लखनऊ : लखनऊ विवि बिना सरकारी मदद के अपने संसाधनों से करीब 270 करोड़ से अधिक का बजट अर्जित कर रहा है. इसमें जमा होने वाली फीस के अलावा अनेक लोगों का सहयोग शामिल है. बता दें कि लखनऊ विश्वविद्यालय भले ही 100 साल पुराना हो गया हो मगर सरकार से सालाना बजट का पूरा 10 फीसद सहयोग भी नहीं मिलता है. करीब 13,000 विद्यार्थियों को अच्छी उच्च शिक्षा, बेहतर मूल्यांकन और अच्छे परिणाम का दबाव लखनऊ विश्वविद्यालय पर है.
वहीं अब बजट को और बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय यूट्यूब और वेबसाइट के अलावा स्लेट ऐप को भी कॉमर्शियल बनाने की तैयारी कर रहा है. ताकि नए सिरे से आय के साधन जुटाए जा सकें. यही नहीं लखनऊ विश्वविद्यालय की तैयारी है कि यहां के पूर्व विद्यार्थियों की मदद भी ली जाए. वह विभागों के खर्च अपने कंधे पर लें, जिसको अंगीकार करना कहा जाएगा. पूरे विभाग को उस व्यक्ति के किसी बुजुर्ग की स्मृति से भी जोड़ा जा सकता है.
बजट के संकट से जूझते विवि को संभालना टेढ़ी खीर
विश्वविद्यालय में जो कमियां हैं उसके पीछे की वजह बजट ही है. इसको लेकर अनेक बार के प्रयासों के बावजूद कुल 330 करोड़ के बजट में 30 से 35 करोड़ रुपये की ही ग्रांट मिल पाती है. इस वजह से विभागों की स्थिति ठीक नहीं है. कई जगह निर्माण संबंधित दिक्कतें भी हैं.
इसी बजट से निकलता है वेतन
विश्वविद्यालय के बजट से न केवल पूरे कैम्पस का रखरखाव होता है. बल्कि यहां के प्रवक्ताओं, अधिकारियों और कर्मचारियों का वेतन भी इसी बजट से निकाला जाता है. वेतन पर भी करीब 300 करोड़ रुपये का खर्च हो जाता है. इसके अलावा अनेक एजेंसियां जो अलग-अलग छेत्र में विश्वविद्यालय के लिए काम कर रही हैं उनका भुगतान भी इसी बजट से किया जाता है.
विश्वविद्यालय ऐसे जुटा रहा बजट
लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय ने बताया कि अब हम नए तरीके से बजट जुटाते हैं. खासतौर पर हमने लखनऊ विश्वविद्यालय से जुड़े रहे विधायकों से अनुरोध करके उनकी निधि का उपयोग किया है. उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा से अनुरोध करके उनकी निधि से 25 लाख रुपये में छात्र-छात्राओं के लिए आधुनिक साज-सज्जा वाले शौचालय का निर्माण किया जा रहा है. हमारा यूटयूब चैनल अच्छा चल रहा है, जिसको विज्ञापन मिलना शुरू हो गए हैं. यही नहीं वेबसाइट के हिट पिछले 8 माह में करीब दो करोड़ हो चुके हैं. वहां भी हम विज्ञापन लेंगे. हमारा डिजिटल लर्निंग ऐप स्लेट, जूम और गूगल मीट से कम नहीं है. इसको भी बाजार में उतार कर इसका व्यावसायिक उपयोग किया जाएगा. इससे लखनऊ विश्वविद्यालय को आय होगी. कुलपति ने कहा कि हम क्षमतावान पूर्व विद्यार्थियों से अपील करेंगे कि वे किसी एक विभाग पर होने वाले साल भर के खर्च को वहन करें और हम उनकी स्मृति को विभाग में जीवंत करेंगे.