लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार से जुड़े नए चार जिलों के महाविद्यालयों का अभिलेख छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर से मांगा गया है. इस पर कानपुर विवि की ओर से कानपुर आकर रिकॉर्ड ले जाने की बात कही गई है. यूपी सरकार ने हरदोई, सीतापुर, रायबरेली और लखीमपुर के डिग्री कॉलेजों को अब कानपुर विश्वविद्यालय से हटाकर लविवि से संबंद्ध कर दिया है.
शिक्षा नीति को बनाना है बेहतर
नई शिक्षा नीति के तहत शिक्षा को और भी बेहतर बनाना है. किसी भी यूनिवर्सिटी से अधिकतर 300 कॉलेज ही जोड़ने का फैसला लिया गया है. फिलहाल सभी विश्वविद्यालयों में इस नियम के अनुसार ही तैयारियां की जा रही हैं. इसी कड़ी में प्रदेश सरकार ने लविवि के क्षेत्राधिकार में रायबरेली, हरदोई, लखीमपुर खीरी और सीतापुर को जोड़ा है. लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कानपुर यूनिवर्सिटी से उक्त जनपदों के कॉलेजों का अभिलेख उपलब्ध कराने को कहा गया, जिस पर कानपुर विश्वविद्यालय ने रिकॉर्ड तैयार होने की बात कहते हुए उसे कानपुर आकर ले जाने की बात कही है. अब एलयू प्रशासन इन जिलों के महाविद्यालयों का पूरा रिकॉर्ड लाने की तैयारियों में जुटा हुआ है. पहले इन जिलों के डिग्री कॉलेज छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर से संबंद्ध थे. बता दें कि अब तक लखनऊ विश्वविद्यालय का क्षेत्राधिकार सिर्फ लखनऊ जिले तक ही सीमित था. यहां से लखनऊ के 176 डिग्री कॉलेज संबंद्ध हैं.
स्किल डेवलपमेंट जैसे कार्यक्रम होंगे शुरू
पीएम नरेंद्र मोदी ने लविवि के शताब्दी समारोह के दौरान कहा था कि जिन जिलों को आपके शैक्षणिक दायरे में जोड़ा जा रहा है. वहां के लोकल उत्पादन, लोकल विधाओं और उनसे जुड़े कोर्सेज के लिए स्किल डेवलपमेंट जैसे कार्यक्रम शुरू किए जाएं. तभी एक जिला एक उत्पाद की योजना साकार हो पाएगी. इसके बाद ही कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय ने दो सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन करने की घोषणा कर दी थी. इसके तहत अब इन जिलों के महाविद्यालयों के अभिलेख जुटाए जा रहे हैं.
लविवि में चार साल का होगा स्नातक पाठ्यक्रम
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत लविवि में अगले सत्र से स्नातक पाठ्यक्रम चार साल का हो जाएगा. इसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. विद्यार्थियों के पास यह विकल्प भी रहेगा कि वह तीन साल का स्नातक कर लें, लेकिन ऐसा करने पर परास्नातक की पढ़ाई दो साल की करनी होगी, जबकि चार साल का स्नातक होने पर परास्नातक सिर्फ एक साल का ही रह जाएगा.