लखनऊः ब्रेल लिपि यानी दृष्टिहीनों के लिखने व पढ़ने का माध्यम. इसमें अक्षरों को छूकर पढ़ा जाता है. हालांकि अब टेक्निकल सॉफ्टवेयर व आधुनिक डिवाइसेस दृष्टिबाधितों की आंखें बन गई हैं, लेकिन आज भी ब्रेल लिपि दृष्टिबाधितों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. इस ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल की याद में ही 4 जनवरी को उनकी जयंती के रूप में लुई ब्रेल दिवस मनाया जाता है. बुधवार (6 जनवरी) को उनकी पुण्यतिथि भी है. ब्रेल दिवस मनाने का उद्देश्य है लोगों को ब्रेल लिपि के बारे में जागरूक करना.
1825 में शुरुआत
विश्व भर में ब्रेल लिपि को दृष्टिहीन दिव्यांगों को पढ़ने और लिखने में छूकर व्यवहार में लाया जाता है. टेक्नोलॉजी के दौर में भी ब्रेल लिपि का वजूद खत्म नहीं हुआ है. दृष्टिबाधित स्टूडेंट्स की पढ़ाई की शुरुआत ब्रेल लिपि के माध्यम से ही होती है. इस पद्धति का आविष्कार फ्रांस के एक छोटे से गांव कुप्रे के 16 वर्षीय लड़के लुई ब्रेल ने 1825 में किया था. लुई ब्रेल की महज 3 वर्ष की उम्र में एक हादसे के दौरान आंखों की रोशनी चली गई थी. हालांकि लुई ब्रेल की सीखने की ललक ने उन्हें शांत नहीं बैठने दिया. इसके बाद उन्होंने इस ब्रेल लिपि का आविष्कार कर डाला. आज भी लुई ब्रेल को दृष्टिबाधित अपना मसीहा मानते हैं.
बोलती पुस्तकों के लिए खुलेगा रिकॉर्डिंग स्टूडियो
प्रबंधक बृजेश चौधरी ने बताया कि हमारा प्रयास है कि लगातार बोलती पुस्तकों की डिमांड बढ़ रही है.इसलिए स्टूडेंट्स को अच्छी सुविधाएं दी जा सके. इसी के तहत प्रदेश में बोलती पुस्तकों का पहला रिकॉर्डिंग स्टूडियो लखनऊ में खोलने का प्रयास जारी है, जिससे दृष्टिबाधित छात्रों को ब्रेल लिपि के साथ बोलती पुस्तकों को भी अधिक से अधिक मुहैया करवाया जा सके.
स्पर्श राजकीय दृष्टिबाधित स्कूलों के आंकड़े
राजकीय ब्रेल प्रेस के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के 5 जिलों में स्पर्श दृष्टिबाधित स्कूल मौजूद हैं. इनमें लखनऊ, गोरखपुर में दो-दो स्कूल, बांदा, मेरठ और सहारनपुर में एक-एक स्कूल मौजूद हैं.
ब्रेल लिपि सिखाने से पहले कराते हैं स्पर्श ज्ञान
दरअसल ब्रेल लिपि सिखाने से पहले बच्चों को अनेक प्रकार से स्पर्श ज्ञान कराया जाता है. इसके बाद धीरे-धीरे बच्चे इस भाषा में पकड़ बनाने लगते हैं. कुछ ही दिनों में सामान्य बच्चों की तरह वह भी इस लिपि के माध्यम से पढ़ाई करने लगते हैं.