हासिल की थी. 2004 के लोक सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर फूलपुर से सांसद बने.
mafia politics in Uttar Pradesh
मुख्तार अंसारी के बेटा सुभासपा का विधायक है, फिर भी अब राजनीतिक शेल्टर ढूंढ रहा है.
मुख्तार अंसारी की राजनीति भी चौपट : बांदा जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी और उसके परिवार का राजनीतिक भविष्य अधर में अटका हुआ है. खुद की राजनीतिक विरासत उसने अपने बड़े बेटे अब्बास अंसारी को सौंपी तो समाजवादी पार्टी ने उसे अपना प्रत्याशी नहीं बनाया. 2017 में बसपा से विधायक चुने गए मुख्तार 2022 में बेटे को टिकट नहीं दिला पाया. ऐसे में सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी का साथ मिला और अब्बास अंसारी 2022 के चुनाव में जीत कर विधायक बन गया. अब बदले माहौल में सुभासपा भी अधिक साथ नही दे पाई . पार्टी सुप्रीमो ओपी राजभर भी अब्बास का नाम लेने से कतरा रहे हैं.
mafia politics in Uttar Pradesh
मुख्तार अंसारी के राजनीतिक वारिस अब्बास अंसारी भी सलाखों के पीछे है.



बीएसपी ने मुख्तार से भी कन्नी काटी : 1996 में मुख्तार बसपा की टिकट पर मऊ सदर से विधानसभा का चुनाव जीते थे. इसके बाद 2002 और 2007 में इसी सीट से निर्दलीय चुनाव जीते जबकि 2012 में अपनी पार्टी क़ौमी एकता पार्टी से जीत हासिल की थी. 2017 के चुनाव में में अपनी कौमी एकता दल का बसपा में विलय किया और 2017 में इसी सीट से बसपा की टिकट पर जीत गए.


राजनीति से गायब हुए विजय मिश्रा : रिश्तेदार के मकान पर कब्जा करने, जान से मारने की धमकी देने और बेटे के नाम वसीयत करने के लिये दबाव डालने का आारोप में आगरा की जेल में बंद बाहुबली विधायक विजय मिश्रा राजनीति से गायब हैं. 3 बार सपा से विधायक रहे विजय मिश्रा का अखिलेश यादव नाम तक नही लेना चाहते हैं. 2017 के चुनाव में विजय मिश्रा ने जिस निषाद पार्टी से चुनाव लड़ा था और मोदी लहर में जीत हासिल की थी. आज निषाद पार्टी ने भी उनसे दूरी बना ली. 2022 के विधान सभा चुनाव में निर्दलीय लड़े और हार गए.

mafia politics in Uttar Pradesh
विजय मिश्रा 2022 में विधानसभा चुनाव लड़े मगर हार गए.
धनंजय सिंह को कोई नहीं पूछ रहा : पूर्वांचल के बाहुबलियों की सूची में टॉपर रहे धनंजय सिंह भी सियासी ठिकाना तलाश रहे हैं. साल 2002 में धनंजय सियासत और बाहुबल के बदौलत रारी सीट से विधायक चुने गए. 2004 के लोकसभा चुनाव लड़ा मगर हार गए. 2009 के चुनाव में धनंजय सिंह ने बसपा के टिकट से लड़कर जीत हासिल की थी. 2014 में देश की राजनीति में मोदी युग शुरू हुआ और धनंजय सिंह अकेले पड़ गए. बिहार की जेडीयू का साथ मिलकर मल्हनी से चुनाव लड़े लेकिन हार गए.राजनीतिक पंडित इसे योगी सरकार की कार्रवाई का असर मान रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र त्रिपाठी बताते है कि 2017 के बाद से जिस तरह यूपी में बीजेपी सरकार ने माफिया व अपराधियों के खिलाफ एक्शन लिया. साथ ही राजनीतिक दलों से माफिया की दोस्ती को मुद्दा बनाया, उससे बदलाव आया. इस बार के चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टियां खुद का दामन साफ रखने की कवायद कर रहीं हैं. वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन सिंह कहते हैं कि योगी सरकार में माफिया और अपराधियों की कमर तोड़ने का काम किया गया है, जिसमें खासतौर पर अतीक और मुख्तार एंड फैमली शामिल है. मगर ऐसा नहीं है कि अब भी कई ऐसे माफिया और अपराधी है जो परोक्ष रूप से लाभ ले रहे हैं.

