लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय, लखनऊ के पांच अध्यापकों को बर्खास्त करने के आदेशों को निरस्त कर दिया है. न्यायालय ने कहा कि उक्त बर्खास्तगी आदेश न सिर्फ अवैध हैं, बल्कि मनमाने भी हैं. न्यायालय ने अध्यापकों को बर्खास्तगी आदेश की तिथि से बैक वेजेज देने समेत सभी वेतन-भत्ते बहाल करने के आदेश विश्वविद्यालय को दिए हैं.
यह निर्णय न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकल पीठ ने डॉ. राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, विपण कुमार पांडेय, मृत्युंजय मिश्रा, डॉ. आद्या शक्ति राय व अवनीश चंद्र मिश्रा की ओर से दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया. अध्यापकों की ओर से 6 जुलाई 2022 को पारित बर्खास्तगी आदेश को चुनौती दी गई थी. विश्वविद्यालय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सुदीप सेठ की दलील थी कि वर्ष 2014 में तत्कालीन कुलपति के कार्यकाल में उक्त अध्यापकों की नियुक्ति में भारी अनियमितता बरती गई, जिसकी पर्याप्त जांच के पश्चात बर्खास्तगी आदेश पारित किए गए हैं. वहीं, बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देते हुए, याचियों की ओर से अधिवक्ता एलपी मिश्रा व गौरव मेहरोत्रा आदि की दलील थी कि याचियों को न तो आरोप पत्र दिए गए और न ही जवाब का कोई मौका दिया गया.
न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के उपरांत पारित अपने निर्णय में कहा कि याचीगण 6-7 सालों से सेवा में हैं. लिहाजा नियुक्ति के दौरान मात्र कुछ अनियमितताओं के आधार पर उनकी न तो सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं और न ही उन्हें बर्खास्त किया जा सकता है. न्यायालय ने यह भी पाया कि याचियों के शैक्षिक योग्यता में कोई कमी नहीं थी और याचियों की नियुक्ति करने वाली चयन समिति पर भी दुर्भावना का कोई आरोप नहीं है. न्यायालय ने उक्त टिप्पणियों के साथ याचिकाओं को स्वीकार कर लिया.