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एमआरआई जांच के लिए मरीजों को लूट रहे निजी अस्पताल, सरकारी का हाल बेहाल - Lok Bandhu Hospital Lucknow

यूपी के अधिकतर जिला अस्पतालों में एमआरआई जांच की सुविधा नहीं है. इसके चलते मरीजों को निजी अस्पतालों की मनमानी का शिकार होना पड़ रहा है. हालांकि राजधानी में दो बड़े अस्पतालों में एमआरआई जांच की सुविधा मिल रही है, लेकिन यहां लंबी वेटिंग रहती है.

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Published : Jul 21, 2023, 10:53 PM IST

एमआरआई जांच के लिए मरीजों को लूट रहे निजी अस्पताल, सरकारी का हाल बेहाल. देखें खबर


लखनऊ : कई बार गंभीर और आंतरिक शारीरिक समस्या होने पर डॉक्टर मरीज को एमआरआई जांच करवाने के लिए कहते हैं. जिसमें शरीर के अंदर क्या बदलाव हो रहा है इस बारे में जांच की जाती है और इसके बाद मरीज को उचित इलाज प्रदान किया जाता है. चिकित्सा के क्षेत्र में एमआरआई का खासा महत्व है जो कि मरीज को उचित इलाज प्रदान करवाने में सहायक होती है. यूपी के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में एमआरआई की व्यवस्था नहीं है, जिसकी वजह से निजी अस्पतालों की ओर मरीजों पर रुख करना पड़ता है. कई बार बड़े मेडिकल कॉलेजों में मरीज भटकते रह जाते हैं, लेकिन जांच नहीं हो पाती है.

लखनऊ में एमआरआई जांच .
लखनऊ में एमआरआई जांच .

सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉ. राजेश कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि सिविल अस्पताल 300 बेड का अस्पताल है. यहां पर जगह की कमी होने की वजह से एमआरआई की मशीन नहीं लगाई गई है. मशीन नहीं लग पाने की वजह साफ है जैसे ही सिविल अस्पताल का विस्तार होगा. शासन व स्वास्थ्य विभाग के दिशा अनुरूप सुविधाएं जरूर मुहैया होगी. फिलहाल अभी अस्पताल में एमआरआई मशीन नहीं होने के कारण मरीज की जांच नहीं हो पाती हैं. इसके लिए उन्हें मेडिकल कॉलेज रेफर किया जाता है. सिविल अस्पताल के विस्तार के लिए सूचना विभाग की बिल्डिंग शासन की ओर से प्राप्त हुई है. नक्शा पास होने पर सिविल अस्पताल के नवीनीकरण का काम शुरू होगा.

लखनऊ में एमआरआई जांच .
लखनऊ में एमआरआई जांच .


जिला अस्पताल बलरामपुर अस्पताल में तमाम दावों के बावजूद अब तक एमआरआई की सुविधा शुरू नहीं हो सकी है. जबकि यहां ढाई करोड़ की एमआरआई मशीन लगाई जा चुकी है. डॉक्टर द्वारा रोजाना यह 30-35 मरीजों को एमआरआई जांच लिखी जाती है, लेकिन जांच न शुरू होने के कारण से मरीजों को केजीएमयू, लोहिया या फिर निजी डायग्नोस्टिक सेंटर में जांच कराने के लिए जाना पड़ता है. मशीन तो लग गई है, लेकिन यहां पर टेक्नीशियन नहीं होने के कारण मशीन का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है.

लखनऊ में एमआरआई जांच .
लखनऊ में एमआरआई जांच .