पढ़ें : Gangster Atiq Ahmed: खौफ में अतीक, कहा- 'मुझे मारना चाहती है पुलिस'

लखनऊ : एक समय था, जब यूपी के माफिया बड़े राजनेताओं के साथ नजर आते थे. नेता भी उनके साथ तस्वीर खिंचवाने में नहीं हिचकते थे. मगर यूपी में अब बड़े माफिया अलग-थलग पड़े हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती ने माफिया अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन का मेयर का टिकट काट कर अपराधियों और माफिया के राजनीति में टिके रहने की बची उम्मीद पर पानी फेर दिया है. इससे पहले मुख्तार अंसारी और उसके परिवार से बड़े राजनीतिक दलों ने दूरी बनाई. धनंजय सिंह को भी किसी बड़े दल का समर्थन नहीं मिला. अब अतीक अहमद के परिवार की राजनीतिक दलों में नो एंट्री हो गई है. पॉलिटिकल पार्टियों के बदले रवैये से यूपी में माफिया के राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है.

80 के दशक में माफियागिरी शुरू करने वाले बाहुबलियों ने 2012 विधानसभा चुनाव तक अपनी धमक बरकरार रखी थी. 2017 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश को योगी आदित्यनाथ ने अपने बुल्डोजर स्कीम से परिचय कराया. योगी के सख्त रवैये ने माफिया को एहसास दिला दिया कि राजनीति में उनका कोई काम नहीं, वे जेल में ही ठीक हैं. कार्रवाई का नतीजा है कि मुख्तार, अतीक व विजय मिश्रा जैसे बाहुबली विधानसभा से गायब हैं. बदले राजनीतिक हालात में राजनीतिक दल भी माफिया और विवादित छवि वाले नेताओं से दूरी बना कर चल रहे हैं. आलम यह है कि मुख्तार अंसारी के बेटे को सुभासपा ने विधायक बनाया, मगर पार्टी एक साल के भीतर उसका नाम भी नहीं लेना चाहती है. विजय मिश्र, अतीक अहमद , धनंजय सिंह और डीपी यादव जैसे सरीखे नेता राजनीतिक दलों में एंट्री के लिए लालायित हैं.

mafia politics in Uttar Pradesh
अतीक अहमद को दोबारा उमेश पाल हत्याकांड में सुनवाई के लिए प्रयागराज लाया जा रहा है. पत्नी शाइस्ता 50 हजार की इनामी हो चुकी है.
अतीक जेल में, परिवार भी फरार : अतीक अहमद अपने जिले प्रयागराज से 1000 किलोमीटर दूर साबरमती जेल में बंद है. किसी जमाने में अतीक को हाथों हाथ लेने वाले दल के नेता उनका नाम लेने से भी गुरेज कर रहे हैं. 2022 के विधान चुनाव में पूर्वांचल की 14 सीटों पर वर्चस्व रखने वाले अतीक अहमद को किसी भी राजनीतिक दल ने लिफ्ट नहीं दिया. अतीक को उम्मीद थी कि उसका राजनीतिक भविष्य उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन संभालेगी, लिहाजा पहले उसे असादुदीन ओवैसी की पार्टी एआईएआईएम ज्वाइन कराई और फिर बसपा के हाथी पर सवार करा दिया. उमेश पाल हत्याकांड के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने शाइस्ता का मेयर का टिकट काटकर अतीक की उम्मीदों को धराशायी कर दिया. अब अतीक के दो बालिग बेटे जेल में है, नाबालिग लापता है और एक फरार है, ऐसे में उसका राजनीतिक भविष्य गर्त में चला गया है.क्या है अतीक का राजनीतिक करियर : बाहुबली माफिया अतीक अहमद इलाहाबाद के शहर पश्चिमी सीट से 5 बार विधायक रहा हैं और एक बार समाजवादी पार्टी से सांसद भी चुना जा चुका है. अतीक अहमद ने पहला चुनाव 1989 में इलाहाबाद पश्चिमी सीट से निर्दलीय लड़ कर जीता था. इसके बाद 1993 तक लगातार 3 बार निर्दलीय इसी सीट से जीतते रहे. इसके बाद 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीते. 2002 में अतीक अहमद ने अपना दल का खाता खोलते हुए जीत हासिल की थी. 2004 के लोक सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर फूलपुर से सांसद बने.
mafia politics in Uttar Pradesh
मुख्तार अंसारी के बेटा सुभासपा का विधायक है, फिर भी अब राजनीतिक शेल्टर ढूंढ रहा है.
मुख्तार अंसारी की राजनीति भी चौपट : बांदा जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी और उसके परिवार का राजनीतिक भविष्य अधर में अटका हुआ है. खुद की राजनीतिक विरासत उसने अपने बड़े बेटे अब्बास अंसारी को सौंपी तो समाजवादी पार्टी ने उसे अपना प्रत्याशी नहीं बनाया. 2017 में बसपा से विधायक चुने गए मुख्तार 2022 में बेटे को टिकट नहीं दिला पाया. ऐसे में सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी का साथ मिला और अब्बास अंसारी 2022 के चुनाव में जीत कर विधायक बन गया. अब बदले माहौल में सुभासपा भी अधिक साथ नही दे पाई . पार्टी सुप्रीमो ओपी राजभर भी अब्बास का नाम लेने से कतरा रहे हैं.
mafia politics in Uttar Pradesh
मुख्तार अंसारी के राजनीतिक वारिस अब्बास अंसारी भी सलाखों के पीछे है.