डॉ. अजय शंकर त्रिपाठी के अनुसार एमआरआई स्कैन का इस्तेमाल मस्तिष्क, हड्डियों व मांसपेशियों, सॉफ्ट टिश्यू, चेस्ट, ट्यूमर-कैंसर, स्ट्रोक, डिमेंशिया, माइग्रेन, धमनियों के ब्लॉकेज और जेनेटिक डिस्ऑर्डर का पता लगाने में होता है. बीमारी की सटीक जानकारी के लिए यह जांच होती है. मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) मशीन बॉडी को स्कैन कर अंग के किस हिस्से में दिक्कत है ये जानकारी देती है. इसमें मैग्नेटिक फील्ड व रेडियो तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है जो शरीर के अंदर के अंगों की विस्तार से इमेज तैयार करती हैं. खास बात तो यह है कम्प्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन से एमआरआई बेहतर है. इसमें शरीर के अंग की अंदरूनी स्थिति की साफ तस्वीर मिलती है. जिससे बीमारी को डायग्नोस्टिक करने में आसानी होती है. इसमें रेडिएशन नहीं होता है. इसके द्वारा बच्चों और गर्भवती महिलाओं की भी जांच होती है. इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.

लखनऊ में एमआरआई जांच .
लखनऊ में एमआरआई जांच .



लखनऊ-गोरखपुर अस्पतालों का बुरा हाल : गोरखपुर से एक महिला का इलाज कराने आए संजय ने कहा कि हाल ही में सरकारी अस्पताल में एमआरआई की व्यवस्था होनी चाहिए. यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें छोटी से छोटी बीमारी के बारे में पता चलता है. कई बार डॉक्टर मरीज को एमआरआई जांच के लिए लिखते हैं लेकिन सिविल अस्पताल में एमआरआई नहीं होता है. यहां तक कि किसी भी जिला अस्पताल में एमआरआई की व्यवस्था नहीं है. जिस कारण बड़े संस्थानों में मरीज को चक्कर लगाने पड़ते हैं. वहीं अगर निजी पैथोलॉजी न हो तो मरीज की जान ही न बचे. भले पैसा लगता है लेकिन जान तो बच जाती है. लखनऊ और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर के अस्पतालों का यह हाल है तो सोचा जा सकता है कि बाकी प्रदेश के अन्य जिलों के जिला अस्पतालों का क्या हाल होगा. प्रदेश सरकार को जिला अस्पतालों में एमआरआई मशीन सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि गरीब वर्ग के मरीजों को दिक्कत परेशानी न हो.

यह भी पढ़ें : केस्को अफसरों ने पकड़ा बिजली चोरी का बड़ा खेल, 1.5 लाख से अधिक मीटरों की होगी जांच

एमआरआई जांच के लिए मरीजों को लूट रहे निजी अस्पताल, सरकारी का हाल बेहाल. देखें खबर


लखनऊ : कई बार गंभीर और आंतरिक शारीरिक समस्या होने पर डॉक्टर मरीज को एमआरआई जांच करवाने के लिए कहते हैं. जिसमें शरीर के अंदर क्या बदलाव हो रहा है इस बारे में जांच की जाती है और इसके बाद मरीज को उचित इलाज प्रदान किया जाता है. चिकित्सा के क्षेत्र में एमआरआई का खासा महत्व है जो कि मरीज को उचित इलाज प्रदान करवाने में सहायक होती है. यूपी के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में एमआरआई की व्यवस्था नहीं है, जिसकी वजह से निजी अस्पतालों की ओर मरीजों पर रुख करना पड़ता है. कई बार बड़े मेडिकल कॉलेजों में मरीज भटकते रह जाते हैं, लेकिन जांच नहीं हो पाती है.

लखनऊ में एमआरआई जांच .
लखनऊ में एमआरआई जांच .

सिविल अस्पताल के सीएमएस डॉ. राजेश कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि सिविल अस्पताल 300 बेड का अस्पताल है. यहां पर जगह की कमी होने की वजह से एमआरआई की मशीन नहीं लगाई गई है. मशीन नहीं लग पाने की वजह साफ है जैसे ही सिविल अस्पताल का विस्तार होगा. शासन व स्वास्थ्य विभाग के दिशा अनुरूप सुविधाएं जरूर मुहैया होगी. फिलहाल अभी अस्पताल में एमआरआई मशीन नहीं होने के कारण मरीज की जांच नहीं हो पाती हैं. इसके लिए उन्हें मेडिकल कॉलेज रेफर किया जाता है. सिविल अस्पताल के विस्तार के लिए सूचना विभाग की बिल्डिंग शासन की ओर से प्राप्त हुई है. नक्शा पास होने पर सिविल अस्पताल के नवीनीकरण का काम शुरू होगा.