बीएसपी ने मुख्तार से भी कन्नी काटी : 1996 में मुख्तार बसपा की टिकट पर मऊ सदर से विधानसभा का चुनाव जीते थे. इसके बाद 2002 और 2007 में इसी सीट से निर्दलीय चुनाव जीते जबकि 2012 में अपनी पार्टी क़ौमी एकता पार्टी से जीत हासिल की थी. 2017 के चुनाव में में अपनी कौमी एकता दल का बसपा में विलय किया और 2017 में इसी सीट से बसपा की टिकट पर जीत गए.


राजनीति से गायब हुए विजय मिश्रा : रिश्तेदार के मकान पर कब्जा करने, जान से मारने की धमकी देने और बेटे के नाम वसीयत करने के लिये दबाव डालने का आारोप में आगरा की जेल में बंद बाहुबली विधायक विजय मिश्रा राजनीति से गायब हैं. 3 बार सपा से विधायक रहे विजय मिश्रा का अखिलेश यादव नाम तक नही लेना चाहते हैं. 2017 के चुनाव में विजय मिश्रा ने जिस निषाद पार्टी से चुनाव लड़ा था और मोदी लहर में जीत हासिल की थी. आज निषाद पार्टी ने भी उनसे दूरी बना ली. 2022 के विधान सभा चुनाव में निर्दलीय लड़े और हार गए.

mafia politics in Uttar Pradesh
विजय मिश्रा 2022 में विधानसभा चुनाव लड़े मगर हार गए.
धनंजय सिंह को कोई नहीं पूछ रहा : पूर्वांचल के बाहुबलियों की सूची में टॉपर रहे धनंजय सिंह भी सियासी ठिकाना तलाश रहे हैं. साल 2002 में धनंजय सियासत और बाहुबल के बदौलत रारी सीट से विधायक चुने गए. 2004 के लोकसभा चुनाव लड़ा मगर हार गए. 2009 के चुनाव में धनंजय सिंह ने बसपा के टिकट से लड़कर जीत हासिल की थी. 2014 में देश की राजनीति में मोदी युग शुरू हुआ और धनंजय सिंह अकेले पड़ गए. बिहार की जेडीयू का साथ मिलकर मल्हनी से चुनाव लड़े लेकिन हार गए.राजनीतिक पंडित इसे योगी सरकार की कार्रवाई का असर मान रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र त्रिपाठी बताते है कि 2017 के बाद से जिस तरह यूपी में बीजेपी सरकार ने माफिया व अपराधियों के खिलाफ एक्शन लिया. साथ ही राजनीतिक दलों से माफिया की दोस्ती को मुद्दा बनाया, उससे बदलाव आया. इस बार के चुनाव में सभी राजनीतिक पार्टियां खुद का दामन साफ रखने की कवायद कर रहीं हैं. वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन सिंह कहते हैं कि योगी सरकार में माफिया और अपराधियों की कमर तोड़ने का काम किया गया है, जिसमें खासतौर पर अतीक और मुख्तार एंड फैमली शामिल है. मगर ऐसा नहीं है कि अब भी कई ऐसे माफिया और अपराधी है जो परोक्ष रूप से लाभ ले रहे हैं.

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