लखनऊ में एमआरआई जांच .
लखनऊ में एमआरआई जांच .


जिला अस्पताल बलरामपुर अस्पताल में तमाम दावों के बावजूद अब तक एमआरआई की सुविधा शुरू नहीं हो सकी है. जबकि यहां ढाई करोड़ की एमआरआई मशीन लगाई जा चुकी है. डॉक्टर द्वारा रोजाना यह 30-35 मरीजों को एमआरआई जांच लिखी जाती है, लेकिन जांच न शुरू होने के कारण से मरीजों को केजीएमयू, लोहिया या फिर निजी डायग्नोस्टिक सेंटर में जांच कराने के लिए जाना पड़ता है. मशीन तो लग गई है, लेकिन यहां पर टेक्नीशियन नहीं होने के कारण मशीन का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है.

लखनऊ में एमआरआई जांच .
लखनऊ में एमआरआई जांच .



डॉ. अजय शंकर त्रिपाठी के अनुसार एमआरआई स्कैन का इस्तेमाल मस्तिष्क, हड्डियों व मांसपेशियों, सॉफ्ट टिश्यू, चेस्ट, ट्यूमर-कैंसर, स्ट्रोक, डिमेंशिया, माइग्रेन, धमनियों के ब्लॉकेज और जेनेटिक डिस्ऑर्डर का पता लगाने में होता है. बीमारी की सटीक जानकारी के लिए यह जांच होती है. मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) मशीन बॉडी को स्कैन कर अंग के किस हिस्से में दिक्कत है ये जानकारी देती है. इसमें मैग्नेटिक फील्ड व रेडियो तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है जो शरीर के अंदर के अंगों की विस्तार से इमेज तैयार करती हैं. खास बात तो यह है कम्प्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन से एमआरआई बेहतर है. इसमें शरीर के अंग की अंदरूनी स्थिति की साफ तस्वीर मिलती है. जिससे बीमारी को डायग्नोस्टिक करने में आसानी होती है. इसमें रेडिएशन नहीं होता है. इसके द्वारा बच्चों और गर्भवती महिलाओं की भी जांच होती है. इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.

लखनऊ में एमआरआई जांच .
लखनऊ में एमआरआई जांच .



लखनऊ-गोरखपुर अस्पतालों का बुरा हाल : गोरखपुर से एक महिला का इलाज कराने आए संजय ने कहा कि हाल ही में सरकारी अस्पताल में एमआरआई की व्यवस्था होनी चाहिए. यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें छोटी से छोटी बीमारी के बारे में पता चलता है. कई बार डॉक्टर मरीज को एमआरआई जांच के लिए लिखते हैं लेकिन सिविल अस्पताल में एमआरआई नहीं होता है. यहां तक कि किसी भी जिला अस्पताल में एमआरआई की व्यवस्था नहीं है. जिस कारण बड़े संस्थानों में मरीज को चक्कर लगाने पड़ते हैं. वहीं अगर निजी पैथोलॉजी न हो तो मरीज की जान ही न बचे. भले पैसा लगता है लेकिन जान तो बच जाती है. लखनऊ और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर के अस्पतालों का यह हाल है तो सोचा जा सकता है कि बाकी प्रदेश के अन्य जिलों के जिला अस्पतालों का क्या हाल होगा. प्रदेश सरकार को जिला अस्पतालों में एमआरआई मशीन सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि गरीब वर्ग के मरीजों को दिक्कत परेशानी न हो.

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